tag:blogger.com,1999:blog-89755579819307116862024-03-13T14:24:53.699-07:00छिंदवाड़ा छविमध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की पहली हिंदी ब्लॉग वेबसाइट www.chhindwara-chhavi.blogspot.inChhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.comBlogger260125tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-23082650120851106582023-09-19T08:10:00.001-07:002023-09-19T08:27:18.252-07:00नहीं रहे जड़ी-बूटियों में जीवन खोजने वाले 'जंगल लेबोरेट्री' के लेखक डॉ. दीपक आचार्य<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-ZkGiW_0fhRM/ZQm51h1yZ7I/AAAAAAAAgdI/tmnw3is_eYQX4z2ZJAlN9fccPPseOh7oACNcBGAsYHQ/s1600/1695136212338414-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div>छिंदवाड़ा, (मध्यप्रदेश), 19 सितंबर, 2023। <br></div><div><br></div><div>जड़ी-बूटियों में जीवन खोजने वाले और आर्युवेद पर कई पुस्तकें लिखने वाले डॉ दीपक आचार्य का मंगलवार रात निधन हो गया. उनके निधन पर लेखक जगत में शोक की लहर है. हिंद पॉकेट बुक्स (पेंगुइन स्वदेश) सहित तमाम प्रकाशन समूह ने दीपक आचार्य के आकस्मिक निधन पर दुख प्रकट किया है. जानकारी के अनुसार, नागपुर के एक अस्तपाल में मंगलवार रात लगभग 12.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. बताया जा रहा है कि मल्टीपल हार्टअटैक के कारण उनका हार्ट फेल हो गया था. वे पिछले कुछ दिनों से बीमार थे और अस्पताल में उनका उपचार चल रहा था.</div><div><br></div><div>48 वर्षीय डॉ. दीपक आचार्य माइक्रोबायोलॉजी में पीएचडी, इथनोबॉटनी विषय में पोस्ट डॉक्टरेट किया था. वे पेशे से वैज्ञानिक थे. डॉ. दीपक आचार्य ने 9 किताबें, 50 से अधिक रिसर्च आर्टिकल और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया पर 5,000 से अधिक लेख लिखे हैं. वे कई मीडिया संस्थानों में नियमित कॉलम लिखते थे.</div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-iCLF5mzRmw4/ZQm50lO7onI/AAAAAAAAgdE/kuUgTdgXBt0_muhGi0z1FdySAuIVDlVGQCNcBGAsYHQ/s1600/1695136205680788-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div>डॉ. दीपक ने कोविड महामारी के दौरान एक सशक्त कोरोना योद्धा की भूमिका निभाई थी. वे हमेशा सजग रहकर घर में ही रहते हुए कोरोना से लड़ने के उपाय बताते थे. घरेलू उपचार के माध्मय से उन्होंने कई लोगों का जीवन बचाया. वे सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार कई-कई घंटे लोगों को सलाह देते रहते थे. डॉ. दीपक आचार्य पिछले 25-30 वर्षों से मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात के जंगलों की खाक छानते हुए हमारे पारंपरिक हर्बल ज्ञान, वहां के रहन-सहन और खान-पान पर विशेष अनुसंधान कर रहे हैं. दीपक आचार्य आदिवासी इलाकों में घूम-घूम कर इकट्ठा किए ज्ञान आम लोगों तक पहुंचाने का काम कर हे थे.</div><div><br></div><div>डॉ दीपक आचार्य का जन्म 30 अप्रैल, 1975 को मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में स्थित कटंगी में हुआ था। बाद में उनका परिवार छिंदवाड़ा आकर रहने लगा। छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय में स्थित डेनियलसन डिग्री कॉलेज से ही उन्होंने अपनी कालेज की पढ़ाई पूरी की।</div><div><br></div><div>क्या कहते हैं डेनियलसन कालेज के पूर्व प्राचार्य डॉ.एस.ए.ब्राउन सर… </div><div><br></div><div>डॉ. दीपक आचार्य की अप्रत्याशित मृत्यु के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ। वह हमारे सबसे अच्छे छात्रों में से एक थे। अपनी एमएससी पूरी करने के बाद उन्होंने उस अवधि के दौरान औषधीय पौधों पर शोध कार्य शुरू किया, उन्होंने पातालकोट क्षेत्र के आदिवासियों से उन जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी एकत्र करना शुरू किया, जिनका उपयोग वे विभिन्न बीमारियों के लिए कर रहे थे और इसका दस्तावेजीकरण किया। </div><div><br></div><div>उन्होंने अपना शोध अध्ययन डॉ. एम.के.राय के मार्गदर्शन में डेनियलसन कॉलेज में पीएचडी तक पूरा किया, लेकिन उनका औषधीय पौधों, आदिवासियों से संबंध और पातालकोट प्रेम पर शोध जारी रहा। उन्होंने अपने क्षेत्र में असाधारण काम किया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। कुल मिलाकर दीपक बहुत ही ईमानदार, प्यारा इंसान था। मेरी बहुत सारी यादें हैं. हमारी प्रार्थनाएँ शोक संतप्त परिवार के सदस्यों के साथ हैं। डेनियलसन कॉलेज परिवार ने अपने प्यारे सदस्यों को खो दिया है। </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-aLprgaRIHfY/ZQm5ytq0HcI/AAAAAAAAgdA/zstKWXqRlXIi7gzcAaepq3ltSIYZxiLPgCNcBGAsYHQ/s1600/1695136198588401-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div>—-</div><div><br></div><div>नीरज चोपड़े की वर्ष 2020 में लिखी फेसबुक पोस्ट से</div><div><br></div><div>डॉ दीपक आचार्य जी के जीवन का महत्वपूर्ण समय छिंदवाड़ा में ही बीता । और DDC से विज्ञान में स्नातक एवम बॉटनी से स्नाकोत्तर की शिक्षा लेकर के, सागर यूनिवर्सिटी से Plant science में डॉक्टरेट (Ph D) की उपाधि ली।</div><div><br></div><div>कक्षा 12 के बाद अचानक घूमते हुए पातालकोट क्या जाना हुआ..!! समझो वहीं से दीपक आचार्य के डॉ दीपक आचार्य बनने की कहानी चालू होती है। कॉलेज के दौरान और खासकर के MSc के दौरान पातालकोट से जो लगाव लगा; अब वही पातालकोट, डॉ साहब के जीवन का अभिन्न हिस्सा हो चुका है। या यूँ कहे कि दोनों ने एक दूसरे को अपनी पहचान का पर्याय बना लिया है। डॉ दीपक आचार्य वही पातालकोट वाले....!!! यह अक्सर हर किसी से सुनने को मिलता है। </div><div><br></div><div>आपको बता दे कि डॉ दीपक आचार्य जो कि बतौर बड़े भाई हमेशा ही मुझे मार्गदर्शित करते रहते है, ने JNU से Ethnobotany में पोस्ट डॉक्टरेट करने के साथ ही पातालकोट सी कर्मभूमि पर पूरे मनोयोग के साथ काम करना प्रारंभ कर दिया था। पातालकोटवासियों से इतना लगाव कि 1992 में 12वी पास करने के साथ ही उन्होंने यहाँ के लोगों के बीच जाकर काम करना प्रारंभ किया, जो धीरे धीरे आज "डॉ दीपक आचार्य पातालकोट वाले" के नाम से ही पहचाने जाते है, आज पातालकोट के लगभग 12 से 14 गांव के एक-एक घर के बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्ग भी बड़े आत्मीय ढंग से उन्हें पारिवारिक सदस्य के रूप में मानते है। बुजुर्गों के दीपक, नवजवानों के डॉ साहब, साइंटिस्ट साहब है तो वहीं बच्चों के आचार्य अंकल...!!!</div><div><br></div><div> आखिरकार कैसे पातालकोट का आदिवासी समुदाय जो कि बाहरी लोगों के आने पर डरा सहमा सा रहता है, डॉ साहब को देखकर उनकी आँखों मे उम्मीद की किरण सी दिखाई देने लगती है, एक चमक सी दिखाई देने पड़ती है ....!!! </div><div><br></div><div>तो इसका कारण डॉ दीपक आचार्य की 20 से 25 वर्षों की तपस्या ही है । जिसकी परिणति उनके पातालकोट जाने से पहले ही उनकी मेहमान नवाजी के लिए खड़े पातालकोटवासियों के रूप में देखने को मिलती है, आखिर भैया कब आने वाले है....!!! यह आस लगाए बड़े से लेकर बूढ़े तक टकटकी लगाए देखते रहते है, खैर उनकी इस यात्रा पर कभी विस्तृत चर्चा बाद में करेंगे, लेकिन उनके जीवन की उपलब्धियां, कुछ अंशों को आपके समक्ष जरूर रखता हूँ :-</div><div><br></div><div>डॉ दीपक आचार्य जी की शैक्षणिक योग्यता से तो आप परिचित हो ही गए है ,लेकिन आपको बता दे कि, इन्होंने अब तक लगभग 8 किताबें लिखे है, इनकी चर्चित किताबो में "indigenous Herbal medicine ","आदिवासियों की औषधीय विरासत" (यह क़िताब माननीय प्रधानमंत्री श्री Narendra Modi जी (तत्कालीन CM गुजरात) द्वारा 2007 में विमोचित की गयी थी, फोटोग्राफ संलग्न, https://youtu.be/GOq7OkTi5mk ) , "Herbal Jeevan Mantra", " Ethnomedicinal Plants: Revitalizing of Traditional Knowledge of Herbs"आदि प्रमुख है। साथ ही लगभग 5,000 से अधिक scientific journals एवम मैगज़ीन, अखबारों में लेख लिखे है। साथ ही इन्हें अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित अखबार "वॉल स्ट्रीट जर्नल" The Wall Street Journal के एशिया संस्करण ने वर्ष 2006 में इनके कार्यो से प्रभावित होकर अपने कवर पेज पर स्थान दिया था, (लिंक:- https://www.wsj.com/articles/SB114736634624350291 स्टोरी कवर by :- kevin voigt #May 2006 ) जो कि अपने आप मे गौरव का विषय है, इस स्टोरी पर Mr. बिल क्लिंटन ने बधाईयां प्रेषित किए थे । (आपको बता दें WSJ अखबार को अब तक 37 पुलित्जर मिल चुके है ।) </div><div><br></div><div>डॉ दीपक आचार्य जी ने आदिवासियों के हर्बल ज्ञान को राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने हेतु अहमदाबाद में Abhumka हर्बल्स के नाम से कम्पनी भी स्थापित किये है , इसके साथ ही वे भारत के गिने चुने टॉप botanists में आते है। इसके साथ ही वे वर्तमान में ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैण्डर्ड (BIS) की Food and agricultute sectional committee FAD-23 एवम Mirror committee member -BIS- ISI (food and microbiology) के सदस्य भी है, इसके साथ ही SGB यूनिवर्सिटी अमरावती के सदस्य है। साथ ही छत्तीसगढ़ के जैव विविधता बोर्ड में बतौर आमंत्रित सदस्य अपना योगदान देते रहते है, एवं गुजरात सरकार तथा भारत सरकार के वन एवम पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी विषयों पर बतौर 'सलाहकार', नीति निर्धारण में अपनी अहम भूमिका निभाते है। बहुत सी यूनिवर्सिटी एवं प्रशिक्षण संस्थानों में मार्गदर्शन हेतु इन्हें आमंत्रित किया जाता है। </div><div><br></div><div>यह तो थी डॉ दीपक आचार्य जी के विषय में कुछ बातें, आप अधिक जानकारी हेतु गूगल पर "deepak acharya Patalkot" नाम से ही सर्च कर सकते है या फिर http://www.patalkot.com/ पर देख सकते है।</div><div><br></div><div> #दीपकआचार्य #देशकाज्ञान #traditionalknowledge #herbalverbal #पातालकोट #deepakacharya</div><div>#chhindwara #chhindwaracity #desifoodie #chhindwarachhavi #MadhyaPradesh #DDC #dongreJionline #dongredigitalfamily</div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-49764314956592710022023-06-07T03:38:00.001-07:002023-06-07T03:42:36.555-07:00संस्मरण आलेख : छिंदवाड़ा की स्मृतियों में दर्ज विष्णु खरे<p dir="ltr" id="docs-internal-guid-6d7df5c3-7fff-d43f-ae1c-683b803f7a34">मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा के कुम्हारी मुहल्ले में 9 फरवरी 1940 को जन्में वरिष्ठ कवि ,आलोचक ,पत्रकार तथा फिल्म समीक्षक स्वर्गीय विष्णु खरे का छिंदवाड़ा प्रेम जग जाहिर है। अपने लेखन में उन्होंने छिंदवाड़ा को अनेकों बार अभिव्यक्त किया और छिंदवाड़ा पर उनकी कविता “ मिट्टी “ चर्चित भी हुई। छिंदवाड़ा के वरिष्ठ कथाकार हनुमंत मनगटे बताते थे कि विष्णु खरे के पिता स्वर्गीय सुंदरलाल खरे ने गव्हर्नमेंट हायर सेकेण्डरी छिंदवाड़ा में शिक्षक थे और उन्होंने मनगटे जी को पढ़ाया था। 1951 में उनका स्थानांतरण होने पर परिवार खंडवा चला गया । खंडवा से विष्णु खरे की जीवन यात्रा इंदौर , दिल्ली होते हुए मुंबई पहुँची।<br></p><p dir="ltr"> अपनी मृत्यु के पिछले पन्द्रह- वर्षों से वे लगातार छिंदवाड़ा आ रहे थे । मुंबई की आपाधापी भरी जिंदगी से दूर अपनी उम्र के अंतिम तीन वर्षों में वे छिंदवाड़ा की ठंड़ी फिजा में रहकर अध्ययन लेखन और अनुवाद कार्य कर रहे थे। मुझे मालूम है अपनी बेबाक प्रवृत्ति , बौद्धिक-वक्तृत्व प्रवणता और वैचारिक प्रखरता का वह योद्धा अब कभी छिंदवाड़ा नहीं आएगा लेकिन छिंदवाड़ा के बड़वन में रमेश पोफली के घर के सामने से गुजरते हुए बरबस ही आँखें ऊपर छत पर बने उन कमरों पर चली जाती है जहाँ विष्णु खरे रहते थे। लगता है मैं कुंडी खटखटाऊंगा और लैपटाप पर आँखें गड़ाए विष्णु खरे अपनी भारी आवाज में पूछेंगे , कौन है भाई । मैं कहूंगा दिनेश भट्ट। आवाज आएगी- ठीक है आ जाओ । हर किसी का प्रवेश संभव भी नहीं था। चश्में को टेबिल पर रख कर कहेंगे - चाय पीनी है तो अंदर से बना लाना , ध्यान रखना मैं शुगर फ्री डालूंगा। छोटे कमरे में बड़े से टेबिल पर बिखरी किताबें , पत्रिकाएं और अखबार । दो-तीन कुर्सियाँ। पीछे रैक में करीने से रखे कुछ ग्रंथ और मोटी -मोटी किताबें। बीच के कमरे में पलंग लायक जगह और पीछे किचन। डेढ़ कमरे के इस मकान को उन्होंने सिर्फ इसलिए किराये से नहीे लिया था कि यह उनके बचपन के दोस्त का घर था बल्कि इसलिए कि वर्षों से खड़े बरगद , आम , जामुन ,पीपल के वृक्षों से यह कालोनी आच्छादित है और गोरैया , फड़कुल , कोयल के स्वर उन्हें दिनभर आनंदित करते थे। हम ये सोचते भी थे कि महानगर मुबंई के मलाड वेस्ट में तीन कमरों के फ्लैट के सुख को छोड़ छिंदवाड़ा में डेढ़ कमरे के इस मकान में यह शख्स क्या कर रहा है। लेकिन उनके साथ इस छोटे कमरे में जब हम हिंदी साहित्य और विश्व साहित्य के प्रभामंडल को महसूस करते तो सारे महानगर फीके लगते। </p><p dir="ltr"> ज्ञानरंजन ने उन्हें कठिन और समर्थ कवि कहा है। उनकी कविताओं में अक्सर जाँच-पड़ताल , उधेड़बुन और मनुष्य बने रहने की चरम जद्दोजेहद चलते रहती है। विष्णु खरे अपनी कविता में जोखिम उठाते हैं और किसी तरह के संकट या प्रभाव से बचना नहीं चाहते।विष्णु खरे के कृतित्व और व्यक्तित्व पर बहुत आलेख और बातें की जाएंगी , मैं यहाँ उनके छिंदवाड़ा प्रवास के दौरान के उन अंतरंग संस्मरणों को साझा करुंगा , जो सहज ही हमारे साथ घटित हुए। विष्णु खरे की जिस जीवटता और स्वभाव के लिए वे जाने जाते थे उसे हमने कितनी नजदीकी से महसूस किया है, उसका जिक्र यहां मिलेगा।</p><p dir="ltr"> विष्णु जी की शख्सियत ऐसी थी कि लोग उनसे या तो प्यार करते थे या डरते थे । निजी कारणों से नापसंद किए जाने के बावजूद उनकी अवज्ञा नहीं की जा सकती। एक बार मलय जी छिंदवाड़ा आए थे। मैंने कहा चलिए विष्णु खरे से मिलते हैं वे बोले, भैया तुम्हें मेरा स्वभाव मालूम है। विष्णु जी से बात करने में डर लगता है। मैं दोनों धुरंधरों के साथ बैठना चाह रहा था। मलय जी को मनाकर ले गया। शुरू -शुरू में औपचारिक बातों तक सब कुछ ठीक चल रहा था । नीट रॉयल स्टेग का हाॅफ खत्म होते होते दोनों की गर्म बहसों ने मुझ जैसे कहानीकार को समकालीन कविता का अद्भुत ज्ञान प्रदान कर दिया। छिंदवाड़ा के बुधवारी बाजार में वरिष्ठ कथाकार हनुमंत मनगटे की एक छोटी दुकान है काव्या एस टी डी। अब यह बंद है। मनगटे जी रोज शाम को अपने सेवानिवृत मित्रों के साथ बैठते हैं । शहर के लेखक भी आ जाते हैं। विष्णु खरे कभी -कभी यहाँ आ जाते थे। रसरंजन होता था और हमें दो दिग्गजों के वाद-परिवाद सुनने को मिलता था। </p><p dir="ltr"> छिंदवाड़ा में खरे जी अध्ययन , लेखन और अनुवाद कार्य कर रहे थे इसलिए उन्हें स्थानीय स्तर पर आयोजित वैचारिक या काव्य गोष्ठियों में लाना टेढ़ी खीर होता था। मैं चाहता था कि उनकी मेघा और उपस्थिति का लाभ छिंदवाड़ा के लेखकों , कलाकारों और संस्थाओं को मिले। मैं लोगों को उनसे मिलाने का प्रयास करता था, नतीजतन खरे जी लेखकों की कलम और कलाकारों की अदाकारी के कायल भी हुए।</p><p dir="ltr"> उनकी बेबाकी के कुछ मजेदार किस्से हैं। छिंदवाड़ा में 1935 से स्थापित हिंदी प्रचारिणी समिति है , जिसमे एक बडा़ पुस्तकालय और वाचनालय है। संस्था प्रतिवर्ष हिंदी दिवस पर व्याख्यानमाला आयोजित करती है। हिंदी दिवस 2015 को संस्था विष्णु खरे का व्याख्यान रखना चाहती थी। अपने लेखन की व्यस्तता के चलते खरे जी कार्यक्रमों और मुलाकातों से परहेज कर रहे थे सो उनको मनाने के लिए मोर्चें पर मुझे लगाया गया। संस्था के साहित्य सचिव रणजीतसिंह परिहार के साथ मैं उनसे मिला, वे यह कहकर सहर्ष तैयार हो गए कि हिंदी प्रचारिणी समिति से उनका गहरा रिश्ता है। अपने हायर सेकेण्डरी स्कूली जीवन में उन्होंने क्लासिकल हिंदी -अंग्रेजी उपन्यास और कविता संग्रह इसी पुस्तकालय से पढ़े हैं। कार्यक्रम के चंद दिन पहले परिहार सर मेरे पास घबराए हुए से आए। एक गड़बड़ हो गयी भाई। क्या हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता जिले के सांसद कमलनाथ से करायी जा रही हैे। मैं पूछा , परेशानी क्या है। समिति के कुछ लोग कह रहे हैं विष्णु खरे का कोई भरोसा नहीें कमलनाथ या राजनीति पर क्या कह दे और विवाद निर्मित हो जाए। मैंने कहा अब आप कमलनाथ को केंसिल कर सकते हैं लेकिन विष्णु खरे को नहीे। तय हुआ खरे जी से मिल लिया जाए। उनके पास जाकर हमने अपनी शंका जाहिर की । वे मुस्कराए और कहा डरो मत , मैं ऐसा कुछ नहीं कहूंगा । कार्यक्रम में कमलनाथ अपने लाव लश्कर के साथ आए लेकिन कि जैसा अक्सर होता राजनीतिक व्यस्तता बताकर विष्णु खरे का व्याख्यान सुने बिना ही चले गए। अब विष्णु खरे का नाराज होना वाजिब था । फिर क्या था ,छिंदवाड़ा की राजनीति को उन्होंने अपने व्याख्यान में घसीट ही लिया। लेकिन हिंदी पर दिए उनके अद्वितीय व्याख्यान को सुनकर लोग मंत्रमुग्ध थे।</p><p dir="ltr"> शासकीय स्नात्कोत्तर महाविद्यालय छिंदवाड़ा में जनवरी 2014 में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में उन्होंने अध्यक्षता की थी। विषय था समकालीन कविता में प्रतीकों की प्रासंगिकता , विविधता और यथार्थ । प्रतीक विधान पर उन्होंने हास्यपूर्ण ढंग से गंभीर व्याख्यान दिया था। बहुत ताली बजी थी जब उन्होंने कहा था कि यदि मोदी चाय वाले का प्रतीक हो सकते हैं तो मैं भी छिंदवाड़ा में जहाँ पैदा हुआ हूं। वह बेहद गरीब कुम्हारों का मुहल्ला था। वहाँ गधे बहुत थे। उस पिछड़ेपन से निकलकर मैं कुछ बना हूँ तो मैं भी एक प्रतीक हूँ।</p><p dir="ltr"> प्रगतिशील लेखक संघ छिंदवाड़ा के मेरे साथी वरिष्ठ कवि मोहन कुमार डहेरिया , कवि हेमेन्द्र राय , कथाकार राजेश झरपुरे और गोवर्धन यादव , कवि श्रीराम निवारिया और रोहित रूसिया उनके साथ बौद्धिक बैठकों का लाभ लेते रहे हैं। विष्णु खरे की चुहलबाजी देखिए।एक बार मुझे खरे जी का फोन आया कि होटल सत्कार में दिल्ली से आए उनके एक मित्र रुके हैं। उनसे जाकर मिलो और उनकी मदद करो। मैं पहुँचा। दरवाजा खुलते ही खरे जी स्वयं सामने खड़े थे। ऐसा उन्होंने हेमेंद्र राय और गोवर्धन यादव को भी कहा था। सब इकठ्ठे हो गए। बाहर बारिश हो रही थी। हम दिन भर जमे रहे । शाम को बाहर निकलकर किसी ने हेमेंद्र भाई से पूछा - भाई ये आदमी हैं या इनसाइक्लोपीडिया।</p><p dir="ltr"> अख्खड़ और नाराज विष्णु खरे। आकाशवाणी छिदवाड़ा के एक कवि सम्मेलन के लिए अपनी कविताओं की स्क्रिप्ट नहीं देने पर अड़े रहे और लाख कोशिश पर भी नहीं दी। मैं उनका एक लंबा इंटरव्यू लेना चाहता था। जो प्रश्न मैंने तैयार किए थे उन्हें पसंद आए। मैने एक रिकार्डर का इंतजाम कर लिया था । तभी मुबंई से सचिन मालवी आया हुआ था। उसने सलाह दी कि क्यों न ऐसा करें कि विभिन्न स्थानों पर खरे जी का इंटरव्यू लेते हुए हम शूट कर लें। तय हो गया । खरे जी भी राजी थे। जो दिन मुकर्रर था उस दिन सचिन अपने दोस्त की शादी में चला गया। इंटरव्यू नहीं हो पाया। बाद में मेरे लाख कहने पर भी वे इंटरव्यू के लिए तैयार नहीं हुए। एक वर्ष बांदा में शबरी संस्था द्वारा आयोजित “ प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान “ में विष्णु खरे जी की अध्यक्षता थी। मेरे सामने वे बांदा जाने के लिए भोपाल निकले। तीसरे दिन फेसबुक पर आयोजक मयंक खरे की वॉल पर मैंने कार्यक्रम की रिर्पोट देखी , विष्णु खरे का नाम गायब था । मैने उन्हें तुरंत फोन किया। वे बोले मैं गया ही नहीं , छिंदवाड़ा में हूँ। बाद में मिलने पर जो किस्सा उन्होंने बताया वह यूँ था- छिंदवाड़ा से खरे जी भोपाल के हबीबगंज स्टेशन सुबह पहुँचने वाले थे । मयंक खरे ने उन्हें बताया कि झाँसी के लिए शाम की ट्रेन से उनका रिजर्वेशन किया गया है , इसलिए हबीबगंज स्टेशन के गेस्ट हाउस में दिनभर रुकने के लिए कमरा बुक कर दिया गया है। खरे जी जब स्टेशन पहुँचकर सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर गेस्ट हाउस पहुँचे तो उनके नाम से कोई कमरा बुक नहीं था। उन्होंने मयंक को फोन किया तो उसने बताया कि उसने अपने रिश्तेदार को यह काम सौंपा था। आप वहीं रुके वह अभी पहुँच जाएगा। एक घंटे तक कोई नहीं आया तो खरे जी ने स्टेशन के सामने होटल में कमरा ले लिया । फिर शायद कुमार अंबुज और नीलेश रघुवंशी उनसे मिलने आए। थोड़ी देर में मयंक के रिश्तेदार का ड्रायवर दो हजार रुपए लेकर आया कि आप अच्छा सा कमरा ले लें। अब तो वे काफी नाराज हो गए । ड्रायवर को रुपए सहित उलटे पाँव लौटा दिया और रात की ट्रेन से छिंदवाड़ा लौट आए।</p><p dir="ltr"> विष्णु खरे की युवा पीढ़ी पर हमेशा नजर रहती थी । कई बार उसमें जो संभावनाएं नजर आती वे हर तरीके से प्रोत्साहित करते। छिंदवाड़ा के रंगकर्मी संचिन मालवी दो नाटक “ भात दे हरामी “ और “ सिडकश्नन “ मंचित कर रहे थे। वे चाहते थे विष्णु खरे नाटक देखें। मैंने उन्हें मिलाया । बात बन गयी। खरे जी आए। छिंदवाड़ा जैसी छोटी जगह पर इस स्तर का नाटक देखकर खरे जी अभिभूत थे। जब उन्हें मंच पर बुलाया गया तो उन्होंने बीस मिनट तक नाटकों पर बेहद सकारात्मक बात की। संयोग देखिए सचिन इन दिनों मुबंई में है और खरे जी के घर के सामने ही रहते हैं। दूसरा किस्सा यूं था कि चित्रकार -कवि रोहित रूसिया को मध्यप्रदेश का चर्चित वागीश्वरी पुरस्कार मिला था। हम प्रगतिशील लेखक संघ के मंच से उसकी किताब पर चर्चा तथा उसका सम्मान कर रहे थे। खरे जी तब तक रोहित के कविता पोस्टर देख चुके थे और कविताएँ भी पढ़ चुके थे इसलिए वे कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए राजी हो गए। मैंने शहर के दो वरिष्ठ शायर गुलाम मध्यप्रदेशी और सलीम जुन्नारदेवी का भी सम्मान रख दिया। मंच पर उन्हें देखकर खरे जी को कुछ अप्रत्याशित लग रहा था , लेकिन जब गुलाम मध्यप्रदेशी और सलीम जुन्नारदेवी ने अपने कलाम पढ़े तो खरे जी बाग-बाग होकर तारीफ करते रहे। गुलाम मध्यप्रदेशी के गीत की एक पंक्ति को उन्होंने हिेदी साहित्य की श्रेष्ठ पंक्तियों में शुमार किया। गुलाम मध्यप्रदेशी ताउम्र उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। हमारे अनुग्रह पर उन्होंने श्रीराम निवारिया के कविता संग्रह को न केवल पढ़ा बल्कि समीक्षा गोष्ठी में बेहतरीन टिप्पणी दी। वरिष्ठ कवि मोहन कुमार डहेरिया के कविता संग्रह और रोहित रूसिया के कविता पोस्टर पर उन्होंने शानदार ब्लर्ब लिखा है। राजेश झरपुरे के कहानी संग्रह और उपन्यासों पर उन्होंने बेबाक टिप्पणी दी। मेरी चर्चित कहानी “ अंतिम बूढ़े का लाफटर डे “ जब पत्रिका “ शुक्रवार “ के साहित्य वार्षिकी 2013 में छपी थी तब उन्होंने मुबंई से फोन कर तारीफ की थी। मेरा कहानी संग्रह तथा मेरी अधिकांश कहानियाँ उन्होंने पढ़ी थी और अपनी समीक्षात्मक राय जरूर देते थे।</p><p dir="ltr"> विष्णु खरे ने गद्य रचना में कविता को आविष्कृत किया और दिखाया कि गद्य की अपनी एक लय होती है , जो उनकी कविताओं का खास गुण है। उनकी लंबी कविताओं और गद्यात्मक शैली पर हमारी उनके साथ तीखी चर्चाएं होती थी और अंततः कविताओं की स्वीकारता पर सहमति बन जाती। विवाद उनके साथ जुड़े रहते थे लेकिन यह सच है कि उन्होंने कवियों की एक पीढ़ी तैयार की ।</p><p dir="ltr"> अपने काम के प्रति इतने जिद्दी व्यक्ति मैंने बहुत कम देखे हैं। उम्र के इस अवसान पर भी वे प्रतिदिन अखबार के लिए स्तंभ लिखते थे और वेबसाइट्स पर अपनी बेबाक टिप्पणी देते थे। विष्णु खरे की कविताएं , कविता के रूप में जैसे अनुसंधान की एक पूरी कार्यशाला है। वे इतिहास और उसकी मीमांसा को कविता के परिसर में लाती है। उनके काव्य लेखन में शास्त्राीय संगीत जैसा लंबा और कठोर रियाज , विषय के प्रति एकाग्रता दिखती है। मिथक उनकी कविता के महत्वूुर्ण अंग हैं। वे मिथकों की पूरी दुनिया में प्रवेश करते हैं। विष्णु खरे जी की भाषा असाधारण थी महाभारत को वह विश्व का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य मानते थे और अंतिम दिनों में उस पर कुछ काम कर रहे थे।कहा जाता है विष्णु खरे महाभारत के प्रसंगों का कविता में अन्वेषण करते हैं। मैं जब उनकी कविताएँ “ टेबिल “ , “ अकेला आदमी “ , “ लड़की “, “ देर से आने वाले लोग “, “ लड़कियों के बाप “ या “ दूरबीन “ पढ़ता हूँ तो उन पर रघुवीर सहाय का यह कथन याद आता है - विष्णु खरे की कविता एक संपादित फिल्म की तरह है और हम इस निःशब्द के पीछे एक संगीत की कल्पना भी सुन सकते हैं। शायद उसने अपने अंदर एक अनुभूति को बाहर दिखने वाली तमाम चीजों के जरिए पहचानने का संस्कार पैदा किया है जो एक आधुनिक संस्कार है।</p><p dir="ltr"> विष्णु खरे में उदार उत्सुकता और भय सब एक साथ थे। हम उनकी सदाशयता और पारिवारिकता के भी कायल थे। मैं एक सम्मान कार्यक्रम में दिल्ली गया था। उन दिनों लीलाधर मंडलोई आकाशवाणी निदेशक थे। यहाँ ज्ञात हो कि छिंदवाड़ा जिले में मेरी जन्मभूमि इकलहरा से मंडलोई जी की जन्मभूमि गुढ़ी चार किलोमीटर पर है। बहरहाल उस दिन मैं मंडलोई जी से मिलने आकाशवाणी केंद्र पहुँचा । वहाँ विष्णु खरे पहले से मौजूद थे। दोनो से मुलाकात मजेदार रही । निजामुद्दीन स्टेशन के लिए मैं आटो देख रहा था तभी अपनी कार से खरे जी आ गए और मुझे स्टेशन छोड़ा। मैं गदगद था। उनकी अभिनेत्री बेटी प्रीति खरे की शादी में हम प्रगति विहार दिल्ली गए थे। कवि हेमेंद्र राय, कथाकार गोवर्धन यादव और मुझे उन्होंने अपने आजू-बाजू खड़े रखा। नामवर सिंह , केदारनाथ सिंह , राजेंद्र यादव , असगर वजाहत जैसे बड़े लेखक या अन्य जो भी मेहमान आए उनसे हमारा परिचय छिंदवाड़ा के साथ कराना नहीं भूले। पारिवारिक विष्णु खरे। मेरे बच्चे चाहते थे कि खरे जी घर आएँ। एक साल मेरे जन्मदिन पर वे घर आए और भोजन भी किया। बच्चों के साथ मस्ती की। मेरी बड़ी बेटी मुबंई में नौकरी करती है। छोटी बेटी और मैं उससे मिलने मुबंई गए थे । बेटियाँ विष्णु खरे की फिल्म अभिनेत्री बेटी अनन्या खरे से मिलना चाहती थी। मैंने खरे जी को फोन किया । उन्होंने अनन्या को कहा। वे स्टुडियो में थी। हमें बुलाया , सैट भी दिखाया। आज तक उनसे संपर्क जीवंत हैं। खरे जी इस दुनिया से विदा हुए उसके चार महीने पूर्व भी मैं अपनी पत्नी के साथ मुंबई में उनके घर पर मिला था। उन दिनों वे अपनी बेटी अनन्या के फ्लैट में थे । उन्होंने ंअपनी श्रीमती को फोन किया , दिनेश और बहू आए हैं । वे तुरंत आईं। दोनों महिलाएं जब बातों मे मशगूल हो गई तो उन्होंने मुझे अंदर चलने का इशारा किया। कुछ दिन पहले ही उन्हें माइनर अटैक आ चुका था इसलिए परिवार उन्हें कहीं जाने नहीं दे रहा था। उस दिन उन्होंने मुझसे कहा था, देखना मैं चला जाऊंगा। मैंने भी मना किया था। वे किसी की नहीं माने दिल्ली साहित्य अकादमी चले गए और फिर हमारे बीच नहीं रहे।</p><p dir="ltr"> विष्णु खरे ने 19 सितम्बर 2018 को दिल्ली के जे बी पंत अस्पताल में दिन के साढ़े तीन बजे अपनी आखिरी साँसे ली। मुझे चार बजे खबर लगी तब मैं डेनियनशल कालेज छिंदवाड़ा के एक कार्यक्रम में अतिथि था। खबर सुनने के बाद मैं वहाँ फिर रुक नहीं पायाऔर अपना वक्तव्य दिए बिना ही चला आया था। </p><p dir="ltr"> विष्णु खरे को कहीं भी काम चलाऊपन पसंद नहीं था। दबंगता इतनी कि वे फिसलने की सीमा पर खड़े होकर अपने गिरने की परवाह न करते हुए भी अपनों पर कटाक्ष कर देते थे। विष्णु खरे की मूर्ति भंजक छवि को हमने छिंदवाड़ा में भी महसूस किया। कविता और जीवन दोनों में उनकी लीक से हटकर चलने की बगावती भूमिका में हमेशा वृद्धि हुई । वे अपने आप को वामपंथी कहलाना पसंद करते थे परंतु सक्रियता के साथ लड़ना भिडना मंजूर नहीं था। मार्क्सवाद के खिलाफ उन्होंने सीधे-सीधे कुछ नहीं लिखा।विष्णु खरे को कहीं भी काम चलाऊपन पसंद नहीं था। दबंगता इतनी कि वे फिसलने की सीमा पर खड़े होकर अपने गिरने की परवाह न करते हुए भी अपनों पर कटाक्ष कर देते थे। विष्णु खरे की मूर्ति भंजक छवि को हमने छिंदवाड़ा में भी महसूस किया। कविता और जीवन दोनों में उनकी लीक से हटकर चलने की बगावती भूमिका में हमेशा वृद्धि हुई । वे अपने आप को वामपंथी कहलाना पसंद करते थे परंतु सक्रियता के साथ लड़ना भिडना मंजूर नहीं था। मार्क्सवाद के खिलाफ उन्होंने सीधे-सीधे कुछ नहीं लिखा। विष्णु खरे हमारे दौर के सबसे ज्यादा मेहनतकश कवियों में से हैं । साहित्य के दुर्वासा कहे जाने वाले विष्णु खरे सत्य के कथाकार और वैज्ञानिक कथाकार थे जो अपने शोध में किसी भी तथ्य को छोड़ना नहीं चाहते थे, उनकी कविताओं में उनकी उपस्थिति हमेशा गूंजते रहेगी।</p><p dir="ltr">---------------------------------------------------------------</p><p dir="ltr"><b>दिनेश भट्ट ,न्यू पहाड़े कालोनी ,छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश</b></p>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-75939032619575221452022-04-17T12:12:00.001-07:002022-04-17T12:21:52.511-07:00पवारी लोक भाषा में मध्यप्रदेश का पहला कवि सम्मेलन : कवियों ने कविताएं सुनाकर समाज को दिया सकारात्मक संदेश<div><b>पवारी लोक भाषा में मध्यप्रदेश का पहला कवि सम्मेलन : कवियों ने कविताएं सुनाकर दिया सकारात्मक संदेश</b></div><div><b><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-X3TEgawQNHE/YlxncRyl1AI/AAAAAAAAfz8/-IU0X_JkmaIsRkVJhNQ555hzp2pGDBPDgCNcBGAsYHQ/s1600/1650222954853414-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-X3TEgawQNHE/YlxncRyl1AI/AAAAAAAAfz8/-IU0X_JkmaIsRkVJhNQ555hzp2pGDBPDgCNcBGAsYHQ/s1600/1650222954853414-0.png" width="400">
</a>
</div><br></b></div><div><br></div><div>मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में मुलताई क्षेत्र के गांव डहुआ में पवारी लोक भाषा में प्रदेश का पहला कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें पूरे प्रदेश के पवारी भाषा के कवियों ने हिस्सा लिया और पवारी भाषा में कविताएं सुनाकर सभी को हंसाया और सकारात्मक संदेश समाज को दिया।</div><div><br></div><div>डहुआ में भर्तहरि सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। जिसके तहत यह कवि सम्मेलन शनिवार की रात को आयोजन किया गया था।</div><div><br></div><div>कवियों ने समाज की विभिन्न परंपराओं और प्रभाव को लेकर कविता सुनाई। समाज से नशे जैसी कुरीति को दूर करने के लिए कवियों ने कविताओं के जरिए नशे के दुष्प्रभाव बताए और समाज के लोगों से शराब छोड़ने का आग्रह किया।</div><div><br></div><div>वीडियो <a href="https://www.bhaskar.com/local/mp/hoshangabad/multai/news/states-first-poet-conference-organized-in-pawari-folk-language-poets-gave-positive-message-to-the-society-by-reciting-poems-129673324.html?media=1">लिंक यहां उपलब्ध है</a>.... </div><div><br></div><div>डहुआ में आज रविवार को सम्मान समारोह आयोजन किया गया है। जिसमें पवार समाज की प्रतिभाओं का सम्मान किया जाएगा। इस कार्यक्रम में प्रदेश से समाज के लगभग 5 हजार लोगों के पहुंचने की बात कही जा रही है।</div><div><br></div><div><br></div><div>कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय पहलवान शिवानी पवार और अंतरराष्ट्रीय पर्वतारोही मेघा परमार का भी सम्मान किया जाएगा।</div><div><br></div><div><b>कवि सम्मेलन में यह कवि रहे मौजूद</b></div><div><br></div><div>इस कवि सम्मेलन में बैतूल बाजार के गीतकार अखिलेश परिहार, पांढुर्णा के दिनेश किनकर, छिंदवाड़ा से परसराम परिहार, पांढुर्णा से तुकाराम कीनकर, तानबाजी बारंगे, संतोष कौशिक, दुर्ग भिलाई से आरके पवार, नागपुर से सुरेश देशमुख, भोपाल शिविर परमार, बेतूल से जगन्नाथ पाटेकर, पांढुर्णा से दयाराम देशमुख, बैतूल से धर्मेंद्र, बैतूल बाजार से जय पवार, उपस्थित थे।</div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-91369524062795139172022-04-17T11:22:00.001-07:002022-04-17T12:21:17.573-07:00Pawar Samaj का महाकुंभ: मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई में समाज की प्रतिभाओं का सम्मान<div><b>छिंदवाड़ा जिले की बेटी शिवानी पवार डोंगरे को पुरस्कार</b><br></div><div><b><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-pHg6aPbuegM/YlxaymX9dkI/AAAAAAAAfzo/_1QBNx8rgtQXVYZb5kzdZvtM9kH-8GGIgCNcBGAsYHQ/s1600/1650219716316734-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-pHg6aPbuegM/YlxaymX9dkI/AAAAAAAAfzo/_1QBNx8rgtQXVYZb5kzdZvtM9kH-8GGIgCNcBGAsYHQ/s1600/1650219716316734-0.png" width="400">
</a>
</div><br></b></div><div><p><b>जिसमें पवारी प्रतिभाओं को डेढ़ लाख रुपए के नकद पुरस्कार और 35 हजार रुपए की छात्रवृत्ति प्रदान की गई। कार्यक्रम में अंतररर्राष्ट्रीय महिला पहलवान व दो बार रजत पदक विजेता छिंदवाड़ा जिले की बेटी शिवानी पवार डोंगरे शामिल हुई। विधायक ने </b><b>उन्हें 31,000 रुपए का नकद पुरस्कार दिया।</b></p><p><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-SFgYRUNPWMw/YlxaxeZfYWI/AAAAAAAAfzk/zph3XKjnhe4obBV8tCZz8R-ekGLbtqrNwCNcBGAsYHQ/s1600/1650219711735436-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-SFgYRUNPWMw/YlxaxeZfYWI/AAAAAAAAfzk/zph3XKjnhe4obBV8tCZz8R-ekGLbtqrNwCNcBGAsYHQ/s1600/1650219711735436-1.png" width="400">
</a>
</b></div><b><br></b><p></p></div><div>मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में मुलताई तहसील के ग्राम डहुआ में क्षत्रिय पवार समाज की प्रतिभाओं का महाकुम्भ आयोजित किया गया। मां कामाख्या देवी मंदिर परिसर में रविवार को हुए आयोजन में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिभाएं शामिल हुई। इसमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुत दी गई। </div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-qgCLipX2z2I/YlxawCcVUCI/AAAAAAAAfzg/0oZ0SgksIOw8F6GSW12VwSFKseRjdV7DACNcBGAsYHQ/s1600/1650219706581577-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-qgCLipX2z2I/YlxawCcVUCI/AAAAAAAAfzg/0oZ0SgksIOw8F6GSW12VwSFKseRjdV7DACNcBGAsYHQ/s1600/1650219706581577-2.png" width="400">
</a>
</div><br></div><div>कार्यक्रम में जिला, संभाग, राज्य स्तर की हर क्षेत्र की प्रतिभाओं, हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी परीक्षा में 85 प्रतिशत से ऊपर अंक लाने वाले छात्र-छात्राओं का सम्मान किया गया। राष्ट्रीय भर्तृहरि विक्रम भोज पुरस्कार समिति भारत द्वारा यह तृतीय प्रतिभा सम्मान समारोह है। इसे मुलताई क्षेत्र में आयोजित किया गया।</div><div><article class="_4c7bbbf9"><div class="b7841741"><p><strong>समाज के लिए मिलकर काम करें</strong></p><p><strong></strong></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><strong>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-UEHxI5KyvNc/Ylxau7coC2I/AAAAAAAAfzc/trKtd1gPUjg7tOzzh2W1Tr0MHEe6HF-OACNcBGAsYHQ/s1600/1650219701801761-3.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-UEHxI5KyvNc/Ylxau7coC2I/AAAAAAAAfzc/trKtd1gPUjg7tOzzh2W1Tr0MHEe6HF-OACNcBGAsYHQ/s1600/1650219701801761-3.png" width="400">
</a>
</strong></div><strong><br></strong><p></p><p>कार्यक्रम में अतिथियों ने कहा कि समाज को आगे लाने के लिए हर किसी को मिलकर प्रयास करना पड़ेगा। पवार समाज के लोग क्षेत्र में बहुत अधिक संख्या में निवास करते हैं। ऐसे में सब को एकजुट होकर काम करना चाहिए। जिससे कि समाज का उद्धार हो सके। इस आयोजन की अध्यक्षता कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय रायपुर के पूर्व कुलपति डाॅ.मानसिंह परमार ने की। मुख्य अतिथि के रूप में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपतिडाॅ.पीके बिसेन थे। कार्यक्रम में बैतूल विधायक निलय डागा, मुलताई विधायक सुखदेव पांसे, भाजपा नेता राजा पवार सहित हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए।</p><p><strong>डेढ़ लाख रुपए के नकद पुरस्कार बांटे</strong></p><p><strong></strong></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><strong>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-pxrhS0yNB-4/Ylxatm5r8vI/AAAAAAAAfzY/YwJAdmNGiZcBhSARr5itlsv33Wa5yTR3QCNcBGAsYHQ/s1600/1650219696799584-4.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-pxrhS0yNB-4/Ylxatm5r8vI/AAAAAAAAfzY/YwJAdmNGiZcBhSARr5itlsv33Wa5yTR3QCNcBGAsYHQ/s1600/1650219696799584-4.png" width="400">
</a>
</strong></div><strong><br></strong><p></p><p>जिसमें पवारी प्रतिभाओं को डेढ़ लाख रुपए के नकद पुरस्कार और 35 हजार रुपए की छात्रवृत्ति प्रदान की गई। कार्यक्रम में अंतररर्राष्ट्रीय महिला पहलवान व दो बार रजत पदक विजेता शिवानी पवार डोंगरे शामिल हुई। विधायक ने उन्हें 31,000 रुपए का नकद पुरस्कार दिया।</p><p>साभार : भास्कर डॉट कॉम </p><p>#पवारसमाज #pawarsamaj #betul #dongrejionline #daksfamilyshow #dongredigitalfamily #मेरागांवतंसरामाल #छिंदवाड़ाछवि #डोंगरे_की_डायरी #chhindwarachhavi </p></div></article></div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-90308784922019455892022-04-12T23:24:00.001-07:002022-04-12T23:36:27.429-07:00Yunus Khan : 'मैंने सबसे पहले छिंदवाड़ा आकाशवाणी पर केजुअल कम्पेयर के रूप में ज्वाइन किया और 1996 में विविध भारती मुंबई पर आ आया' <p dir="ltr" id="docs-internal-guid-05b1bea4-7fff-c293-c8e7-085c00212a89"><b>एक मुलाकात विविध भारती के एनाउंसर युनूस खान के साथ</b></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-05b1bea4-7fff-c293-c8e7-085c00212a89"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-iWLXMHsunY0/YlZsrOjlBHI/AAAAAAAAfyE/WRteM4_ZL9YNoD85Rig9-3imV_TlE7f4ACNcBGAsYHQ/s1600/1649831083385397-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-iWLXMHsunY0/YlZsrOjlBHI/AAAAAAAAfyE/WRteM4_ZL9YNoD85Rig9-3imV_TlE7f4ACNcBGAsYHQ/s1600/1649831083385397-0.png" width="400">
</a>
</div><br><p></p><p dir="ltr">प्रिय दोस्तो, आज मैं आपकी मुलाकात करा रहा हूँ एक ऐसी शख्शियत से जिन्होंने रेडियो की दुनिया में बहुत नाम कमाया है। जी हां, दोस्तों आपने बिल्कुल ठीक समझा है। मैं विविध भारती मुंबई के मशहूर उदघोषक, युवा दिल की धड़कन युनूस खान जी की बात कर रहा हूँ।</p><p dir="ltr">तो पेश है युनूस खान जी से हुई बातचीत के अश</p><p dir="ltr"><b>बिजेन्द्र जयजान </b>: सर नमस्कार</p><p dir="ltr"><b>युनूस खान</b> : नमस्कार भईया |</p><p dir="ltr"><b>बिजेन्द्र जयजान : </b>सर सबसे पहले तो आप ये बताये कि आपका जन्म कब और कहां हुआ और आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में भी बतायें।</p><p dir="ltr"><b>युनूस खान :</b> विजेन्द्र जी, मेरा जन्म 1972 में मध्य प्रदेश का एक छोटे से शहर दमोह में हुआ था। मैं जिस में परिवार से आता हूँ वहाँ काफी लोग शिक्षा के क्षेत्र में है, इंजीनियर्स है। मेरे पिता जी इंजीनियर रहे B.S.N.L में और एक वैल एजुकेटिड बैकग्राउंड से मेरा ताल्लुक है।</p><p dir="ltr"><b>बिजेन्द्र जयजान</b> : सर अपनी शिक्षा के बारे में बताये।</p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-opaa9kWXxz0/YlZsqOWoToI/AAAAAAAAfyA/sorQ5zeT1wEaIRkvnOoyXzuAmThkSOwKwCNcBGAsYHQ/s1600/1649831077978209-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-opaa9kWXxz0/YlZsqOWoToI/AAAAAAAAfyA/sorQ5zeT1wEaIRkvnOoyXzuAmThkSOwKwCNcBGAsYHQ/s1600/1649831077978209-1.png" width="400">
</a>
</div><br><p></p><p dir="ltr"><b>युनूस खान</b> : बिजेन्द्र जी, मैंने फिजिक्स से BSc. किया है और मेरे फादर हालांकि वे चाहते थे कि मैं आगे एम.एससी करूं और इंजीनियरिंग की दुनिया में जाऊँ, लेकिन मेरी दिलचस्पी नहीं थी उसमें मैंन उनसे साफ कह दिया था कि ये मेर मन का फील्ड नहीं है। उसके बाद मैंने जनर्लिज्म में मास्टर डिग्री की है और हिन्दी साहित्य में भी मास्टर डिग्री की है।</p><p dir="ltr"><b>बिजेन्द्र</b> : आपके छात्र जीवन की कोई ऐसी घटना जिसको आप अभी तक भुला न पाये हों?</p><p dir="ltr"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-PHV1vmq7O-Q/YlZvaKaPpTI/AAAAAAAAfyY/Qh-MjEXDaigAZxZjCn8liQJSFAZA6BESQCNcBGAsYHQ/s1600/1649831782634601-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-PHV1vmq7O-Q/YlZvaKaPpTI/AAAAAAAAfyY/Qh-MjEXDaigAZxZjCn8liQJSFAZA6BESQCNcBGAsYHQ/s1600/1649831782634601-0.png" width="400">
</a>
</div><br></p><p dir="ltr"><b>युनुस खान</b> : बहुत सी ऐसी घटनायें है। हम थियेटर किया करते थे। नुक्कड़ नाटक किया करते थे। वाद विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया करते थे। बहुत सारी घटनाएं हैं। किसी एक को याद करना थोड़ा मुश्किल है ( हंसते हुए)। </p><p dir="ltr"><b>बिजेंद्र</b> : सर आपको रेडियो में आकाशवाणी पर आने की इच्छा कब और किसकी प्रेरणा से हुई? सबसे पहले आपने किस रेडियो स्टेशन पर ज्वाइन किया और आप विविध भारती पर कच जाये?</p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-TqLH4doRYmc/YlZsozaTwPI/AAAAAAAAfx8/NhBZq_ztM0cbR_kf5DUVcZOG4M201dChQCNcBGAsYHQ/s1600/1649831073403214-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-TqLH4doRYmc/YlZsozaTwPI/AAAAAAAAfx8/NhBZq_ztM0cbR_kf5DUVcZOG4M201dChQCNcBGAsYHQ/s1600/1649831073403214-2.png" width="400">
</a>
</div><br><p></p><p dir="ltr"><b>युनूस खान</b> : आकाशवाणी में आने की प्रेरणा (सोचते हुए) ऐसा है कि जब मैं कॉलेज में पढ़ रहा था तभी से रेडियो पर वार्तायें करने के लिए जाता था। धीरे धीरे बहुत रेगुलर जाना हो गया। मैंने सबसे पहले छिन्डवाड़ा आकाशवाणी केन्द्र पर केजुअल कम्पेयर के रूप में ज्वाइन किया उसके बाद जबलपुर और 1996 में विविध भारती पर आया।</p><p dir="ltr"><b>बिजेन्द्र</b> : सबसे पहले आपने कौन-सा कार्यक्रम पेश किया, आकाशवाणी से सम्बन्धित आपका यादगार पल।</p><p dir="ltr"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-WXNdgWflq4Y/YlZvZC_WGYI/AAAAAAAAfyU/8by6DWt33zgie8YV92IJOgCsYz1kwQvpQCNcBGAsYHQ/s1600/1649831777289950-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></p><p dir="ltr"><b>युनूस खान : </b>सबसे पहले (सोचते हुए) मेरा ख्याल है कि मैंने तराने नये पुराने कहिये एक प्रोग्राम था वो किया और पत्रावली भी लगभग शुरुआती दौर में ही मैं और आशा जी किया करते थे। ये दो प्रोग्राम मेरे शुरुआती प्रोग्राम में से थे।</p><p dir="ltr"><b>बिजेन्द्र</b> : आप एक बहुत ही अच्छे अनाउंसर है। आपकी प्रस्तुति को सुनते हुये पता ही नहीं चलता कि कार्यक्रम कब समाप्त हो गया। क्या रेडियो से हटकर भी आपका कोई शौक है?</p><p dir="ltr"><b>युनूस खान : </b>जी, रेडियो मेरे बहुत सारे शौक में से एक है। लिखने का शौकीन हूं। कवितायें लिखता हूं इसके अलावा संगीत और सिनेमा पर मेरे लेख विभि पत्र-पत्रिकाओं में और यूनिवर्सिटी में छप चुके और लिखने के अलावा पढ़ने का, टेक्नोलॉजी बहुत ज्यादा शौक है। </p><p dir="ltr"><b>साभार : सन्निहित रेडियो लिस्नर्स क्लब</b></p><br>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-51544345758288782492022-04-07T13:51:00.001-07:002022-04-07T14:40:04.807-07:00Vanshavali : तंसरामाल में 20 साल बाद पोथी का वाचन, भट राजू सोरट से 10 पीढ़ियों के नाम जानकर डोंगरे परिवार अचंभित <div><b>तंसरामाल (उमरानाला)।</b> पूर्वजों के इतिहास व उत्तरोत्तर नामावली को संरक्षित रख उनके वंशजों को सुनाने की भाट (राव) बही प्रथा 21 वीं सदी में भी जारी है। गांवों में विभिन्न जातियों के वंशजों में राव भाट के आगमन पर परिवार में त्योहार जैसा उत्साह रहता है। उमरानाला (Umranala) के समीपस्थ ग्राम तंसरामाल (Tansaramal) में बिछुआ रोड स्थित अशोक डोंगरे पिता स्व. सम्पतराव डोंगरे के घर में 14 मार्च 2022 को सोमवार रात 8 बजे पोथी वाचन किया गया। <br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-XpZpaFQdNvc/Yk9Ow7as2cI/AAAAAAAAfxc/UhKPhtWFMPk9w-_k1fNuOEAnwzJcz_7rwCNcBGAsYHQ/s1600/1649364669779421-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div><b>उमरानाला के भट राजू सोरट (Raju Sorath) ने पोथी की पूजा के बाद कथा सुनाई। इस दौरान उन्होंने राजा भोज </b><b>(Raja bhoj) </b><b>की कथा सुनाई। धार नगरी के चक्रवर्ती महाराज राजा भोज क्षत्रिय पवार समाज (Kshatriya Pawar Samaj) </b><b>के पूर्वज है। </b></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-y--aDumwOFw/Yk9Ovl2NPSI/AAAAAAAAfxY/SRXJgKhcBP07zgF0mSC7Ix_DIqi4z4NJwCNcBGAsYHQ/s1600/1649364665369987-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div>सोरट ने डोंगरे परिवार की 10 पीढ़ियों के नाम भी बताएं। अशोक डोंगरे ( Ashok Dongre) के पिता स्व. संपतराव डोंगरे के दादाजी का नाम धुडल्या महाजन से लेकर पिछली 10 पीढ़ियों (Family Tree) के नाम बताए गए, जिसे सुनकर डोंगरे परिवार अचंभित रह गया। </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-badfclkNN9I/Yk9OumiNvJI/AAAAAAAAfxU/eIe-m11aM-EKfQCl-SWyeQSqxhXvAghrwCNcBGAsYHQ/s1600/1649364661535797-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div>भट राजू सोरट ने बताया कि उनके परिवार के द्वारा कई पीढ़ियों से यह काम किया जा रहा है। उनसे पास 500 सालों का इतिहास लिखा है। यानी 500 सालों की कई पीढ़ियों के नाम दर्ज है। <br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-RGfs3HDAGmM/Yk9Otoh_yVI/AAAAAAAAfxQ/GoEiKrz4iF0Ol7d17XlWAFab1P1NsaofQCNcBGAsYHQ/s1600/1649364657322681-3.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div><br></div><div><b>अपनी परिवार की बना सकते है वंशावली </b></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-_LE4jxpR-Wk/Yk9OssKu7DI/AAAAAAAAfxM/aElNBF8c1xoBHtkIjdx7J18TbD9XmzyXQCNcBGAsYHQ/s1600/1649364653571738-4.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><b>(राजू सोरट के साथ अशोक डोंगरे और पुत्र विशाल) </b></div><div><br></div><div>भट राजू सोरट (Raju Sorath) ने बताया कि क्षत्रिय पवार समाज का कोई भी सदस्य हमसे संपर्क कर वंशावली बनवा सकते है। इस वंशावली, फैमिली ट्री (Family Tree) को आप अपने घर में फोटो की तरह लगा सकते है। इससे परिवार को अपने पूर्वजों की 8-10 पीढ़ियों की जानकारी मिल जाती है। इससे बच्चों को पूर्वजों को जानने को मिलता है। </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-hVAi9s7UBs0/Yk9OrmzH3CI/AAAAAAAAfxI/A9DZi2qaF5UiUM4elsrsQroGngdjOeZFwCNcBGAsYHQ/s1600/1649364649371705-5.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</a>
</div><br></div><div><b>रावों की रोटी</b></div><div><b><br></b></div><div>गांवों में बही भाट के लिए बनाए जाने वाले विशिष्ट भोजन को रावों की रोटी कहा जाता है। रावों को सम्बंधित वंशजों द्वारा परिवार के सभी घरों में भोजन के लिए न्यौता दिया जाता है। इसमें कई प्रकार के व्यंजन तैयार किए जाते हैं। भोजन के बाद राव श्लोक द्वारा परिवार को मंगलकामना व खुशहाली का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।</div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-ECveoBgv4Oc/Yk9OqANVe2I/AAAAAAAAfxE/rUSkWvSVSGQU9UJzi0XT9CwHs6NRZ9drACNcBGAsYHQ/s1600/1649364643624478-6.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><b>(पत्रकार रामकृष्ण डोंगरे और भट राजू सोरट)</b> </div><div><br></div><div><b>राव बही का वाचन</b></div><div>समस्त परिवार में भोजन के बाद रावों द्वारा ऐतिहासिक बही का वाचन किया जाता है। रावों की बही में जन्म व मृत्यु का पंजीकरण प्राचीन समय से किया जाता रहा है। आदिकाल से इस बही को संरक्षित रखा हुआ है। बही के पूजन के बाद राव उच्च आसन पर बैठकर वंशजों के यशगान व पीढिय़ों का वाचन करते हैं। </div><div><br></div><div>रावों में आगमन के साथ ही बैठक स्थल पर अखंड ज्योति जलाई जाती है। बही वाचन के दौरान परिवार के समस्त सदस्य उसका श्रवण करते हैं। रावों को उनके समाज वंशजों के घरों में रहवास के दौरान हर्ष के साथ अतिथि सेवा की जाती है। </div><div><br></div><div>राव भाट की बही में अपने परिवार के नए सदस्य का नाम दर्ज करवाने पर यजमान नजराना पेश करते हैं। नजराने में यजमान द्वारा नकद राशि के साथ वस्त्र भी दिए जाते हैं।</div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-21933716734372423962022-04-02T08:42:00.001-07:002022-04-02T08:45:27.817-07:00Youth Talent : छोटे से गांव में रहने वाले किसान के बेटे अविनाश ने साफ्टवेयर इंजीनियर बनकर दिखाया कमाल<div><b>अमेरिकी की नामी सॉफ्टवेयर कंपनी Red Hat में इंजीनियर है 30 वर्षीय अविनाश डोंगरे </b><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-4dqOwIC_nus/Ykhu6TdNiRI/AAAAAAAAfwA/9ar8wcbq9MYzUm9149nUwPqzumIaQCEmACNcBGAsYHQ/s1600/1648914146271460-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div><b>छिंदवाड़ा । </b>एक किसान परिवार में सन 1992 में जन्मे श्री अविनाश डोंगरे ने कमाल कर दिखाया है। वे अपने ग्राम के इकलौते साफ्टवेयर इंजीनियर है। अविनाश डोंगरे छिंदवाड़ा जिले के मोहखेड़ विकासखंड स्थित उमरानाला के समीपस्थ ग्राम तंसरामाल में रहते हैं। </div><div><br></div><div>*शिकारपुर में ग्राम सचिव के पद पर कार्यरत रामराव डोंगरे और सुभद्रा डोंगरे के ज्येष्ठ पुत्र* अविनाश अमेरिका की नामी सॉफ्टवेयर कंपनी Red Hat में कार्यरत है। *उनका सालाना सैलरी पैकेज 24 लाख है।* </div><div><br></div><div>पुणे में उनकी कंपनी का आफिस है। लेकिन पिछले दो साल से वे ग्राम तंसरामाल में रहकर ही वर्क फ्रॉम होम सेवाएं दे रहे है। इससे पहले आपने टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज में सिस्टम इंजीनियर के तौर पर काम किया था।</div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-hLkmuirQtBI/Ykhu4uBt9vI/AAAAAAAAfv8/RNcp2LZBwA0mmDE4xgRCFmkLpAtPhSjlgCNcBGAsYHQ/s1600/1648914137524605-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</a>
</div><br></div><div>अविनाश डोंगरे ने भोपाल के राजीव गांधी प्रौद्योगिकी संस्थान से कंप्यूटर साइंस से बीई किया है। </div><div><br></div><div>वे कहते हैं कि कड़ी मेहनत और लगन हो तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। इन दिनों बड़ी तादाद में युवा साफ्टवेयर इंजीनियर का जॉब कर रहे है। हमारा काम थोड़ा मुश्किल जरूर होता है। लेकिन ये सब काम करना आज की युवा पीढ़ी के लिए नामुमकिन बिल्कुल नहीं है। </div><div><br></div><div>वे अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता, परिवार और गुरुजनों को देते है।<br></div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-76677258928977824482022-03-27T23:24:00.001-07:002022-03-27T23:37:39.675-07:00Dr Deepak Acharya's Desi Gyan: घूमो, फिरो, वर्जिश करो, धूप में निकलो, पसीना आए तो खूब आने दो... फायदे भी जान लो <div><b>शरीर को बीमारियों, त्वचा रोगों से दूर रखना है तो पसीना बहना जरूरी : देसी ज्ञान </b></div><div><b><br></b></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-mxKAskOvLWg/YkFUkXkjQbI/AAAAAAAAftg/q_WrLKDBLaIXp6kK0j9nAub84Bk33IQjwCNcBGAsYHQ/s1600/1648448654373608-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</a>
</div><br></div><div>कुछ दिनों पहले मैंने <u><a href="https://www.facebook.com/patalkot">(Dr Deepak Acharya</a></u>) बताया था कि अगली पोस्ट ऐसी होगी कि सबके पसीने छूट जाएंगे...तो फिर पढ़िये आज की ये पोस्ट, फिर बताइएगा कि कौन-कौन तैयार है पसीने छुटाने के लिए?...</div><div><br></div><div>मेरी रिसर्च और घुमक्कड़ी का बहुत बड़ा हिस्सा जंगलों और पहाड़ों पर बीतता है। गर्मियों में बड़ी-बड़ी चट्टानों और पहाड़ों पर हाइकिंग करना हम सभी के लिए टेढ़ी खीर होती है। शरीर गर्मी और थकान की वजह से पसीने से तर बतर हो जाता है। एक बार भरी गर्मी में पहाड़ों पर भटकते हुए जब एक पेड़ की छांव में आराम करने का मौका मिला तो पसीने से तरबतर मैं गर्मी को कोसे जा रहा था। </div><div><br></div><div>मेरे साथ बगल में बैठे एक बुजुर्ग आदिवासी जानकार ने आंखें बड़ी करते हुए मुझे समझाना शुरू किया कि महीने में कम से कम एक बार शरीर से पसीना फूटना जरूरी है। मेरे द्वारा ज्यादा पूछे जाने पर बताया गया कि शरीर को बीमारियों, त्वचा रोगों से दूर रखना है तो पसीना बहना जरूरी है। बात तो बड़ी लॉजिकल कही उन्होंने। शरीर को डेटॉक्स करने में पसीना बड़ा अहम रोल निभाता है। शरीर के भीतर के हेवी मेटल्स हों या तमाम तरह के केमिकल्स या त्वचा पर जमे हुए बैक्टेरिया, सबको बाहर फेंक निकालने के लिए पसीना छूटना जरूरी है।</div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-cvmxlMvHU6o/YkFVsiFNa9I/AAAAAAAAfts/0M5B50HILtwf6ktYDbBAC_wo4GkY3KVMQCNcBGAsYHQ/s1600/1648448943999991-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-cvmxlMvHU6o/YkFVsiFNa9I/AAAAAAAAfts/0M5B50HILtwf6ktYDbBAC_wo4GkY3KVMQCNcBGAsYHQ/s1600/1648448943999991-0.png" width="400">
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</div><br></div><div><b>क्या कहती है चीन की रिसर्च जर्नल</b> </div><div><br></div><div>चीन का एक रिसर्च जर्नल है, एनवायरनमेंट साइंस पॉल्युशन रिसर्च इंटरनेशनल, इसमें सन 2016 में वैज्ञानिक शेंग की टीम ने एक बेहतरीन क्लिनिकल रिपोर्ट प्रकाशित करी। ये रिपोर्ट बताती है कि जिन लोगों ने एक्सरसाइज या किसी फीजिकल एक्टिविटी के कारण पसीना बहाया, उनके शरीर में हेवी मेटल्स की मात्रा पसीना आने से पहले की तुलना में कम आंकी गयी। मजे की बात ये भी थी कि हेवी मेटल्स की जानकारी के लिए इन लोगों के मूत्र और पसीने के सैम्पल लिए गए थे। पसीने के सैम्पल में ज्यादा हेवी मेटल्स देखे गए। </div><div><br></div><div>अब आपके दोस्त #दीपकआचार्य से एनवायरनमेंटल एन्ड पब्लिक हेल्थ जर्नल की स्टडी के बारे में भी जान लीजिये। सन 2012 में स्टीफन जीनियस और उनके साथियों ने एक बेहतरीन रिसर्च स्टडी करी। बिस्फेनॉल ए, एक इंडस्ट्रियल केमिकल है जो प्लास्टिक और रेसिंस मैनुफैक्चरिंग प्लांट में काम करने वाले लोगों या आसपास के रहवासियों के शरीर में आ जाता है जिसके कई हेल्थ इफ़ेक्ट हैं। जीनियस की टीम ने इस तरह की इंडस्ट्री में काम करने वाले लोगों के खून, पेशाब और पसीने के सैम्पल लिए, और इन्होंने पाया कि सबसे अधिक मात्रा में पसीने के जरिये ही बिस्फेनॉल ए रिलीज़ हुआ। </div><div><br></div><div><b>हर्बल एक्सपर्ट <u><a href="https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10227975033145922&id=1375554471">डॉ. दीपक आचार्य के फेसबुक वॉल से </a></u></b></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-9RaWDXWHfn8/YkFVrrh0YjI/AAAAAAAAfto/z39tNdrDAfQfmSyHdHPK4i5xvP94_TXjQCNcBGAsYHQ/s1600/1648448939707879-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-9RaWDXWHfn8/YkFVrrh0YjI/AAAAAAAAfto/z39tNdrDAfQfmSyHdHPK4i5xvP94_TXjQCNcBGAsYHQ/s1600/1648448939707879-1.png" width="400">
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</div><br></b></div><div><b><i>पसीना आने के वक्त त्वचा पर जितने बैक्टीरिया हैं, सारे पसीने में लिपटकर बाहर फेंक दिये जाते हैं... </i></b><br></div><div><br></div><div>पसीने को लेकर इतना ज्ञान पेल दिया गया है तो 2016 में जर्नल ग्लायकोबायोलॉजी में छपी रॉबिन पीटरसन की रिपोर्ट का जिक्र आना भी जरूरी है। इन्होंने बताया कि पसीने में ग्लायकोप्रोटीन्स होते हैं जो बैक्टीरिया को आकर्षित करते हैं, पसीना आने के वक्त त्वचा पर जितने बैक्टीरिया हैं, सारे पसीने में लिपटकर बाहर फेंक दिये जाते हैं। पसीने की जो गंध होती है, वो टॉक्सिन्स और बैक्टीरिया की वजह से ही होती है।</div><div><br></div><div><b>घूमो, फिरो, वर्जिश करो, धूप में निकलो, </b></div><div><b>पसीना आए तो खूब आने दो... </b></div><div><b><br></b></div><div>अब इतनी सारी पंचायत करने का मतलब क्या हुआ? इट्स वेरी सिंपल बाबूजी... घूमो, फिरो, वर्जिश करो, धूप में निकलो, पसीना आए तो खूब आने दो, खट्ट से एयर कंडीशनर में या छाँव में घुसो मत। प्रकृति ने व्यवस्था कर रखी है आपको डेटॉक्स करवाने की, आजमाओ उसे। पूरे शरीर पर छन्नी जैसे छेद हैं, पसीना बहने की नालियां, सारी चोक करके रखे हो, दुनिया भर के टीम-टाम और आलतू-फालतू केमिकल्स बॉडी के भीतर घुसे पड़े हुए हैं। चोक नालियों को खोलो, पसीना बहेगा तो ज़हर निकालेगा, निकालो.. </div><div><br></div><div>इन गर्मियों में हर महीने कम से कम 2 बार धूप झेलो, पसीना छूटने दो, पानी के बैलेंस को भी बनाए रखो,पानी भी पीते रहो लेकिन पसीने से डरो मत, ये पसीना आपकी सेहत ही बनाएगा, सच्ची, बाय गॉड की कसम❤️. .पसीने के निकलने से इम्युनिटी भी बढ़ती है.. पसीना निकालकर शाम को नहाना भी जरूरी है, क्योंकि पसीने के ग्लायकोप्रोटीन्स शरीर की त्वचा पर चिपके रह गए तो बैक्टीरिया को आकर्षित करेंगे। बुजुर्गों की एक बात तो याद होगी ही ना, खेलकूद कर आओ या यात्रा के बाद घर पहुँचों तो पहले स्नान करो❤️ अब लॉजिक को को-रिलेट करना आसान होगा, है ना😍</div><div><br></div><div>कुल मिलाकर, मुद्दे की बात ये है कि.. निकलो तो सही बाहर, #भटको तो सही। ये धूप, पसीना, वर्जिश की बात सारे के सारे लोग जानते हैं, पर मानते नहीं.. #देशकाज्ञान है, लॉजिक सटीक और सॉलिड है, बाकी आपकी इच्छाशक्ति...हम तो खूब बहाते हैं पसीना...भई अपना काम है बनता, बाकी जैसा समझे जनता 😃</div><div><br></div><div>निशाना सही लगा या नहीं, ये आप तय करें❤️</div><div><b><br></b></div><div><b>©® डॉ. दीपक आचार्य, हर्बल विशेषज्ञ </b></div><div>#traditionalknowledge #indigenouspeople #देसी #पातालकोट</div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-48723157607401428952022-03-27T02:30:00.001-07:002022-03-28T03:34:19.907-07:00Chhindwara Viral News : ये तीन युवक आखिर क्यों चर्चा में है, छिंदवाड़ा के मशहूर दालवड़े खिलाने वाले "स्पेशल चाय नाश्ता स्टार्टअप" की पूरी कहानी <p dir="ltr"><b>छिंदवाड़ा के इंजीनियर ने भोपाल में खोली चाय-नाश्ते की दुकान और दालवड़े अचानक सबको पसंद आने लगे</b><br></p><p dir="ltr"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-J_ebLkWNpxE/YkAuqyNHKMI/AAAAAAAAftM/U5KTaAYroMsG0NgQuXsLVA8C7FDrEHvdACNcBGAsYHQ/s1600/1648373414374275-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-J_ebLkWNpxE/YkAuqyNHKMI/AAAAAAAAftM/U5KTaAYroMsG0NgQuXsLVA8C7FDrEHvdACNcBGAsYHQ/s1600/1648373414374275-0.png" width="400">
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</b></div><b><br></b><p></p><p dir="ltr">छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा जिले के रहने वाले रामकुमार चौकीकर Ramkumar Choukikar ने 2014 में भोपाल से बीई मैकेनिकल इंजीनियरिंग में कॉलेज में टॉप किया था। उसके बाद वे जॉब करने लगे, लेकिन कोरोना संकटकाल में उनकी जॉब छिन गई। किराए से रहने वाले रामकुमार के सामने परिवार के भरण पोषण का संकट आ गया। भोपाल में छिंदवाड़ा और बैतूल जिले के कई लोग रहते हैं, जो लोकल दालवड़े बहुत पसंद करते हैं। यह देखते हुए उन्होंने अपने साले और छोटे भाई के साथ "छिंदवाड़ा चाय-नाश्ता" Chhindwara Chai Nashta के नाम से स्टार्टअप शुरू कर दिया। </p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-u7zJ8U2-rqg/YkAupu9cr_I/AAAAAAAAftI/zzGMfr38A5cVVlHTF46-lXFadOY0intrgCNcBGAsYHQ/s1600/1648373411013055-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-u7zJ8U2-rqg/YkAupu9cr_I/AAAAAAAAftI/zzGMfr38A5cVVlHTF46-lXFadOY0intrgCNcBGAsYHQ/s1600/1648373411013055-1.png" width="400">
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</div><br><p></p><p dir="ltr">कोई भी धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता अभिनेता शाहरुख खान की रईस फिल्म का डायलॉग छिंदवाड़ा Chhindwara के पढ़े लिखे एक युवा में सही साबित कर दिखाया है। भोपाल Bhopal में मैकेनिकल इंजीनियर और एमबीए की पढ़ाई करने के बावजूद भी जब नौकरी नहीं मिली तो छिंदवाड़ा के युवक रामकुमार के द्वारा भोपाल के अशोका गार्डन सब्जी मंडी चौराहे पर अपने गृह जिले के नाम से "छिंदवाड़ा स्पेशल चाय नाश्ता" की छोटी सी दुकान खोली गई है। जिसे अब क्षेत्र में बेहतर प्रतिसाद मिल रहा है। इस दुकान में बड़ी संख्या में छिंदवाड़ा के युवा चाय और नाश्ता करने पहुंच रहे हैं। </p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-pZJzOJ8rl4Q/YkAuo-UBfdI/AAAAAAAAftE/EXMDQUwV7pMh3Dn5X2GsN8qxL2XyByc5wCNcBGAsYHQ/s1600/1648373407430288-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br><p></p><p dir="ltr">इंजीनियर रामकुमार की दुकान के संबंध में भोपाल सिटी लाइव Bhopal City Live के पेज पर अमित कुमार Amit Kumar के द्वारा पोस्ट शेयर किया गया था। जिसमें उन्होंने युवक के हौसले और जज्बात की तारीफ करते हुए लिखा था कि मेरे दोस्त ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग और एमबीए की पढ़ाई की है। कोरोना में जब लोग नौकरी के लिए आस लगाए बैठे थे। ऐसे समय में छिंदवाड़ा के इस दोस्त ने नया स्टार्टअप शुरू किया है। जो बेरोजगारों के लिए एक सबक है।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-33jvZlWMcu8/YkAunxcNm0I/AAAAAAAAftA/Td5cB-xNcjEkJaVaJxsr24EguEKz8cHIQCNcBGAsYHQ/s1600/1648373403832322-3.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-33jvZlWMcu8/YkAunxcNm0I/AAAAAAAAftA/Td5cB-xNcjEkJaVaJxsr24EguEKz8cHIQCNcBGAsYHQ/s1600/1648373403832322-3.png" width="400">
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</div><br><p></p><p dir="ltr">अधिकतर युवा बेरोजगार खाली बैठकर सिर्फ दिन गिनते हैं। लेकिन मैकेनिकल इंजीनियरिंग और एमबीए की पढ़ाई करने के बाद भी काम को छोटा नहीं समझ कर उक्त युवक द्वारा अपने शहर के नाम पर छिंदवाड़ा स्पेशल चाय नाश्ता की दुकान खोली गई है। जहां पर गरमा गरम बड़े टमाटर और मिर्ची की चटनी छिंदवाड़ा के मट्ठे की स्टाइल में परोसी जा रही है।</p><p dir="ltr"><b>फेसबुक में हो रही युवाओं की जमकर तारीफ</b></p><p dir="ltr"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/--mkcQ0Iq7XU/YkAumyVjXkI/AAAAAAAAfs8/GC8YU-tPy9gjD1rO6Tecj1fB9W_2CUIDACNcBGAsYHQ/s1600/1648373399350234-4.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</b></div><b><br></b><p></p><p dir="ltr">फेसबुक में अमित कुमार के द्वारा शेयर की गई पोस्ट की जमकर तारीफ हो रही है। 24 घंटे इस पोस्ट को 860 लोगों ने लाइक किया है। 27 लोगों ने शेयर किया है। जबकि 150 लोगों ने इसमें कमेंट करके छिंदवाड़ा स्पेशल चाय नाश्ता के संचालक मैकेनिकल इंजीनियर की जमकर तारीफ की है। लोगों ने अपनी पोस्ट में अलग अलग तरीके के कमेंट किए हैं।</p><p dir="ltr"><b>फेसबुक पेज पर 150 लोगों ने किया कमेंट</b></p><p dir="ltr"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-8eOO34enD_U/YkAul4y35MI/AAAAAAAAfs4/yn4VqOJOWm8iMVLD3xgu0fdcXOJyFohLwCNcBGAsYHQ/s1600/1648373395116896-5.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</b></div><b><br></b><p></p><p dir="ltr">रजनीश द्विवेदी ने लिखा है कि बेरोजगार लिखने और सरकार को कोसने से अच्छा है कि अपना खुद का काम बहुत अच्छा किया आपको बधाई ईश्वर करे खूब उन्नति करें। इसी प्रकार आशिष खरे ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि भाई जी कोई भी काम छोटा नहीं होता है। एक दिन यही दुकान बड़े होटल में तब्दील होगी। शुभकामनाएं हैं। मुकेश चौहान ने लिखा कि भाई की दुकान में जरूर जाऊंगा बड़े खाने के लिए।</p><p dir="ltr"><b>पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को देंगे न्यौता</b></p><p dir="ltr">राजकुमार चौकीकर और मयूर वरवड़े समेत तीन युवा इंजीनियरों ने 'छिंदवाड़ा स्पेशल चाय-नाश्ता' स्टार्टअप शुरू किया है। वे तीनों पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ Kamalnath को अपने ठेले पर नाश्ता करने का न्योता देने भी जाएंगे।</p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-PoI-bbdj350/YkAuk-D5qPI/AAAAAAAAfs0/sMOAFHr6ByUc8OClljAQbvC-QGO7G4r5ACNcBGAsYHQ/s1600/1648373390963026-6.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-PoI-bbdj350/YkAuk-D5qPI/AAAAAAAAfs0/sMOAFHr6ByUc8OClljAQbvC-QGO7G4r5ACNcBGAsYHQ/s1600/1648373390963026-6.png" width="400">
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</div><br><p></p><p dir="ltr">कोरोनाकाल में नौकरी चली जाने के बाद उनके सामने रोजी-रोटी का संकट था। इससे परेशान इन युवाओं ने अपने गृह क्षेत्र के पारंपरिक नाश्ते दालवड़े को प्रमोट करने की ठानी। उनके यहां हर शाम को छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट और बैतूल जिले के रहने वाले लोग नाश्ता करने पहुंचते हैं। </p><p dir="ltr"><b>साभार : छिंदवाड़ा जबलपुर एक्सप्रेस।</b></p><br>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-65517322574350259632022-03-24T23:04:00.001-07:002022-03-24T23:31:43.197-07:00Mohan Kumar Deheria's Poems : मोहन कुमार डहेरिया की चुनिंदा कविताएं <p dir="ltr"><b>प्रायमरी कक्षाओं के बच्चे</b><br></p><p dir="ltr"><b>-------------------</b></p><p dir="ltr">हंसते ही रहते हैं</p><p dir="ltr">प्रायमरी कक्षाओं के बच्चे</p><p dir="ltr">जब देखो तब</p><p dir="ltr">बात जैसे उनके लिए मजाक</p><p dir="ltr"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-A3Xi4Tmv7f8/Yj1hzDxpsUI/AAAAAAAAfsg/TOMy3nKmUjc0R__azLk67SOMyFSDj11kACNcBGAsYHQ/s1600/1648189896725435-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></p><p dir="ltr">न देखते समय कुसमय, पात्र-अपात्र</p><p dir="ltr">भक से हँस देते</p><p dir="ltr">हंसने के लिए नहीं चाहिए</p><p dir="ltr">उन्हें कोई उपयुक्त कारण </p><p dir="ltr">शिक्षक के माथे पर झूलती ज्ञानी लट हो, </p><p dir="ltr">प्रार्थना सभा में घुस आया बंदर </p><p dir="ltr">या चलते-चलते निकला किसी के जूते का तल्ला</p><p dir="ltr">काफी है उन्हें हँसा देने के लिए</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">इन दिनों जबकि</p><p dir="ltr">लुफ्त हो रही है सहज और निर्मल हँसी</p><p dir="ltr">रहे नहीं पहले जैसे शास्त्रीय ठहाके</p><p dir="ltr">लोग ढूंढ रहे कंप्यूटरों में हास्य कला की वेबसाइटें</p><p dir="ltr">कुछ लोग हँसते जरूर है,</p><p dir="ltr">हँसना पर उनके लिए किसी को फंसाने का फंदा है</p><p dir="ltr">या जीवन के शेयर मार्केट में उल्लास का निवेश</p><p dir="ltr">कभी-कभी गूंजता मध्यरात्रि में एक भीषण ठहाका </p><p dir="ltr">मिल जाता जब कचरे के ढेर में</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">किसी पागल को रोटी का एक टुकड़ा</p><p dir="ltr">ऐसे समय में</p><p dir="ltr">प्रायमरी कक्षाओं के बच्चों, तुम यों ही हंसते रहना। </p><p dir="ltr">परीक्षा हॉलों में भी बीच-बीच में मुस्कुराते रहना </p><p dir="ltr">हाँ किकिया रहा हो जब<br></p><p dir="ltr">पूंछ में बंधे जलते फटाखों के कारण कोई कुत्ता </p><p dir="ltr">कभी न हँसना<br></p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">रहे इतना ध्यान</p><p dir="ltr">दांत न पीसे तुम्हारी हंसी सुन </p><p dir="ltr">कोई लंगड़ा आदमी </p><p dir="ltr">कलंक न लगे किसी कुबड़े को अपना कूबड़</p><p dir="ltr">स्कूलों के जलसों में पीट रहा हो जब महानायक</p><p dir="ltr">अपनी उपलब्धियों का ढोल</p><p dir="ltr">मीडिया गढ़ता हो उसकी लोकप्रियता के मिथक </p><p dir="ltr">तुम एक-दूसरे को कनखियों से देख हँस देना</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">समय रहा है गवाह</p><p dir="ltr">ऐसी बारीक खिलखिलाहटों से भी बदला है इतिहास!</p><p dir="ltr">-------------------</p><p dir="ltr">(कवि से जुड़ने के लिए) </p><p dir="ltr">मोहन कुमार डहेरिया का <u><a href="https://www.facebook.com/mohankumar.deheria">फेसबुक प्रोफाइल click </a></u></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-e37444d1-7fff-fdbf-97eb-db5fa6450b05">---------------------</p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-e37444d1-7fff-fdbf-97eb-db5fa6450b05"><b>क्या कर रहा था मैं ?</b><br></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-e37444d1-7fff-fdbf-97eb-db5fa6450b05"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">------------</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-52ImITx9n-4/Yj1hyHK-z2I/AAAAAAAAfsc/b57Tm7VOZes3W_nim9FBZqlKoBxViZ9GQCNcBGAsYHQ/s1600/1648189893115842-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-52ImITx9n-4/Yj1hyHK-z2I/AAAAAAAAfsc/b57Tm7VOZes3W_nim9FBZqlKoBxViZ9GQCNcBGAsYHQ/s1600/1648189893115842-1.png" width="400">
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</div><br></div><p></p><p dir="ltr">मेरे अभिभावक बड़े भैया</p><p dir="ltr">जब गिरे घर की पुताई करते हुए </p><p dir="ltr">टूटा उनका हाथ </p><p dir="ltr">लगा नहीं पाए हफ़्तों बाजारों में दुकान</p><p dir="ltr">कट गया फीस न देने से कालेज से उनकी बेटी का नाम</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">क्या कर रहा था मैं ?</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">चीथ रहा था हड्डी से गोश्त</p><p dir="ltr">पीते हुए सिगरेट और रम के पैग</p><p dir="ltr">खोया हुआ था एक सांवली लड़की की </p><p dir="ltr">भोर में टपकते महुये जैसी आवाज के संगीत में</p><p dir="ltr">सोचता बस एक बार मिल जाए वह</p><p dir="ltr">हमारा मिलन दुनिया के सारे सहवासों के</p><p dir="ltr">कीर्तिमानों को तोड़ देगा</p><br><p dir="ltr">जब बस की सीट पर रखी </p><p dir="ltr">बड़े भैया की मनिहारी सामानों की थैलियों को देख</p><p dir="ltr">कंडक्टर बरसा रहा था उनकी पीठ पर हिकारत के कोड़े</p><p dir="ltr">कर रहे थे वे दुकान लगाने वाली जगह से</p><p dir="ltr">पान की पीकें , जानवरों का मल मूत्र साफ़</p><p dir="ltr">गिड़गिड़ाने के वावजूद कम कर नहीं रहा था </p><p dir="ltr">ग्राम सचिव दुकान लगाने की जगह का किराया </p><p dir="ltr">अकड़ गए थे तामिया के बाजार से लौटते समय</p><p dir="ltr">जीप के डंडे को थामे थामे उनके हाथ</p><p dir="ltr">छेद रही थी बर्फ़ीली हवाएँ शरीर</p><p dir="ltr">गिरने की कगार पर था शरीर</p><br><p dir="ltr">क्या कर रहा था मैं ?</p><br><p dir="ltr">आलीशान मकान बनबा रहा था</p><p dir="ltr">कविताएँ लिख रहा था</p><p dir="ltr">लेखक मित्रों से बहस कर रहा था</p><p dir="ltr">कि हिंदी में क्यों नहीं है</p><p dir="ltr">दलित साहित्य लेखन की मजबूत परंपरा</p><p dir="ltr">घूम घूमकर जमा कर रहा था</p><p dir="ltr"> ' दलित कलम ' नाम के राष्ट्रीय कार्यक्रम के लिए पैसा</p><p dir="ltr">लगा रहा था नैतिक फटकार </p><p dir="ltr">एक बड़े सेठ को कम चंदा देने पर</p><br><p dir="ltr">जब बकाया मांगने पर लफंगे रॉबिन धारू ने </p><p dir="ltr">कर दी उनके खिलाफ पुलिस थाने में </p><p dir="ltr">अनुसूचित जनजाति एक्ट के अंतर्गत शिकायत</p><p dir="ltr">बंद होती कोयला खदानों के कारण सिमटकर रह गई थी</p><p dir="ltr">एक झोले में उनकी मनिहारी सामानों की दुकान</p><p dir="ltr">सेठों की उधारी चुका न पाने के कारण</p><p dir="ltr">रास्ते बदल बदलकर आते घर</p><p dir="ltr">कभी सट्टा लगाते </p><p dir="ltr">कभी रमाकांत पंडित से अनुष्ठान करवाते</p><p dir="ltr">कि खुल जाए दुश्मनों द्वारा मंत्रों से बंधवा दी गई दुकान</p><p dir="ltr">कंकाल मात्र थे पड़ा जब उनको दिल का दौरा</p><p dir="ltr">छटपटा रहे थे सीना पकड़े</p><br><p dir="ltr">क्या कर रहा था मैं ?</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">लगा रहा था हिसाब</p><p dir="ltr">भर्ती हुए अगर प्राइवेट अस्पताल में </p><p dir="ltr">बैठेगी मुझ पर कितने की चपत</p><p dir="ltr">हुआ यदि कुछ </p><p dir="ltr">मुझ पर ही आएगा गंगापूजा का खर्च</p><p dir="ltr">कह रहा था लिहाज़ा</p><p dir="ltr">जल्दी ढूंढ़ो भौजी , बड़े भैया का गरीबी रेखा कार्ड</p><p dir="ltr">अस्सी प्रतिशत तो सरकार ही दे देगी</p><p dir="ltr">अच्छा खासा पैसा था जबकि बैंक में मेरे पास</p><p dir="ltr">व्यवस्थित हो चुके थे शादी ब्याह कर बच्चे</p><br><p dir="ltr">आज याद आता है</p><p dir="ltr">बचपन में खूब चुराया मैंने बड़े भैया की जेब से</p><p dir="ltr">कंचे और पतंग खरीदने के लिए पंजी दस्सी</p><p dir="ltr">सब कुछ ताड़ लेने के वावजूद</p><p dir="ltr">किया हमेशा उन्होंने अनभिज्ञता का अभिनय </p><p dir="ltr">इस बार भी अपने वेहतरीन स्वांग से</p><p dir="ltr">आखिरी साँस तक पता नहीं चलने दिया </p><p dir="ltr">कि जान गए हैं वे</p><p dir="ltr">मैं लालच के गुड़ से चिपटे रहने वाले चीटे</p><p dir="ltr">धन के कीचड़ को अपना घर समझने वाले सुअर </p><p dir="ltr">और उस परिंदें में बदल चुका हूँ </p><p dir="ltr">जो आग की लपटों में घिरते ही </p><p dir="ltr">अपने आश्रयदाता पेड़ से भाग खड़ा होता है ।</p><p dir="ltr">----------------------------------------</p><p dir="ltr"><b>पिछड़ा नहीं हूं-मैं</b><br></p><p dir="ltr">___________</p><p dir="ltr">पिछड़ा नहीं हूँ इस दौड़ में मैं</p><p dir="ltr">बेशक लोग मारे ताने पर ताने </p><p dir="ltr">देखें चाहे जितनी भी हेय नजरों से पिछड़ा नहीं हूं</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">चाहता तो भाग सकता था</p><p dir="ltr">बंदूक की गोली सा सनसनाता </p><p dir="ltr">तोड़ देता जीत के सारे रिकॉर्ड </p><p dir="ltr">बस इतना ही तो करना था</p><p dir="ltr">एक वर्णसंकर भाषा को गले लगाना था</p><p dir="ltr">चूसकर फेंक देना था</p><p dir="ltr">गुठली-सा अपनी बोली- बानी को </p><p dir="ltr">ईश्वर को मनुष्य के प्रति जवाबदेह न मानना था</p><p dir="ltr">बॉटना या महापुरुषों के जन्मदिवसों पर</p><p dir="ltr">अनाथालयों में फल-कंबल</p><p dir="ltr">फेरते हुए तोंद पर हाथ, छोड़ते हिंसक डकारें</p><p dir="ltr">धर्म को इतिहास समझना था</p><p dir="ltr">और इतिहास को महज खूनी दंतकथा</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">चाहता तो तालियों की गड़गड़ाहट से </p><p dir="ltr">गूंज रहा होता मेरे भी जीवन का नेपथ्य</p><p dir="ltr">करना न था कुछ खास मारना था बस आंख के पानी को</p><p dir="ltr">नैतिकता को मान लेना था फटा हुआ ढोल </p><p dir="ltr">हालांकि इस्पात का तो नहीं बना था मैं </p><p dir="ltr">मेरे भी बीबी-बच्चे थे और उम्मीदों से तरबतर रिश्तेदार, मित्रगण</p><p dir="ltr">कमजोर क्षणों में इसलिए जब भी शामिल हुआ इस दौड़ में</p><p dir="ltr">देखा पैरों के नीचे कुचला जा रहा </p><p dir="ltr">नीम की दातौन बेचने वाला एक बूढ़ा </p><p dir="ltr">सुनाई दी पीठ पीछे</p><p dir="ltr">किसी आदिवासी छात्रावास में </p><p dir="ltr">नोची जाती नाबालिग लड़कियों की करुण पुकारें </p><p dir="ltr">और मैं विचलित हो हर बार ठहर गया। </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">पिछड़ा नहीं हूं इस दौड़ में</p><p dir="ltr">पिछड़ेपन के औसत अर्थ से पहले ही बाहर आ गया था मैं</p><p dir="ltr">------------------</p>Poems of Mohan Kumar Daheria<br><div><br></div><div><b> कवि का परिचय </b></div><div><b> मोहन कुमार डहेरिया </b></div><div><table class="wikitable"><tbody><tr><th scope="row"> जन्म :</th><td>01 जुलाई 1958</td></tr><tr><th scope="row">जन्मस्थान :</th><td><br>ग्राम बड़कुही, जिला छिन्दवाड़ा, <br>मध्य प्रदेश, भारत </td></tr><tr><th colspan="2" scope="row">कुछ प्रमुख कृतियाँ</th></tr><tr><td colspan="2"><a href="http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81_%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%9C%E0%A4%97%E0%A4%B9_/_%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%A1%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE" title="कहाँ होगी हमारी जगह / मोहन कुमार डहेरिया">कहाँ होगी हमारी जगह</a> (कविता संग्रह), <br><a href="http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%89%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%A8%E0%A4%BE_/_%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%A1%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE" title="उनका बोलना / मोहन कुमार डहेरिया">उनका बोलना</a> (कविता संग्रह)</td></tr></tbody></table></div><div>अद्यतन कविता संग्रह इस घर में रहना एक कला है।</div><div>पता : नई पहाड़े कॉलोनी, जवाहरवार्ड, गुलाबरा, छिंदवाड़ा, जिला-छिंदवाड़ा 480001 म.प्र<b><br></b></div><div><b><br></b></div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-22089731307946077592022-03-23T06:27:00.001-07:002022-03-23T07:56:44.152-07:00Arora Family Achievement : 80 साल की दादी, बहू सहित तीन पीढ़ियों ने एक साथ दिया एग्जाम<p dir="ltr" id="docs-internal-guid-36f2f87d-7fff-28ab-a5e9-8b27e5ef6ad5"><b>छिंदवाड़ा जिले की रिटायर्ड शिक्षिका सरोज अरोड़ा ने बहू डॉ. सुनीता अरोड़ा और नाती ओम बत्रा साथ दी परीक्षा </b><br></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-36f2f87d-7fff-28ab-a5e9-8b27e5ef6ad5"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-_EENUDh4gag/Yjs1KZs41TI/AAAAAAAAfrQ/6R-348oBsw0Q4CtTga00BYrUUKf_o5jMQCNcBGAsYHQ/s1600/1648047397089042-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-_EENUDh4gag/Yjs1KZs41TI/AAAAAAAAfrQ/6R-348oBsw0Q4CtTga00BYrUUKf_o5jMQCNcBGAsYHQ/s1600/1648047397089042-0.png" width="400">
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</div>( रिटायर्ड शिक्षिका सरोज अरोड़ा) </div></div><p dir="ltr"><i>छिंदवाड़ा में तीन पीढ़ियों ने एक साथ दी परीक्षा हॉल में बैठकर परीक्षा दी. 80 साल की रिटायर्ड शिक्षिका सरोज अरोड़ा ने बहू और नाती के साथ छिंदवाड़ा स्टडी सेंटर में फूड एंड न्यूट्रिशन में डिप्लोमा के लिए परीक्षा दी. सरोज ने कहा कि </i><i>बुढ़ापा तो सिर्फ उम्र का एक आंकड़ा है, अगर आप में मनोबल और आत्मविश्वास है तो आपके लिए कोई भी चीज असंभव नहीं है.</i></p><p dir="ltr"><b>छिंदवाड़ा</b>। सीखने और पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती, इसका एक जीता-जागता उदाहरण हैं छिंदवाड़ा की रहने वाली 80 साल की रिटायर्ड शिक्षिका सरोज अरोड़ा. खास बात यह है कि उन्होंने 80 साल की उम्र में परीक्षा तो दी है, साथ ही इनकी दो पीढ़ियों ने भी एक साथ परीक्षा दी है. एक ही हॉल में एक साथ तीन पीढ़ियों की परीक्षा देने का सेंटर में यह पहला मामला था.</p><p dir="ltr"><b>सास बहू और पौत्र ने एक साथ दी परीक्षा: </b></p><p dir="ltr"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-fJorHNIgw7U/YjsgNGuVK7I/AAAAAAAAfq0/dbQaBsLVwhQ1TEGSDg8abB4iMn4e-adKwCNcBGAsYHQ/s1600/1648042033175449-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-fJorHNIgw7U/YjsgNGuVK7I/AAAAAAAAfq0/dbQaBsLVwhQ1TEGSDg8abB4iMn4e-adKwCNcBGAsYHQ/s1600/1648042033175449-1.png" width="400">
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</b></div><b>( सरोज अरोड़ा के साथ बहू डॉ. सुनीता और नाती ओम) </b><p></p><p dir="ltr">छिंदवाड़ा की रहने वाली 80 साल की सरोज अरोड़ा करीब 20 साल पहले शिक्षिका के पद से रिटायर हो चुकी है. लेकिन लोगों को सिखाने और सीखने की ललक ने लगातार पढ़ाई के लिए प्रेरित किया. 80 साल की उम्र में उन्होंने इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के छिंदवाड़ा स्टडी सेंटर में फूड एंड न्यूट्रिशन में डिप्लोमा के लिए परीक्षा दी है. खास बात यह है कि 80 साल में खुद ने तो परीक्षा दी, साथ ही उनकी बहू डॉ. सुनीता अरोड़ा और नाती ओम बत्रा ने भी उनके साथ एक ही हॉल बैठकर एक ही कोर्स के लिए परीक्षाएं दी. </p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-CWu_Qk2yqXs/YjsgMIUtZwI/AAAAAAAAfqw/vOZhjASw7AU9UzRfADJv9bEmCyfOWXZogCNcBGAsYHQ/s1600/1648042029291172-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-CWu_Qk2yqXs/YjsgMIUtZwI/AAAAAAAAfqw/vOZhjASw7AU9UzRfADJv9bEmCyfOWXZogCNcBGAsYHQ/s1600/1648042029291172-2.png" width="400">
</a>
</div><br><p></p><p dir="ltr">रिटायर्ड शिक्षका के पति इंजीनियर बीरबल अरोड़ा का स्वर्गवास पिछले फरवरी माह में हो गया था. जिसके कारण वे खुद और उनका परिवार मानसिक रूप से परेशान था. लेकिन डिप्रेशन से निकलकर पूरे उत्साह एवं जोश के साथ उन्होंने अपने परिवार को एकजुट किया और पढ़ाई में लग गईं. पूरे परिवार को नकारात्मक विचारों से हटाकर लोगों को संदेश देने के उद्देश्य से भी लगातार पढ़ाई करती रही और मार्च में उन्होंने बकायदा परीक्षा हॉल में बैठकर परीक्षा भी दी.</p><p dir="ltr"><b>बुढ़ापा सिर्फ आंकड़ा, मनोबल सबसे महत्वपूर्ण: </b></p><p dir="ltr"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-ZVnmgpwrii4/YjsgLEqJTYI/AAAAAAAAfqs/UA7RbFu4-sgZl_D2pweO-MepzYlykIOxACNcBGAsYHQ/s1600/1648042025095700-3.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-ZVnmgpwrii4/YjsgLEqJTYI/AAAAAAAAfqs/UA7RbFu4-sgZl_D2pweO-MepzYlykIOxACNcBGAsYHQ/s1600/1648042025095700-3.png" width="400">
</a>
</b></div><b><br></b><p></p><p dir="ltr">शिक्षिका ने कहा कि बुढ़ापा तो सिर्फ उम्र का एक आंकड़ा है, अगर आप में मनोबल और आत्मविश्वास है तो आपके लिए कोई भी चीज असंभव नहीं है. उन्होनें कहा कि बुढ़ापा कभी आपके आत्मविश्वास के आड़े नहीं आ सकता, इसीलिए लगातार सकारात्मक सोच के साथ काम करते रहना चाहिए. अपनी उम्र को अपने आत्मविश्वास पर हावी ना होने दें तो आसानी से अपनी जिंदगी जी सकते हैं.</p><p dir="ltr"><b>साभार : ईटीवी भारत </b></p>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-13761961389742671472022-03-23T04:54:00.001-07:002022-03-23T04:54:29.149-07:00Parasia College : रासेयो के स्वयंसेवकों ने शहीद दिवस मनाया <div><b>परासिया</b>। सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु के शहीद दिवस पर शासकीय पेंचव्हेली स्नातकोत्तर महाविद्यालय परासिया में स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया जा रहा है। <br></div><div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-dYcsXjH3Cv4/YjsKchBGrdI/AAAAAAAAfqk/Bnt2YqUmPrk-BkRmVPAAuwzELZvbdTNsgCNcBGAsYHQ/s1600/1648036462124734-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-dYcsXjH3Cv4/YjsKchBGrdI/AAAAAAAAfqk/Bnt2YqUmPrk-BkRmVPAAuwzELZvbdTNsgCNcBGAsYHQ/s1600/1648036462124734-0.png" width="400">
</a>
</div><br></div><div>आजादी के अमृत महोत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत लघु फिल्म स्लोगन और पोस्टर निर्माण प्रतियोगिता आयोजित किया गया जिसमें महाविद्यालय प्राचार्य डॉ पी आर चंदेलकर, राष्ट्रीय सेवा योजना कार्यक्रम अधिकारी गगन कुमार बरखानिया, संतोषी रोमडे एवं अर्थशास्त्र विभाग भागवतराव कराडे, डा.योगेश अहिरवार पूर्ण शिक्षा के स्टाफ उपस्थित रहा। </div><div><br></div><div>इसमें राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक सैम सेविकाओं ने स्लोगन और पोस्टर निर्माण के माध्यम से सहित दिवस मनाया। जिसके बाद लघु फिल्म के माध्यम से सुखदेव भगत सिंह और राजगुरु के जीवन से जुड़ी हुई घटनाओं के बारे में जाना। </div><div><br></div><div>जिसमें मुख्य रुप से राष्ट्रीय सेवा योजना टीम लीडर मनेश भलावी उपस्थित रहे पोस्टर प्रतियोगिता में प्रथम स्थान निधि धुर्वे ने प्राप्त किया।</div></div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-85537586497689905342022-03-21T15:41:00.001-07:002022-03-21T15:41:59.679-07:00Kashmir Files : दोषी हर वह व्यक्ति या समाज है, जिसने अपने स्वार्थ के लिए जुल्म और हिंसा का मार्ग अपनाया <p dir="ltr" id="docs-internal-guid-1f539127-7fff-7c4e-80ab-aeaf3c098052"><b>छिंदवाड़ा की जानी-मानी कवयित्री और चिंतक Geetanjali Geet गीतांजलि गीत (<u><a href="https://www.facebook.com/geetanjali.geet.98">Facebook Link</a></u>) की टिप्पणी</b></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-1f539127-7fff-7c4e-80ab-aeaf3c098052">कल (20 मार्च 2022) शाम कश्मीर फ़ाइल (The Kashmir Files) देखी। कलात्मक दृष्टि से फिल्मांकन की बात करें तो कई जगह कमज़ोर लगी। अभिनय की बात करे तो खूंखार आतंकी बिट्टा की भूमिका में चिन्मय मण्डलेकर सभी पात्रों पर भारी पड़े। संवाद अदायगी में कृष्णा पण्डित के साथ बिट्टा के चेहरे के भाव ने अपनी अलग छाप छोड़ी।</p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-1f539127-7fff-7c4e-80ab-aeaf3c098052"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-D-r-sLAuhMU/Yjj_NSvPKCI/AAAAAAAAfqI/I4QFtyF8MRYqjXUWqvRGcjop-sGxG5lWQCNcBGAsYHQ/s1600/1647902513240095-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-D-r-sLAuhMU/Yjj_NSvPKCI/AAAAAAAAfqI/I4QFtyF8MRYqjXUWqvRGcjop-sGxG5lWQCNcBGAsYHQ/s1600/1647902513240095-0.png" width="400">
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</div><br></p><p dir="ltr">पल्लवी जोशी (Pallavi Joshi) बहुत दिनों बाद पर्दे पर दिखी वो अपनी राधिका की भूमिका में प्रभावी रही। ये सच है कश्मीर कश्यप ऋषि की कर्मभूमि रही ज्ञान का पुंज यहाँ से चारो ओर फैला। किसी ने न सोचा होगा आगे चलकर वही कश्मीर आतंकी फ़िज़ाओं अपने सनातन ज्ञान को वापस ढूँढता फिरेगा।</p><p dir="ltr"><b>अब थोड़ा फ़िल्म से हटकर मौजूदा हालात की बात करें। आदिकाल से विकास यात्रा पर चलते मानव जाति के कदम क्रमशः परिवर्तन के दौर में आज जहाँ पहुंच गए है वहाँ सिर्फ शान्ति आपसी भाईचारा ही वो माध्यम है जो मनुष्य जाति के अस्तित्व को बचा पायेगा।</b> यूँ तो कई दार्शनिक विद्वानों ने समय समय पर अनुकूलन के नियमों से सबको परिचित कराया लेकिन चार्ल्स डार्विन ने बहुत अच्छे से अपनी थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन में समझाया कि इस परिवर्तित होती प्रकृति में हम सब चाहे मानव हो, पेड़ पौधें हो या जानवर, आरंभिक काल में सभी की अपनी एक ही प्रजाति हुई जो आगे विकसित होती गयी। भविष्य अस्तित्व भी उसी का बना रहेगा जो अपने आपको अनुकूल बना ले।। ये भी सच है प्रकृति में वही अपना अस्तित्व बनाये रखेगा जो मज़बूत रहेगा। यही वजह है, न जाने कितनी प्रजातियाँ चाहे पेड़ पौधों की हो, जानवर या इंसान की ये सब विलुप्त होती गई। </p><p dir="ltr">आज हम कहते है भारत सोने की चिड़िया था दुनिया लूटकर ले गई। बदले में यहां के लोगों को हमलावरों के जुल्म सहने पड़े। पर कभी सोचा है ये हमलावर या हम पर लम्बे समय तक शासन करने वाले जिसमें अंग्रेज़ भी शामिल है यहां तक पहुँचे कैसे ? हम पर राज किया क्यों? इसका मतलब हम कहीं न कहीं कमज़ोर थे। </p><p dir="ltr">हम सारा दोष उन पर थोपकर अपनी ही कमज़ोरी को छुपा रहे है। धरती से डायनासौर कैसे क्यों गायब हुए कहीं न कहीं ये कमज़ोर पड़े थे। आज जंगल में शेर, दूसरे जानवरों पर भारी है। इसका कारण इसी अनुकूलन और विकासवाद के सिद्धांतों से जुड़ा है। </p><p dir="ltr">ये धरती किसी विशेष जाति धर्म की कभी थी न रहेगी। एक दिन सबको मिट जाना है, हाँ अपनी अच्छाइयों के सहारे मानव जाति इस धरती पर अपना लम्बा काल जी सकती है पर स्थायित्व नहीं। हो सकता है कहीं ऐसा न हो, धर्म जाति के नाम पर हम सब आपस में बंटकर पूरी तरह से मर मिट जाए और वापस वे जीव इस धरती पर जन्म ले ले जो कभी थे क्योंकि मौत के बाद भी जीन्स के बने रहने के प्रमाण है। </p><p dir="ltr">वैसे भी अगर वैज्ञानिक स्टीफन हाकिन्स के रिसर्च पर हम यकीन करें तो पाएंगे धरती की ज़िंदगी 100 बरस भर अच्छे रूप में बची है। </p><p dir="ltr">इस समय रूस और यूक्रेन के युद्ध ने साबित कर दिया है कि हम सब विनाश के कगार पर खड़े है। ऐसी स्थिति में दोषी वह नहीं है जो किसी जाति या धर्म का है। दोषी हर वह व्यक्ति या समाज है जो अपने स्वार्थ के लिए जुल्म और हिंसा का मार्ग अपनाए हुए है।</p><p dir="ltr">हम सबकी उत्पत्त्ति एक ही केन्द्र बिंदु से हुई है तो आज हम आपस में अलग अलग कैसे हुए। ऐसे हालात में यदि कोई गलती करता है तो उसकी निंदा कर उसे राह दिखाने का काम किसी एक व्यक्ति या वर्ग का नहीं, बल्कि सभी का दायित्व है। </p><p dir="ltr">हम ये न सोचें इस धरती पर हमारा कब्ज़ा है हम ये सोचे जितने समय का जीवन मिला। उसे जीना ही सत्यता है बाकी सब मिथ्या है।</p><p dir="ltr">©® कवयित्री गीताञ्जलि गीत, छिंदवाड़ा</p>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-70464361127716315372022-03-21T05:49:00.001-07:002022-03-24T10:39:37.753-07:00Pragatisheel Lekhak Sangh : साहित्यिक रचनाओं के डिजिटल स्वरूप की आवश्यकता बताई डोंगरे ने<div><b>प्रलेस का कार्यक्रम: प्रयास जोशी की पुस्तक 'बोलती परछाइयाँ का विमोचन और लेखक संगठनों की भूमिका पर परिचर्चा </b><br></div><div>--------------------------------------</div><div>छिंदवाड़ा। प्रगतिशील लेखक संघ छिंदवाड़ा (Pragatisheel Lekhak Sangh) के तत्वावधान में भोपाल से पधारे कवि प्रयास जोशी की पुस्तक ' बोलती परछाइयाँ ' का विमोचन किया गया। </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-BIKmH92mERk/Yjh0UYQX8LI/AAAAAAAAfpw/1QplHXA7Ru8EGoFI5msGsbwMniKKIonPACNcBGAsYHQ/s1600/1647866957020301-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-BIKmH92mERk/Yjh0UYQX8LI/AAAAAAAAfpw/1QplHXA7Ru8EGoFI5msGsbwMniKKIonPACNcBGAsYHQ/s1600/1647866957020301-0.png" width="400">
</a>
</div><br></div><div><b>कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रायपुर से पधारे पत्रकार रामकृष्ण डोंगरे थे। मंच पर वरिष्ठ पत्रकार गुणेंद्र दुबे तथा डाॅ. अमर सिंह उपस्थित थे।</b> </div><div><br></div><div>प्रयास जोशी Prayas Joshi अपनी चयनित रचनाओं का पाठ किया और परिचर्चा के विषय पर अपना वक्तव्य दिया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए दिनेश भट्ट Dinesh Bhatt ने प्रयास जोशी की रचनाधर्मिता बताते हुए उनका परिचय दिया। </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-cwngc8_k_Js/Yjh0TEpTqpI/AAAAAAAAfps/RMFGyL7gpoI50MKSWJ5ttuBmqire8FzkQCNcBGAsYHQ/s1600/1647866952930727-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-cwngc8_k_Js/Yjh0TEpTqpI/AAAAAAAAfps/RMFGyL7gpoI50MKSWJ5ttuBmqire8FzkQCNcBGAsYHQ/s1600/1647866952930727-1.png" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div>इस अवसर वर्तमान समय में लेखक संगठनों की भूमिका विषय से आयोजित परिचर्चा का आरंभ करते हुए दिनेश भट्ट ने कहा कि एक अच्छा लेखक व्यवस्था और सत्ता का विरोध करने में अपनी शैली और लेखन का इस्तेमाल करता है , संगठन की भी वही भूमिका होना चाहिए। </div><div><br></div><div>मोहन कुमार डहेरिया Mohan Kumar Deheria ने विमोचित पुस्तक की तीन काव्य कथाएँ की प्रासंगिकता की आज के समय में व्याख्या की। </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-74SOVbyXGq4/Yjh0SI84BeI/AAAAAAAAfpo/BmTsMxDzpgAFH_3ruQtdefDAJ9cN69UYwCNcBGAsYHQ/s1600/1647866948501298-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-74SOVbyXGq4/Yjh0SI84BeI/AAAAAAAAfpo/BmTsMxDzpgAFH_3ruQtdefDAJ9cN69UYwCNcBGAsYHQ/s1600/1647866948501298-2.png" width="400">
</a>
</div><br></div><div><b>रामकृष्ण डोंगरे Ramkrishna Dongre ने साहित्यिक रचनाओं के डिजिटल स्वरूप की आवश्यकता बताई। गुणेंद्र दुबे ने सिकुड़ती अभिव्यक्ति की आजादी पर चिंता जताई। </b></div><div><br></div><div>डॉक्टर अमर सिंह Dr Amar singh ने प्रयास जोशी की पुस्तक को उनके अंदर ज्ञान की ठहरी हुई धारा को आगे बढ़ाने वाला बताया। विजय आनंद दुबे Vijay Anand Dubey ने पुस्तक की कुछ रचनाओं की प्रासंगिकता साबित की। </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-z1AC1ZIpGr8/Yjys1suLqfI/AAAAAAAAfr4/XMBAlEPPiwsuOOS1HfrcGFzrGTJ1NaEaACNcBGAsYHQ/s1600/1648143569464947-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-z1AC1ZIpGr8/Yjys1suLqfI/AAAAAAAAfr4/XMBAlEPPiwsuOOS1HfrcGFzrGTJ1NaEaACNcBGAsYHQ/s1600/1648143569464947-0.png" width="400">
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</div><br></div></div><div>संजय पाठक Sanjay Pathak ने पुस्तक के शीर्षक की सार्थकता को रेखांकित किया। मनीषा जैन Manisha Jain ने मुक्तिबोध की रचनाओं का हवाला देते हुए प्रस्तुत पुस्तक की रचनाशीलता पर विचार प्रकट किया। </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-ghwHThGz4uc/Yjh0P2-Tb1I/AAAAAAAAfpg/RrrTlTFfZEs98gX9B2PKvS46iCCBggKlQCNcBGAsYHQ/s1600/1647866939255676-4.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-ghwHThGz4uc/Yjh0P2-Tb1I/AAAAAAAAfpg/RrrTlTFfZEs98gX9B2PKvS46iCCBggKlQCNcBGAsYHQ/s1600/1647866939255676-4.png" width="400">
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</div><br></div><div>शेफाली शर्मा ने व्यक्तिगत जीवन की ईमानदारी को लेखक संगठन के सदस्य होने की पहली शर्त माना। सीएल चौरसिया ने इस पुस्तक के काव्यनुमा गद्य की तारीफ की। </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-Kd8DZ7vteZg/Yjh0ObiSAvI/AAAAAAAAfpc/NTn1bXhTBM4FNee5O6fo_e98i0N2h4A3gCNcBGAsYHQ/s1600/1647866933775908-5.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-Kd8DZ7vteZg/Yjh0ObiSAvI/AAAAAAAAfpc/NTn1bXhTBM4FNee5O6fo_e98i0N2h4A3gCNcBGAsYHQ/s1600/1647866933775908-5.png" width="400">
</a>
</div><br></div><div><i>आभार प्रदर्शन इकाई अध्यक्ष हेमेंद्र कुमार राय ने किया। परिचर्चा में गोवर्धन यादव, लक्ष्मण प्रसाद डहेरिया, ओमप्रकाश नयन, चंदन अयोधि, नेमीचंद व्योम, रणजीत परिहार ,सुरेंद्र वर्मा ने सहभागिता की।</i></div><div><br></div><div><b>जानिए प्रगतिशील लेखक संघ के बारे में</b></div><div><b><br></b></div><div><b>अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक</b> बीसवीं शती के प्रारंभ में भारतीय प्रगतिशील लेखकों का एस समूह था। यह लेखक समूह अपने लेखन से सामाजिक समानता का समर्थन करता था और कुरीतियों अन्याय व पिछड़ेपन का विरोध करता था। इसकी स्थापना 1935 में <a href="https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%A8" title="लंदन">लंदन</a> में हुई। इसके प्रणेता <a href="https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A6_%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0" title="सज्जाद ज़हीर">सज्जाद ज़हीर</a> थे।<b><br></b></div><div><br></div><div>अधिक जानकारी के लिए <u><a href="https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%25E0%25A4%2585%25E0%25A4%2596%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25B2_%25E0%25A4%25AD%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25AF_%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%2597%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25B6%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25B2_%25E0%25A4%25B2%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2596%25E0%25A4%2595_%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%2598#:~:text=%25E0%25A4%2585%25E0%25A4%2596%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25B2%2520%25E0%25A4%25AD%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25AF%2520%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%2597%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25B6%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25B2%2520%25E0%25A4%25B2%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2596%25E0%25A4%2595%2520%25E0%25A4%25AC%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25B5%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%2582,%25E0%25A5%25A7%25E0%25A5%25AF%25E0%25A5%25A9%25E0%25A5%25AB%2520%25E0%25A4%25AE%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2582%2520%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%25A6%25E0%25A4%25A8%2520%25E0%25A4%25AE%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2582%2520%25E0%25A4%25B9%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%2588%25E0%25A5%25A4">यहां Click करें</a>...</u></div><div><u><br></u></div><div><u>अखबारों में प्रकाशित खबर </u></div><div><u><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-F0bhBUWDJOI/Yjys0BxjS-I/AAAAAAAAfr0/lo802nBSLxs1sA_lhQk-knLucaJNYCNywCNcBGAsYHQ/s1600/1648143565822836-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-F0bhBUWDJOI/Yjys0BxjS-I/AAAAAAAAfr0/lo802nBSLxs1sA_lhQk-knLucaJNYCNywCNcBGAsYHQ/s1600/1648143565822836-1.png" width="400">
</a>
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-P0qjlx5dGwA/YjyszM3C8fI/AAAAAAAAfrw/xrdfQB00qZY6iwvJzHGnUxlLDvzqNX3lwCNcBGAsYHQ/s1600/1648143561466741-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-P0qjlx5dGwA/YjyszM3C8fI/AAAAAAAAfrw/xrdfQB00qZY6iwvJzHGnUxlLDvzqNX3lwCNcBGAsYHQ/s1600/1648143561466741-2.png" width="400">
</a>
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-0FmrIXS8buc/YjysyFh7LQI/AAAAAAAAfrs/1HSX_sn3UQgF53-O0h7X7jsnJDkvypLawCNcBGAsYHQ/s1600/1648143557020719-3.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-0FmrIXS8buc/YjysyFh7LQI/AAAAAAAAfrs/1HSX_sn3UQgF53-O0h7X7jsnJDkvypLawCNcBGAsYHQ/s1600/1648143557020719-3.png" width="400">
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</div><br></u></div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-81106669882273669462022-03-19T21:28:00.001-07:002022-03-20T01:30:56.979-07:00New Chhindwara : स्मार्ट सिटी के सेल्फी प्वाइंट और न्यू कॉलोनी, अपार्टमेंट से निखरता छिंदवाड़ा<p dir="ltr" id="docs-internal-guid-fb631d34-7fff-8edd-ebc8-c98062c750d8"><b style="font-style: italic;">छिंदवाड़ा chhindwara शहर में इन दिनों आजकल सभी इलाकों में काफी रौनक नजर आ रही है. </b></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-fb631d34-7fff-8edd-ebc8-c98062c750d8"><b style="font-style: italic;"></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-HtlgBYdxe5s/Yja9fqNBeAI/AAAAAAAAfoQ/74MylvDipKwGux3hLUYZOZvEORC_7dMawCNcBGAsYHQ/s1600/1647754616839198-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-HtlgBYdxe5s/Yja9fqNBeAI/AAAAAAAAfoQ/74MylvDipKwGux3hLUYZOZvEORC_7dMawCNcBGAsYHQ/s1600/1647754616839198-0.png" width="400">
</a>
</div><br></div><p></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-fb631d34-7fff-8edd-ebc8-c98062c750d8"><b style="font-style: italic;">यहां पर कई पूजनीय स्थल है। इसके अलावा स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत शहर में कई जगह सेल्फी प्वाइंट बना दिए गए हैं। जो इन दिनों सबसे ज्यादा फेमस हो रहे हैं। जहां लोग अपने परिवार के साथ जाकर फोटोग्राफी करवाना पसंद करते हैं। आइए आपको नए शहर की कुछ खूबसूरत तस्वीरों से रूबरू कराते हैं…</b><br></p><p></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-fb631d34-7fff-8edd-ebc8-c98062c750d8">पिछले डेढ़ दशक में मध्यप्रदेश का सबसे उभरता हुआ शहर बन चुका है छिंदवाड़ा. सब कुछ बदल रहा है. हर तरफ ने रेजिडेंशियल प्रोजेक्ट आ चुके हैं इसके अलावा पुराने शहर में भी नई चीजें नजर आ रही है…<br></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-fb631d34-7fff-8edd-ebc8-c98062c750d8"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-_OqsCtT8CMo/Yja9eL7ndiI/AAAAAAAAfoM/q9IhVDtQUgcQ9X554EV_fBQigsyChlF2QCNcBGAsYHQ/s1600/1647754610585289-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-_OqsCtT8CMo/Yja9eL7ndiI/AAAAAAAAfoM/q9IhVDtQUgcQ9X554EV_fBQigsyChlF2QCNcBGAsYHQ/s1600/1647754610585289-1.png" width="400">
</a>
</div><br><p></p><p></p><p dir="ltr">सिटी में अगर रेजिडेंशियल न्यू कॉलोनी के सफर पर नजर डाले तो सबसे पहले परासिया रोड पर प्रियदर्शनी कॉलोनी गवर्नमेंट की तरफ से बनाई गई थी। यानी वहां पर प्लाट बेचे गए थे। उसके बाद नए प्रोजेक्ट एक के बाद एक आते रहे। जैसे कि कामठी विहार, गगन विहार, वर्धमान सिटी…। </p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-kmboWqCqbOs/YjatTuYF9yI/AAAAAAAAfno/c4DX-TWHyMgamxq8htgKsStpZPHYwlC5ACNcBGAsYHQ/s1600/1647750472318016-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-kmboWqCqbOs/YjatTuYF9yI/AAAAAAAAfno/c4DX-TWHyMgamxq8htgKsStpZPHYwlC5ACNcBGAsYHQ/s1600/1647750472318016-2.png" width="400">
</a>
</div><br><p></p><p dir="ltr">इन दिनों काफी सारे प्रोजेक्ट है जैसे आनंदम टाउनशिप और डीएलएस एक काफी बड़ा प्रोजेक्ट है। बरारीपुरा इलाके में गैलेक्सी, कल्पतरू है। कई टॉवर्स भी बन गए हैं जैसे एसबीआई के पास एक बड़ा टावर है, गुलाबरा में टावर है वर्धमान… </p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/--WgAJiHPVlc/YjbmP_nQHyI/AAAAAAAAfoc/1TrsTLVHPAwR9Qn7WjzN7PI0SpT5lJiLgCNcBGAsYHQ/s1600/1647765042059429-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/--WgAJiHPVlc/YjbmP_nQHyI/AAAAAAAAfoc/1TrsTLVHPAwR9Qn7WjzN7PI0SpT5lJiLgCNcBGAsYHQ/s1600/1647765042059429-0.png" width="400">
</a>
</div><br></div><p></p><p dir="ltr">शहर में अगर ओवरब्रिज फ्लाईओवर की बात करें तो सिवनी रोड पर रेलवे क्रॉसिंग के ऊपर पहला फ्लाईओवर बनाया गया था। इसके बाद अब खजरी रोड पर दूसरा फ्लाईओवर ओवरब्रिज बनाने की तैयारी की जा रही है। इसके अलावा शहर के आउटर में इमलीखेड़ा इलाका काफी डेवलप हो चुका है। यहां पर कई इंस्टिट्यूट भी है और प्राइवेट ऑफिस भी है.</p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-n0hXeGtNeYo/Yjas4TPK2cI/AAAAAAAAfnc/XIC7r5O1KWMS_FX_WSUmcgigLr-U6F7hgCNcBGAsYHQ/s1600/1647750363540075-4.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-n0hXeGtNeYo/Yjas4TPK2cI/AAAAAAAAfnc/XIC7r5O1KWMS_FX_WSUmcgigLr-U6F7hgCNcBGAsYHQ/s1600/1647750363540075-4.png" width="400">
</a>
</div><br><p></p>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-25405889402781976852022-03-17T07:52:00.001-07:002022-03-17T07:52:40.358-07:00Young Talent : राजेश बारंगे की टीम का इंटरनेशनल लेवल पर चौथा पेटेंट पब्लिश <div>कीटनाशक की खोज में लगभग 5 से 10 सालों का लगता है समय</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-ngpSSkA0SAs/YjNLNeQFtjI/AAAAAAAAfmo/2E0-DTHJA8ot2Z_iuqp1tub_lUkieDT6QCNcBGAsYHQ/s1600/1647528749857981-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-ngpSSkA0SAs/YjNLNeQFtjI/AAAAAAAAfmo/2E0-DTHJA8ot2Z_iuqp1tub_lUkieDT6QCNcBGAsYHQ/s1600/1647528749857981-0.png" width="400">
</a>
</div><br></div><div>श्री राजेश बारंगे और प्रोजेक्ट टीम (pi industries ltd udaipur ) द्वारा सोयाबीन रस्ट रोग में पेस्टिसाइड रेसिस्टेंट के कारण बेअसर पेस्टिसाइड पर रिसर्च कर पेटेंट पब्लिश किया है जिससे सोयाबीन की पैदावार में बढ़ोतरी होगी। पेस्टिसाइड की कम मात्रा उपयोग करनी होगी व जिससे इसकी लागत कम हो जाएगी। </div><div><br></div><div>हालांकि पेस्टिसाइड डिस्कवरी में विभिन्न स्तर के परीक्षण में लगभग 5 से 10 सालो का समय लगता है। श्री राजेश बारंगे के साल भर में और 2 से 3 रिसर्च पेटेंट में आने वाले है ।इससे पूर्व में CSIR CDRI lucknow MDR antitubercular drug पर रिसर्च किया गया था।</div><div><br></div><div>पेटेंट में ownership pi industries की है पर इन्वेंटर प्रोजेक्ट टीम है ।</div><div><br></div><div> *पेटेंट क्या है?* </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-djjiZMY1t5c/YjNLLcKY3EI/AAAAAAAAfmk/icw3W6-LoGwS-KKSHKK4cXLSDd-QO9cMACNcBGAsYHQ/s1600/1647528745061023-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-djjiZMY1t5c/YjNLLcKY3EI/AAAAAAAAfmk/icw3W6-LoGwS-KKSHKK4cXLSDd-QO9cMACNcBGAsYHQ/s1600/1647528745061023-1.png" width="400">
</a>
</div><br></div><div>(जब कोई व्यक्ति या संस्था द्वारा कोई नया आइडिया या नई खोज की जाती है तो उसे अपने आइडिया पर अपना अधिकार जमाने के लिए उसका पेटेंट करवाना होता है जिससे कोई भी दूसरा व्यक्ति उसकी कॉपी या चोरी न कर सके। दूसरे शब्दों में जाने तो Patent एक अधिकार है जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी बिल्कुल नई सेवा, तकनीकी, प्रक्रिया,उत्पाद या डिज़ाइन के लिए प्रदान किया जाता है ताकि कोई उनकी नक़ल तैयार न कर सके.</div><div><br></div><div>यदि कोई व्यक्ति या संस्था पहले से पेटेंट के लिए रजिस्टर वस्तु को अपने व्यवसाय लाभ के लिए पेटेंट वस्तु की कॉपी करता है तो ऐसा करने पर वह कानूनी तौर पर अमान्य माना जायेगा. अगर जिस व्यक्ति का पेटेंट है और उसने कॉपी करने वाले के खिलाफ शिकायत कर दी तो कॉपी करने वाले को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.</div><div><br></div><div>साभार : "सुखवाड़ा" ई-दैनिक और मासिक।*<br></div><div><br></div><div>*पेटेंट की लिंक*</div><div><br></div><div>https://patentscope.wipo.int/search/en/detail.jsf?docId=WO2020208511&_cid=P20-KJ2XV4-96009-1</div><div><br></div><div>https://patentscope.wipo.int/search/en/detail.jsf?docId=WO2020070610&_cid=P20-KJ2XV4-96009-1</div><div><br></div><div>https://patentscope.wipo.int/search/en/detail.jsf?docId=WO2019171234&tab=PCTBIBLIO&_cid=P20-KJ2XDF-92254-2</div><div><br></div><div>https://patentscope.wipo.int/search/en/detail.jsf?docId=WO2019150219&_cid=P20-KJ2XDF-92254-2</div><div><br></div><div>*बुक की लिंक*</div><div><br></div><div>https://www.amazon.com/Mycobacterium-specific-synthase-inhibitors-Anti-tubercular/dp/3659935425#featureBulletsAndDetailBullets_feature_div</div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-34569543479979697962022-03-16T20:31:00.001-07:002022-03-16T20:31:25.642-07:00Pratibha Samman : अमित बुवाड़े और बब्लू बुवाड़े दुनावा द्वारा 521 नारियल दान<p dir="ltr"><b>राष्ट्रीय भर्तृहरि विक्रम भोज पुरस्कार समिति </b><b>के "तृतीय प्रतिभा सम्मान" के लिए दान</b></p><p dir="ltr"><b><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-DKbLWI3Eg0Q/YjKri-iYCCI/AAAAAAAAfmc/0MEsibYapBkECePhEQsdvbZ0_BG42xSwwCNcBGAsYHQ/s1600/1647487878641681-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-DKbLWI3Eg0Q/YjKri-iYCCI/AAAAAAAAfmc/0MEsibYapBkECePhEQsdvbZ0_BG42xSwwCNcBGAsYHQ/s1600/1647487878641681-0.png" width="400">
</a>
</div><br></b></p>
<p dir="ltr"><b>17 अप्रैल 2022 को है बैतूल जिले के डहुआ में आयोजन</b></p><p dir="ltr">
डहुआ.राष्ट्रीय भर्तृहरि विक्रम भोज पुरस्कार समिति भारत के तृतीय प्रतिभा सम्मान हेतु श्री अमित बुवाड़े और श्री बब्लू बुवाड़े दुनावा द्वारा 521 नारियल दान में दिये गये हैं.</p>
<p dir="ltr">*<b>यह नारियल समाज की जिला, संभाग, राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिभाओं को सम्मानित करने हेतु क्षत्रिय पवार समाज दुनावा की ओर से दान किये गये हैं.</b>*</p>
<p dir="ltr">उल्लेखनीय है, पुरस्कार समिति द्वारा 500 नारियल उपलब्ध कराने हेतु समाज सदस्यों से प्रायोजक बनने का अनुरोध किया गया था.</p>
<p dir="ltr">पुरस्कार समिति श्री अमित बुवाड़े और श्री बब्लू बुवाड़े दुनावा की दानशीलता और अनुकरणीय कदम को नमन करते हुए उनके स्वस्थ सुखी और यशस्वी जीवन की कामना करती है. आशा है, इससे प्रेरित होकर अन्य समाज सदस्य भी सहयोग हेतु आगे आयेंगे.</p><p dir="ltr"><br>
चित्र- श्री अमित बुवाड़े और श्री बब्लू बुवाड़े द्वारा श्री बलराम बारंगे को नारियल देते हुए</p><p dir="ltr"><br>साभार<b> : सुखवाड़ा ई दैनिक और मासिक भारत</b></p>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-42338306362414769302022-03-16T20:23:00.001-07:002022-03-16T20:23:27.612-07:00Gaurav Pawar : तबला, ढोलक, प्यानो, ड्रम, क्लेपबाक्स, गिटार के उस्ताद, बाल फिल्म में भी किया है काम<div>*फिटनेस माडलिंग और प्रिंट माडलिंग में माडल*<br></div><div><br></div><div>भोपाल.श्री दिनेश पवार तथा श्रीमती माया पवार गोत्र चौधरी, पैतृक गांव गुबरेल जिला बैतूल वर्तमान निवास छिंदवाड़ा के पुत्र गौरव पवार द्वारा रवींद्र भवन छिंदवाड़ा में आयोजित हिन्दी साहित्य सम्मेलन के वार्षिकोत्सव में तबला वादन किया जा चुका है.</div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-sUlPHjKon78/YjKprDZI8SI/AAAAAAAAfmU/U9tfNOLfaGk5k6Dq9s5OeZYkTPeceWftACNcBGAsYHQ/s1600/1647487401368330-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-sUlPHjKon78/YjKprDZI8SI/AAAAAAAAfmU/U9tfNOLfaGk5k6Dq9s5OeZYkTPeceWftACNcBGAsYHQ/s1600/1647487401368330-0.png" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div>*बाल फिल्म "हैपी बर्थ डे" में बाल कलाकार के रुप में गौरव द्वारा भूमिका भी निभाई जा चुकी है* आपके द्वारा प्रयाग संगीत समिति से सीनियर डिप्लोमा भी किया गया है. शरदोत्सव में आपके द्वारा प्रस्तुति दी जा चुकी है.</div><div><br></div><div>4 मार्च 2000 को सारनी बैतूल में जन्में गौरव पवार चौधरी बीबीए द्वितीय में अध्ययनरत हैं. साथ ही एमपीईबी में कम्प्यूटर आपरेटर एवं प्रोग्रामिंग असिस्टेंट के पद पर सेवारत हैं. संगीत और माडलिंग क्षेत्र में आने के पीछे उनके दोस्त, परिवार और स्वयं का आत्मविश्वास रहा है. </div><div><br></div><div>आप अभी फिटनेस माडलिंग और प्रिंट माडलिंग में माडल के रुप में काम कर रहे हैं. युवाओं को आपका संदेश है कि हमेशा अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें और अपनी शक्ति को पहचान कर उसका अधिकतम उपयोग करना सुनिश्चित करें.आप तबला, ढोलक, प्यानो,ड्रम, क्लेपबाक्स, गिटार बजा लेते हैं.</div><div><br></div><div>स्रोत-श्रीमती बिल्लो पवार, बैतूल.</div><div>साभार : सुखवाड़ा ई दैनिक और मासिक भारत</div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-63704552714005525662022-03-15T18:45:00.001-07:002022-03-15T19:05:47.337-07:00Umranala School: नए हायर सेकंडरी स्कूल की सैर और प्रिंसिपल खापरे सर का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू जरूर देखें.... <div>नमस्कार, कल यानी कि 14 मार्च 2022 को लगभग 1 साल बाद <b><a href="http://" style="text-decoration-line: underline;"></a><a href="https://youtu.be/ePmX0ltlqKM">उमरानाला की सैर (वीडियो देखने के लिए Click करें) की।</a></b> सबसे पहले नए स्कूल में पहुंचा। वहां पर प्रिंसिपल खापरे सर, भाई दोस्त मेरे पंकज चौधरी जी और बावने सर... तमाम शिक्षक गुरुजनों से मुलाकात की। उसके बाद "यादोराव फेमस चाय" में चाय की चुस्कियां ली।<br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-rCM1uWkph2I/YjFEYV0HezI/AAAAAAAAfl8/BwFbAXyK_W83wkyT_MbLGO_QwpbrcWOSQCNcBGAsYHQ/s1600/1647395934325505-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-rCM1uWkph2I/YjFEYV0HezI/AAAAAAAAfl8/BwFbAXyK_W83wkyT_MbLGO_QwpbrcWOSQCNcBGAsYHQ/s1600/1647395934325505-0.png" width="400">
</a>
</div><br></div>इधर मुझे बताया गया कि पूरे उमरानाला और आसपास के इलाके में "यादोराव फेमस टी स्टॉल" काफी फेमस हो चुका है। <b>यहां हमारे साथ पंकज पवार पाठे (मुजावर) भी मौजूद रहे, जो कि घर घर गीता पहुंचाने के अभियान से जुड़े है। </b><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-eVT7talnw5o/YjFEXTbEr9I/AAAAAAAAfl4/UZvuWmsg1FI7xy56-LFjxjgzw1duGjX7wCNcBGAsYHQ/s1600/1647395930722342-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-eVT7talnw5o/YjFEXTbEr9I/AAAAAAAAfl4/UZvuWmsg1FI7xy56-LFjxjgzw1duGjX7wCNcBGAsYHQ/s1600/1647395930722342-1.png" width="400">
</a>
</div><br></div><div>जो मुझे अभी कुछ महीनों पहले ही मेरे मित्र पंकज चौधरी Facebook wall से जानकारी मिली थी.</div><div><br></div><div><b>तो कल से ही मेरा "अपनों की ऑक्सीजन", मुलाकातों के सिलसिले... सीरीज चालू हो चुकी है छिंदवाड़ा डायरी के अंतर्गत।</b></div><div><br></div><div>इस सिलसिले को आगे बढ़ाएंगे और भी कई सारे लोगों से मुलाकात करेंगे।</div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br></div>इस बार मेरी कोशिश होगी कि मैं आपके लिए "वीडियो इंटरव्यू" भी लेकर आऊं। तो देखते हैं कि पहला वीडियो इंटरव्यू किसका होता है। ये संयोग की बात है। प्लान तो काफी कुछ करता है इंसान। लेकिन जो फर्स्ट हो जाए वही फर्स्ट कहलाता है।<br></div><div><br></div><div>हायर सेकंडरी स्कूल उमरानाला के प्रभारी प्राचार्य श्री डब्ल्यूआर खापरे सर से <a href="https://youtu.be/bBiCUsF2XwI">विशेष बातचीत यहां (Click) देखें </a> हमारे यूट्यूब चैनल "डोंगरेजी आनलाइन" पर... <br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-oc_0Am9TG50/YjFC-jgGWqI/AAAAAAAAflo/SaDUi107TNsYhNhOQswZKxQ-HJhwxZngACNcBGAsYHQ/s1600/1647395575367672-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-oc_0Am9TG50/YjFC-jgGWqI/AAAAAAAAflo/SaDUi107TNsYhNhOQswZKxQ-HJhwxZngACNcBGAsYHQ/s1600/1647395575367672-1.png" width="400">
</a>
</div><br></div><div>चलिए मिलते हैं... धन्यवाद<br></div><div><br></div><div>#छिंदवाड़ा_डायरी #अपनोंकीआक्सीजन #मुलाकातों_के_सिलसिले #डोंगरे_की_डायरी #रामकृष्णडोंगरे #dongreJionline #chhindwara #umranalaschool #उमरानाला #तंसरामाल</div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-165782547956115922022-03-11T04:49:00.001-08:002022-03-11T04:55:38.158-08:00Awadhesh Tiwari : पुकारती है वसुंधरा <p dir="ltr" id="docs-internal-guid-71302da7-7fff-de98-3fbe-91a5e289eac9"><b>ललित निबंध </b></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-71302da7-7fff-de98-3fbe-91a5e289eac9">मेरा गांव अक्सर मुझे पुकारता है। जैसे माता को अपनी खाली गोद देखकर अपने शिशु की याद आने लगती है, उसी तरह शायद मेरी जन्मभूमि भी मुझे बार-बार याद करती है। संभवत: यही कारण है कि अक्सर मुझे मेरा गाँव, उसका पुराना परिवेश, पुराने पेड़-पौधे, खेत,पगडंडी, कुएँ सपनों में कुछ इस तरह दिखाई पड़ते हैं कि चालीस-पचास वर्ष की पुरानी स्मृतियाँ आज भी बार-बार मन में कौधने लगती हैं। मैं सपने में देखता हूँ, मेरा खपरैल वाला कच्चा घर आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है। घर की बाड़ी में दादी के हाथों से लगाया हुआ पीला कनेर फूलों से लदा हुआ है। घर के पीछे वाला कुआँ जल से लबालब भरा हुआ है। कुएँ के पास लगी जामुन में काले- काले मोती जैसे फल लगे हुए हैं । <br></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-71302da7-7fff-de98-3fbe-91a5e289eac9"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-qyqJe7aNZHg/YitFVFk_ulI/AAAAAAAAfiY/8iCHei5Jq8EXOD19NAXAK2oflh5TKPVQgCNcBGAsYHQ/s1600/1647002961058353-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-qyqJe7aNZHg/YitFVFk_ulI/AAAAAAAAfiY/8iCHei5Jq8EXOD19NAXAK2oflh5TKPVQgCNcBGAsYHQ/s1600/1647002961058353-0.png" width="400">
</a>
</div><br><p></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-71302da7-7fff-de98-3fbe-91a5e289eac9">वहीं अमरूद के सहोदर भाइयों की तरह दो पेड़ लगे हुए हैं, जिनसे मैं अमरूद तोड़-तोड़ कर खा रहा हूँ ।अचानक सफेद कपड़ों में लिपटी दादी माँ मुझे आवाज़ देती हैऔर मैं अपने हाथों में अमरूद लेकर दौड़ता हुआ उनके पास पहुँचता हूँ और सपना टूट जाता है । सपना टूटते ही अहसास होता है कि मेरा गाँव तो मुझसे कब का छूट चुका है, मकान भी कब का ध्वस्त हो चुका है और पिछले चालीस वर्षों से मैं शहर के जबड़े में समाया हुआ हूँ । </p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-71302da7-7fff-de98-3fbe-91a5e289eac9"><br></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-71302da7-7fff-de98-3fbe-91a5e289eac9">चालीस वर्ष हो गए शहर आए लेकिन न शहर को आज तक मन से अपना कह सका न गाँव को भुला सका ।मन में एक टीस-सी उठती है और याद आ जाती है दादी माँ की। अपरिग्रह की जीती-जागती मूर्ति मेरी दादी माँ।चांदी के चूड़े और दो सफ़ेद धोतियाँ, बस इतनी ही संपदा थी उसके पास।सत्य और प्रेम में अटूट भरोसा था उसका। शरीर उसके लिए साधन था साध्य नहीं । चारों धाम की यात्रा से बड़ी कोई इच्छा नहीं थी उसके जीवन में। दादी माँ को पुराणों की कथाएँ बहुत पसंद थीं । उन्हें स्कूली शिक्षा बिल्कुल नहीं मिली थी लेकिन उन्होंने प्रेम के ढाई आखर बड़े मनोयोग से पढ़े थे। उन दिनों मेरी आयु केवल बारह-चौदह वर्ष की थी। दादी का मुझ पर विशेष स्नेह था। वह उस दिन की प्रतीक्षा में थी जब मैं दूल्हा बनूँगा, मेरे सर पर सेहरा बँधा होगा और मैं एक सुंदर-सी दुल्हन लेकर दादी माँ के पास आ जाऊँंगा । दादी इसी भावना में डूबकर अक्सर एक गीत गुनगुनाती थी-<br></p><p dir="ltr">" चुन-चुन चिरैया तेरो वर भओ री, हमने जियरे बोए,</p><p dir="ltr"> जियरे पे चढ़-चढ़ हम देखें री कोई मायके को आहे,</p><p dir="ltr"> मायके से आहे</p><p dir="ltr"> अवधेश भैया री</p><p dir="ltr"> काहो लये आहे,</p><p dir="ltr">पियरो सो फुन्दा पाट को री दुल्हैया लये आहे.. .</p><p dir="ltr"> दादी के मुख से निकलते इस गीत का अर्थ भले ही उस समय मेरे दिलो-दिमाग़में बहुत स्पष्ट नहीं हो पाता था लेकिन उनके कंठ से निकलती मीठी धुन मेरे कानों में शहद घोलने लगती थी । हालाकि मेरे विवाह की घड़ी आने से पहले ही दादी संसार से विदा हो गईं, पर आज भी उनका कंठ-स्वर मेरे अंदर सम्मोहन-सा जगाते रहता है।</p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-qx9L6_NpaWU/YitFUHFNskI/AAAAAAAAfiU/hZs8nrXZ6z0oz2wruOMIseAdw67ErBAagCNcBGAsYHQ/s1600/1647002957315387-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-qx9L6_NpaWU/YitFUHFNskI/AAAAAAAAfiU/hZs8nrXZ6z0oz2wruOMIseAdw67ErBAagCNcBGAsYHQ/s1600/1647002957315387-1.png" width="400">
</a>
</div><br><p></p><p dir="ltr"> दादी की याद करते-करते मेरी स्मृतियों में अपने गाँव का एक चित्र और उभरता है,वे हैं सफ़ेद पचिया यानी पुरुषों की धोती पहने लगभग पैंसठ-सत्तर वर्ष के लछमन काका।लछमन काका प्रायः नंगे बदन रहते थे इसलिए लोग उन्हें उघाड़े महाराज भी कहते थे।वे रहन-सहन में जितने सरल थे उनका व्यक्तित्व भी उतना ही सीधा-सादा था। गाँव में प्रत्येक शनिवार को आयोजित होने वाले रामायण-मंडल में वे ज़रूर उपस्थित रहते और चौपाइयों के अर्थ बड़े मनोयोग से समझाते । सुन्दर सवैये बोलकर रामायण की धुन उठाने वालों को वे दिल खोल कर दाद देते। गाँव में होने वाली बैठकों में उनकी उपस्थिति गरिमा प्रदान करने वाली होती थी। अपनी बात के समर्थन में वे किसी लोकआख्यान या पौराणिक कथा का संदर्भ अवश्य देते थे। कभी-कभी अपनी ग्राम्य बोली में कोई ऐसी कहावत बोल देते जो सोने में सुहागे का काम करती। गांव के पारिवारिक विवादों को सुलझाने के लिए जब उन्हें बुलाया जाता तो परिवार को समझाइश देते हुए वे कहते थे-- "अपने वारे ही करें अपने घर में भेद।</p><p dir="ltr">घर के चटुआ से भओ है हड़िया में छेद।।"</p><p dir="ltr">चटुआ यानी लकड़ी की बड़ी चम्मच।हण्डी और चटुआ मिलकर रोज़ घर का खाना पकाते हैं लेकिन हण्डी जब भी फूटती है,अपने चटुआ की मार से ही फूटती है।इस बात को हमेशा याद रखने की हिदायत देते । उघाड़े महाराज की याद करते-करते मुझे पारासुर महाराज की भी याद आ जाती है,जो उनके हमउम्र थे। पारासुर महाराज के ऑंगन में एक सुन्दर मन्दिर था । मंदिर मे गणेश, शिव, कार्तिकेय,नन्दी और हनुमान जी की मूर्तियाँ हैं।उन दिनों गाँव में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्णकी शोभायात्रा निकाली जाती थी। शोभा-यात्रा में गांव के सभी छोटे- बड़े लोग बड़े उत्साह से भाग लेते थे और पूरे गाँव में खुशी की लहर दौड़ पड़ती थी। उन दिनों गाँव में हर घरमें पीतल की झांझ होती थी। लोग अपनी-अपनी झाँझ लेकर मंदिर में उपस्थित होते और कृष्ण-भक्ति के मीठे सुरों से वातावरण गुंजायमान हो जाता था। पारासुर महाराज के पड़ोसी छोटे लाल बाबा थे जो झाँझ और ढोलक बजाते थे। वे जब ढोलक बजाकर आरती कुंज बिहारी की- गिरधर कृष्ण मुरारी की.. का गायन करते तो चारों ओर जैसे मिठास-ही- मिठास बरसने लगती थी।</p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-QWrQFJ0gW8g/YitFTHbfUuI/AAAAAAAAfiQ/kpS9a84E_x8WLlJNzDX4HGNvYuBVduvFQCNcBGAsYHQ/s1600/1647002953288510-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-QWrQFJ0gW8g/YitFTHbfUuI/AAAAAAAAfiQ/kpS9a84E_x8WLlJNzDX4HGNvYuBVduvFQCNcBGAsYHQ/s1600/1647002953288510-2.png" width="400">
</a>
</div><br><p></p><p dir="ltr"> पुरानी यादों में खोए- खोए अचानक मेरी स्मृति में पूनाराम भैया का चित्र भी उभर आता है। पूनाराम ग्राम- खिरखिरी के रहने वाले थे, जो मेरे गांव के पास ही स्थित है। पूनाराम भैया झूम-झूम कर आल्हा गाते, राखी और भुजलिया के दिन खिरखिरी से पिपरिया आकर एक गोलाकार वृत्त में घंटों सैला-नृत्य करते रहते।वे अपने क्षेत्र में चारों ओर ढोला-गायन के लिए भी विशेष रूप से जाने जाते थे।ढोला राजा नल और दमयंती के कथानक से सजी चंपू-काव्य की एक ऐसी विधा है, जिसमें अपने राज्य से निर्वासित राजा और रानी के कठिन संघर्षों की कथाएँ हैं। कहा जाता है, रानी दमयंती का मायका मध्यप्रदेश के दमोह नगर का था और रानी दमयंती के नाम पर ही इस नगर का नाम दमोह पड़ा।पूनाराम भैया गाँव के किसी एक घर में आठ-दस लोगों को इकट्ठा करके बैठ जाते और भावविभोर होकर राजा-रानी की करुण कथा सुनाते। बीच-बीच में एक वाक्य भी दोहराते " राजा नल पर विपत परी-भुँजी मछली दह में गिरी।"यानी जब विपत्ति आती है,तब भुनी हुई मछली भी तालाब में कूद जाती है। इतना कहकर अपने बाऐं गाल पर अपनी हथेली रखते और बड़े मार्मिक स्वरों में गाते-</p><p dir="ltr">" राजा नल के हजारी ढोला छाय रहो यहि देस रे राजा नल के।" पूनाराम भैया के भावभीने स्वर सुनकर</p><p dir="ltr">चारों ओर सबके मन में करुणा की तरंगें उठने लगती थीं और मेरी आंखें बार- बार भीग उठती थीं।</p><p dir="ltr"> तो यह कथा है मेरी जन्मभूमि पिपरिया रत्ती की,जो छिंदवाड़ा ज़िले के चौरई- विकासखंड में स्थित एक छोटा-सा गांव है। पिपरिया रत्ती से मैं प्रतिदिन ग्राम कपुर्धा के विद्यालय में पढ़ने जाता था, कभी पगडंडी से तो कभी बैलगाड़ी के रास्ते से।इन दोनों रास्तों का एक-एक मोड़, एक-एक पत्थर मुझे आज भी जस-का-तस याद है। रास्ते में एक छोटी-सी नदी पड़ती थी, उसकी धारा आज भी मेरे मन में कल-कल करती हुई बहती रहती है। हर वर्ष ग्रीष्मकालीन अवकाश जब होता था तो पाठशाला से दो माह की छुट्टी मिल जाती, तब मैं अपने माता-पिता के साथ अपने मामा के गाँव, चक्की-खमरिया चला जाता था। ग्राम चक्कीखमरिया, पिपरिया से लगभग पन्द्रह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। </p><p dir="ltr">इस गाँव में हाथ से चलने वाली चक्की, खलबत्ता आदि बनाने वाले कारीगर थे, उनकी आजीविका इसी काम से चलती थी। इन लोगों को लढ़िया कहा जाता था। गाँव में सफेद पत्थर और मिट्टी की खदानें निकला करती थी।लढ़िया वर्ग के लोग दिनभर चक्की बनाने के लिए पत्थर तोड़ते थे, और पूरे गांव में दिनभर छेनी से पत्थर काटने की ठक्-ठक् ध्वनि गूंजती रहती थी। इसी कठोर ध्वनि को चीरकर गाँव में कभी-कभी लोकगीत की एक मीठी धुन सुनाई पड़ती । जब ये धुन उठती,तो लोग कहते-"सुग्गाबाई गा रही है।" गांव की अधेड़ उम्र की महिला थी सुग्गा बाई ।धन-संपत्ति में वह जितनी ग़रीब थी, लोकसंगीत और लोकपरंपराओं से वह उतनी ही मालामाल थी। उसकी स्मृति के ख़ज़ाने से एक के बाद एक निकलते गीत कभी खत्म ही नहीं होते थे।मुझे याद है,मेरी छोटी बहन के विवाह में रात भर बिना थके, बिना रुके सुग्गाबाई इस तरह गीत गाती गई कि रात कब गुज़र गई, लोगों को पता ही नहीं चला।</p><p dir="ltr"> तो मेरे बचपन की स्मृतियों के कोष में ऐसे एक नहीं अनेक चित्र हैं, जो सपनों की शक्ल में बार-बार पुरानी यादों को ताज़ा करते रहते हैं।दादी मां, लछमन काका,छोटेलाल बाबा,पूनाराम भैया, सुग्गा बाई-- इनके बारे में सोचता हूँ तो निष्कर्ष निकलता है कि स्कूली शिक्षा इनमें से किसी के पास नहीं थी,लेकिन साहित्य,संगीत इनके जीवन के पोर-पोर में समाये हुए थे। अपनी कुछेक मानवसुलभ कमज़ोरियों के बावज़ूद ये सब अपने-अपने आदर्शों के धनी थे।ये गाँव के प्रेरणा स्रोत थे । उन दिनों गाँव में सभी लोग मिलकर व्यक्तिगत और सामूहिक उपवास करते, त्यौहार मनाते ।एक-दूसरे के घर से छोटी-छोटी वस्तुएँ मांग कर लाने में किसी को कभी कोई झिझक नहीं होती थी।सबके सुख-दुख एक जैसे थे इसलिए सब का मन भी एक जैसा था।छोटे-बड़ों में आदर की महती परंपरा थी। नद्दी-पहाड़, डाबडबोली,चीठा, अट्ठी, सोलागोटी जैसे खेल घर-घर में प्रचलित थे। इन सब से जीवन का जो मीठा रस फूटता था, वो सब के पोर-पोर में समाया रहता था। </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">यह शायद हमारे पारंपरिक साहित्य,संगीत की महती परंपरा की शक्ति ही थी, जो हमें प्रचंड अभावों में भी अंदर से टूटने नहीं देती थी। आज जब मैं पिपरिया जाता हूँ, तो पुरानी यादों का सैलाब उमड़ पड़ता है लेकिन लोग पुरानी यादें करते-करते दुखी हो जाते हैं और अपना आज का अनुभव बताते हुए कहते हैं-" भैया अब वो दिन नहीं रहे ना यह पुरानी पिपरिया रही । लोगों के पास पैसा क्या आया सबके दिमाग सातवें आसमान में पहुंच गए हैं। बची-खुची कसर राजनीतिक दलों ने पूरी कर दी है ।पूरा गांव पार्टियों के नाम पर बँट गया है सब के अलग-अलग झण्डे हो गए हैं। लड़ाई-झगड़े रोज़ की घटनाएं हो गई है।गाँव में किसी के घर अब झाँझ भी नहीं है, राखी -भुजलिया में सैला की परंपरा भी बंद हो गई है । अब छोटे-बड़े की मर्यादा भी नहीं रही। कोई किसी की नहीं सुनता। किसी को गांव की बोली से मोह नहीं, तीज- त्योहारों से मोह नहीं, है, पुरानी परंपराओं से भी कोई लगाव नहीं। </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">पारंपरिक लोकगीतों की जगह आजकल के बच्चे फिल्मी धुनों में गीत गाते हैं। गांव में पहले दो रामायण- मंडल हुए उसके बाद वह भी राजनीतिक विद्वेष की भेंट चढ़ गये। पैसा आने से ज़िन्दगी ऊपर से तो बदल गई है, पर अंदर से जैसे खोखली होती जा रही है। क्या करें समझ नहीं आता..." ग्राम वासियों की यह बातें सुनकर मेरा ह्रदय विचलित हो जाता है।मैं अतीत की यादों में खो जाता हूँ ,चारों ओर सन्नाटा-सा महसूस होने लगता है-</p><p dir="ltr">"न सावन में आल्हा-कजरी न फागुन में फाग सुनावे, </p><p dir="ltr">न तो अब कोई कहे कहानी, न तो अब कोई लोरी गावे।</p><p dir="ltr"> वा अमराई भी अब कट गई, जिसमें खेले डाबडबोली, </p><p dir="ltr">अब ने सुनावे हुआँ पपीहा की पिउ-पिउ कोयल की बोली ।</p><p dir="ltr"> डीजे बज रये, जहाँ बजत्ते टिमकी, ढोलक और नगाड़े </p><p dir="ltr">देखत-देखत भैया कितने बदल गए जे गांव हमारे ।</p><p dir="ltr"> इन पंक्तियों को याद करके हृदय से सब्र का बांध टूटने लगता है, आंखें भर आती हैं।काश! वह पुराने दिन वापस आ जाते, प्रेम- स्नेह और सद्भाव का वातावरण फिर से बन जाता। कजरी,सैलाऔर ढोला की तानें फिर गूंजने लगती तो हमारी सूखी हुई जड़ों को जीवन का रस मिल जाता और पोर-पोर में समाया हुआ पैसे के अहंकार का विष कम हो जाता। लेकिन अब लौट कर नहीं आएंगे वे दिन... उन्हें वापस लाना अब हमारे हाथ में नहीं... आज हमारे हाथ में बस इतना है कि हम अपने मन को हर स्थिति में गांव की माटी से जोड़े रखें, अपनी बोली से जोड़े रखें अपनी परंपराओं से जोड़े रखें । गांव जाते रहें, गांव के लोगों से मिलते रहे और </p><p dir="ltr"> अपने गांव को सुखी- समृद्ध बनाने की जितनी कोशिश हो सके सच्चे ह्रदय से करें। </p><p dir="ltr">गांव कितने भी बदल जाएं हम न बदलें, बस यही हमारे हाथ में शेष है--</p><p dir="ltr">" गांव बदल गए फिर भी भैया ,हम अपनो मन बदल न पाए, </p><p dir="ltr">बचपन से आ गओ बुढ़ापो, कितनों जो मन खे समझाए ।</p><p dir="ltr"> एक-एक कर सबई बदल गई अपने गांवन की परिपाटी,</p><p dir="ltr"> न्ई भूले हम मगर पिपरिया रत्ती की वा सौंधी माटी।</p><p dir="ltr">जा माटी में मिले हमारे तन की खाक जोई हम चाहें,</p><p dir="ltr"> जननी जन्मभूमि हमखे कनिया ले-ले फैला खे बाहें। </p><p dir="ltr">कित्तई बदलें गांव मगर नई बदलनके जे भाव हमारे</p><p dir="ltr"> देखत-देखत भैया कितने बदल गए जे गांव हमारे</p><p dir="ltr"><b>©® पूर्व रेडियो उद्घोषक व लेखक अवधेश तिवारी </b></p>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-86998310052519080022022-03-10T23:18:00.001-08:002022-03-11T00:47:06.035-08:00Kamlesh solanki's Book : Do's and Don'ts in business, व्यापार में क्या करें और क्या न करें जरूर पढ़ें.. <p dir="ltr" id="docs-internal-guid-6adcd7a3-7fff-2d42-e962-26ef923cbba9"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-BR5wcXygoY8/Yir3szJ3ckI/AAAAAAAAfh8/D8TKs1k8EF0TD417949OaJ3sPRHX7bnVwCNcBGAsYHQ/s1600/1646983085998168-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-BR5wcXygoY8/Yir3szJ3ckI/AAAAAAAAfh8/D8TKs1k8EF0TD417949OaJ3sPRHX7bnVwCNcBGAsYHQ/s1600/1646983085998168-0.png" width="400">
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</div><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-6adcd7a3-7fff-2d42-e962-26ef923cbba9"><b>पुस्तक में दी गई 250 में से अधिकतर सलाहें पाठकों को ऐसे लगेगी मानो वे इसी समाधान को खोज रहे थे, और उन लोगों के भी उतने ही काम आएगी जो करियर की शुरुआत करने जा रहे हैं, अतः पाठकों से अनुरोध है कि वे इसे अंत तक पढ़ें।</b><b><i><br></i></b></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-6adcd7a3-7fff-2d42-e962-26ef923cbba9"><b><i>एक अनुभवहीन स्टूडेंट, एक आम आदमी जिसने आज तक व्यापार नहीं किया या एक मंजा हुआ बिजनेसमैन जो 30-40 सालों से व्यापार कर रहा है, सबको यह किताब अवश्य पढ़नी चाहिए।</i></b><br></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-6adcd7a3-7fff-2d42-e962-26ef923cbba9">छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा (Chhindwara) के <b>आदिवासी बहुल ग्राम-लवाघोगरी से निकलकर अपनी प्रतिभा व संघर्ष से भंडारा-नागपुर-उदयपुर तक में मल्टीनेशनल कॉर्पोरेट जॉब्स के उच्च पदों तक पहुंचे कमलेश सोलंकी (Kamlesh Solanki) ने अभी से 6-7 वर्ष पहले शानदार कॉर्पोरेट जॉब और मोटी सैलेरी छोड़कर बहुत ही छोटे निवेश से, बहुत छोटे शहर छिंदवाड़ा में एक स्टार्टअप प्रारम्भ किया था।</b><br></p><p dir="ltr">हमारे बीच के ही कमलेश को इस स्टार्टअप में शुरुआती संघर्ष के बाद अंततः बेहतरीन सफलता मिली......कमलेश ने अच्छा पैसा, नाम, प्रतिष्ठा और रुतबा कमाया।</p><p dir="ltr">लेकिन इन 6-7 सालों के बिज़नेस के संघर्ष और उबड़-खाबड़ सफर ने कमलेश को बिजनेस में सफलता और असफलता के बहुत सारे सबक और खट्टे मीठे अनुभव दे दिए। </p><p dir="ltr">यह सबक और अनुभव ऑक्सफोर्ड, IIM और बेहतरीन मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट में भी क्रमबद्ध और रोचक तरीके से मिलना दुर्लभ है। कमलेश ने इन सब अनुभवों एवं ज्ञान के बिंदुओं को बहुत सहज, आकर्षक और सिलसिलेवार तरीके से एक पुस्तक के रूप में बहुत सरल और रोचक अंदाज में पिरो दिया, छपवा दिया।</p><p dir="ltr">हिंदी भाषा मे छपी *कमलेश सोलंकी Kamlesh Solanki की यह किताब - Do's and Don'ts in business व्यापार में क्या करें और क्या न करें* एक बेहतरीन कोच और पूरा का पूरा एमबीए डिग्री सिद्ध हो सकती है। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-wAt5Y4DF4cQ/Yir3rENJdWI/AAAAAAAAfh4/JeQh8DJVyLYEpsLq6l7QLhl6khwPHWjeQCNcBGAsYHQ/s1600/1646983077642000-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-wAt5Y4DF4cQ/Yir3rENJdWI/AAAAAAAAfh4/JeQh8DJVyLYEpsLq6l7QLhl6khwPHWjeQCNcBGAsYHQ/s1600/1646983077642000-1.png" width="400">
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</div><br><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-492c6db7-7fff-2d07-6c4a-89cb789fa1aa"><b>पुस्तक के बारे में :- </b></p><p dir="ltr">यह पुस्तक उन सबके लिए फायदेमंद है जो व्यापार शुरू करने वाले हैं या अपने व्यापार को ऊँचाई एवं गति देना चाहते हैं, इसमें पाठकों को व्यापार में लिए गए सभी छोटे बड़े निर्णयों से होने वाले फायदे और नुकसान के बारे में जानने को मिलेगा ।</p><p dir="ltr"><b>पुस्तक में दी गई 250 में से अधिकतर सलाहें पाठकों को ऐसे लगेगी मानो वे इसी समाधान को खोज रहे थे, और उन लोगों के भी उतने ही काम आएगी जो करियर की शुरुआत करने जा रहे हैं, अतः पाठकों से अनुरोध है कि वे इसे अंत तक पढ़ें ।</b></p><p dir="ltr">साथ ही व्यापारियों से निवेदन है कि इसे वे अपने पास रखें व प्रतिदिन थोड़ा समय निकालकर कम से कम एक पॉइंट अवश्य पढ़ें।</p><p dir="ltr">मुझे पूरा विश्वास है कि यह पुस्तक सफल बिज़नेसमैन बनने और व्यावसायिक यात्रा में आपकी सहायता अवश्य करेगी व सही रास्ता दिखाएगी।</p><p dir="ltr">एक अनुभवहीन स्टूडेंट, एक आम आदमी जिसने आज तक व्यापार नहीं किया या एक मंजा हुआ बिजनेसमैन जो 30-40 सालों से व्यापार कर रहा है, सबको यह किताब अवश्य पढ़नी चाहिए।</p><p dir="ltr"><u><a href="https://amzn.to/3vSmlWW">किताब आनलाइन खरीदने के लिए लिंक (Click Here) शेयर किया जा रहा है। </a></u></p><p dir="ltr">https://amzn.to/3vSmlWW<br></p><p dir="ltr">ये किताब आप स्वयं पढ़े और उन्हें गिफ्ट करें, जिन्हें आप जीवन में सफल देखना चाहते हैं।</p><p dir="ltr">https://amzn.to/3vSmlWW<br></p><p dir="ltr"><b>लेखक परिचय</b> </p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-328ad672-7fff-3cf2-120a-a7b61aea7c90">कमलेश सोलंकी Kamlesh solanki बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं, वे मोटिवेशनल स्पीकर, अनुभवी ट्रेनर, लाइफ कोच, YouTuber, हास्य कवि, सफल बिज़नेसमैन एवं बेहतरीन लेखक हैं ।</p><p dir="ltr">वर्त्तमान में वे स्वयं के "रॉयल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट" में "बिज़नेस मैनेजमेंट" व "लाइफ मैनेजमेंट" सिखाते हैं एवं विभिन्न ऑर्गेनाइजेशन में कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने और उनमें ओनरशिप व लीडरशिप क्वालिटी विकसित करने के लिए “स्मार्ट एम्प्लोयी ट्रेनिंग" भी देते हैं, जो कि अत्यंत लोकप्रिय और प्रभावी है।</p><p dir="ltr">लेखक की शिक्षा छिंदवाड़ा Chhindwara (म.प्र.) से हुई है। उन्होंने एम.ए. और एम.बी.ए. करने के बाद देश के अलग-अलग शहरों में 15 वर्षो तक विभिन्न पदों पर जॉब किया और 2015 से वे सफलतापूर्वक स्वयं का बिज़नेस कर रहे हैं।</p><p dir="ltr">यूट्यूब चैनल : </p><p dir="ltr">फेसबुक <u><a href="https://www.facebook.com/kamlesh.solanki.7311">लिंक यहां Click</a></u> करें : </p>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-37794999528619011772022-03-08T06:28:00.001-08:002022-03-08T06:59:56.246-08:00Poetry of Meraj Fatma : "मेराज का पैग़ाम, छिंदवाड़ा की बेटियों के नाम" समेत बालश्री सम्मान प्राप्त कवयित्री की चुनिंदा कविताएं <p dir="ltr" id="docs-internal-guid-7aad7617-7fff-f6c5-f2cf-dbd1d90e16aa"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-QHa4VS1qlio/Yidvajvg25I/AAAAAAAAfg4/8fnaz3WLUdwXVQ2w5SBG3nsG78Fv4K-qACNcBGAsYHQ/s1600/1646751584806355-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-QHa4VS1qlio/Yidvajvg25I/AAAAAAAAfg4/8fnaz3WLUdwXVQ2w5SBG3nsG78Fv4K-qACNcBGAsYHQ/s1600/1646751584806355-0.png" width="400">
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</div><br></div><p></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-7aad7617-7fff-f6c5-f2cf-dbd1d90e16aa"><b>मेराज का पैग़ाम, छिंदवाड़ा की बेटियों के नाम</b></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-7aad7617-7fff-f6c5-f2cf-dbd1d90e16aa"><b></b></p><p dir="ltr"><b>©® <u><a href="https://bit.ly/3hMOzKm">मेराज फातमा खान</a></u>, छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश) ✍️</b></p><p dir="ltr">खूब नाम कमाती है छिंदवाड़ा की बेटियां,</p><p dir="ltr">दुनिया में छा जाती है, छिंदवाड़ा की बेटियां ।</p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br></div>भारत मॉं का कर्ज चुकाने , बेटी ने कसम उठाई है।<br></div><p dir="ltr">कुश्ती में बाजुओं के बल पर, ''शिवानी'' ने धूल चटाई है।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">खूब नाम कमाती है छिंदवाड़ा की बेटियां,</p><p dir="ltr">दुनिया में छा जाती है, छिंदवाड़ा की बेटियां ।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">माउंटेल क्लांबर बनकर ''भावना'', ठान लिया है लक्ष्य साधना ।</p><p dir="ltr">ऐवरेस्ट फतह कर जाती है, छिंदवाड़ा की बेटियां ।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">खूब नाम कमाती है छिंदवाड़ा की बेटियां,</p><p dir="ltr">दुनिया में छा जाती है, छिंदवाड़ा की बेटियां ।</p><br><p dir="ltr">डिजिटल युग की हुई शुरूआत , पायल गैमिंंग लाई सौगात ।</p><p dir="ltr">यूट्यूब पर सदा ही छाई रहती है ''पायल'', गर्मी, जाड़ा या हो बरसात ।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">खूब नाम कमाती है छिंदवाड़ा की बेटियां,</p><p dir="ltr">दुनिया में छा जाती है, छिंदवाड़ा की बेटियां ।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">कलम से ही आगाज और अंजाम लिखती है,</p><p dir="ltr">छिंदवाड़ा की बेटी साहित्य जगत में भी अपनी पहचान रखती है।</p><p dir="ltr">लफ्जों को मोतियों के हार से पिरोकर , ''बालश्री मेराज'' कविताएं लिखती है।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">खूब नाम कमाती है छिंदवाड़ा की बेटियां,</p><p dir="ltr">दुनिया में छा जाती है, छिंदवाड़ा की बेटियां ।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">छोटी उम्र में ''अदिति'' , भारी वजन उठाती है,</p><p dir="ltr">अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को पदक दिलाती है।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">खूब नाम कमाती है छिंदवाड़ा की बेटियां,</p><p dir="ltr">दुनिया में छा जाती है, छिंदवाड़ा की बेटियां ।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr"><b>©® मेराज फातमा खान, छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश) </b></p><p dir="ltr">_________________________________________<b><br></b></p><p dir="ltr"><b>क्योंकि पहनकर मैं हिजाब आई हूं।</b><br></p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">उनके हर सवाल का,</p><p dir="ltr">जवाब लाई हूं।</p><p dir="ltr">क्योंकि पहनकर मैं,</p><p dir="ltr">हिजाब आई हूं।</p><br><p dir="ltr">न पत्थर, न लाठी, न तेज़ाब,</p><p dir="ltr">हाथों में अपने किताब लाई हुईं ।</p><p dir="ltr">कमज़ोर न समझना मुझे,</p><p dir="ltr">क्योंकि पहनकर मैं हिजाब आई हूं।</p><br><p dir="ltr">संविधानी हक़ को लेने ए मेराज,</p><p dir="ltr">बनकर मैं सैलाब आई हूं।</p><p dir="ltr">तालिब-ए-इल्म हूं, हिंदुस्तानी,</p><p dir="ltr">हा पहनकर मैं हिजाब आई हूं।</p><br><p dir="ltr">पढ़कर, आगे बढ़कर, बदलूंगी सोच सबकी,</p><p dir="ltr">सच करने वो सारे ख्वाब लाई हुईं,</p><p dir="ltr">है इल्म हासिल करने,</p><p dir="ltr">पहनकर मैं हिजाब आई हूं।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr"><b>©® मेराज फातमा खान, छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश) ✍️</b></p><p dir="ltr">_________________________________________<b><br></b></p><p dir="ltr"><b>क्योंकि भारतीय नारी हूं मैं</b></p><br><p dir="ltr">क्योंकि भारतीय नारी हूं मैं।</p><p dir="ltr">अबला समझा जाता है मुझे,</p><br><p dir="ltr">पर में साहसी नारी हूँ।</p><p dir="ltr">तड़पकर जी उठती हूँ।</p><br><p dir="ltr">अकेली सब पर भारी हूं।</p><p dir="ltr">क्योंकि भारतीय नारी हूं मैं।</p><br><p dir="ltr">जब थककर चूर होकर कुचली जाती हूं,</p><p dir="ltr">कभी ज्वालामुखी का लावा बनकर उभारती हूँ।</p><br><p dir="ltr">कभी क्रांति की आग बनकर सुलगती हूँ।</p><p dir="ltr">क्योंकि भारतीय नारी हूं मैं।</p><br><br><p dir="ltr">समाज द्वारा कुचली गयी हूँ कई दफा,</p><p dir="ltr">उभरी हूँ सुनामी लहर बनकर,</p><p dir="ltr">मेरी आग का कहर जब जब बरसता है,</p><p dir="ltr">क़यामत का मंजर नज़र आता है, </p><p dir="ltr">क्योंकि भारतीय नारी हूं मैं।</p><br><p dir="ltr">मैं सब्र की सूरत हूँ ।</p><p dir="ltr">और इम्तेहान की मूरत हूँ।</p><p dir="ltr">मेरी आह सब खाक कर जाएगी।</p><p dir="ltr">तब कही मेरी कीमत समझ आएगी।</p><br><p dir="ltr">कभी बेटी, मां, पत्नी, बहन </p><p dir="ltr">इन रूपों में मेरी इज़्ज़त की जाएगी </p><p dir="ltr">क्योंकि भारतीय नारी हूं मैं।</p><br><p dir="ltr">यह ताकत रखती हूं।</p><p dir="ltr">हर तकलीफों को सह सकूँ।</p><p dir="ltr">हिंदुस्तान के वीर सपूत </p><p dir="ltr">और पैदा कर सकूँ</p><p dir="ltr">कभी हार न मानूँगी मैं।</p><p dir="ltr">क्योंकि भारतीय नारी हूं मैं।</p><p dir="ltr"><b>©® मेराज फातमा खान, छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश) </b></p><p dir="ltr">_________________________________________<b><br></b></p><p dir="ltr"><b>एक कविता, कविता के लिए</b><br></p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">एक कविता, कविता के लिए</p><p dir="ltr">कविता वो दरिया है ।</p><p dir="ltr">जो डूब गया सो जान लिया। </p><p dir="ltr">भावों की गहराई को </p><p dir="ltr">वो तन्हा ही पहचान लिया ।</p><br><p dir="ltr">क्या मेराज लिखती है ?</p><p dir="ltr">क्या कुछ खास लिखती है ?</p><p dir="ltr">कलम का लिबास हो तुम।</p><p dir="ltr">तुम अनजान भी हो, पहचान भी हो,</p><br><p dir="ltr">ए-कविता ज़िंदा मुर्दों की </p><p dir="ltr">कहीं अटकी सी जान भी हो ।</p><p dir="ltr">ज़माने के एहसास हो तुम </p><p dir="ltr">शायद इसलिए खास हो तुम।</p><p dir="ltr"><b>©® मेराज फातमा खान, छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश) ✍️</b></p><p dir="ltr">_________________________________________</p><p dir="ltr"><b>(बालश्री सम्मान प्राप्त छिंदवाड़ा Chhindwara जिले की कवयित्री मेराज फातमा खान के ब्लॉग वेबसाइट <a href="https://bit.ly/3hMOzKm">https://bit.ly/3hMOzKm</a> से साभार) </b></p><br>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-78701309743717428422022-03-07T07:26:00.001-08:002022-03-07T21:13:14.787-08:00International Women's Day 2022 : मिलिए छिंदवाड़ा जिले की उन मातृ शक्तियों से, जो मिसाल बनकर उभरी है<p dir="ltr" id="docs-internal-guid-4bed1aef-7fff-f0df-1009-9333ddf31aea"><br></p><p dir="ltr"><b>अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 के मौके पर छिंदवाड़ा छवि की ओर से खास पेशकश... </b><b>छिंदवाड़ा जिले की उन सशक्त महिलाओं के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जो साहित्य, समाजसेवा और चिकित्सा के क्षेत्र में सक्रिय है. और लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। </b></p><p dir="ltr"><b>मेराज फातिमा खान : राष्ट्रीय पुरस्कार बालश्री सम्मान से सम्मानित छिंदवाड़ा जिले की एकमात्र बालिका… </b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-Bbr_BOvw2gc/YiYkK_KY-CI/AAAAAAAAffg/AlaF_Q6LJFUNnQnpxP8Wldt4uEcpUlc7QCNcBGAsYHQ/s1600/1646666792776732-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-Bbr_BOvw2gc/YiYkK_KY-CI/AAAAAAAAffg/AlaF_Q6LJFUNnQnpxP8Wldt4uEcpUlc7QCNcBGAsYHQ/s1600/1646666792776732-0.png" width="400">
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</div><br><p dir="ltr"><i><b>छिंदवाड़ा। वर्ष 2015 में छिंदवाड़ा शहर में स्थित कुकड़ा जगत निवासी मेराज फातिमा खान 11वीं की छात्रा थीं। उनकी प्रतिभा को देखकर शिक्षक आईपी सोनी ने उन्हें राष्ट्रीय बालश्री प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद उन्हें कड़ी मेहनत के बाद बालश्री सम्मान मिला। उन्हीं से जानते है कि कैसे मिली सफलता… </b></i></p><p dir="ltr">मेराज फातमा खान ने कविता लेखन विधा में राष्ट्रीय बालश्री पुरुस्कार विजेता है। ये पुरुस्कार उन्हें 2015-2016 की प्रतियोगिता के लिए 25 जनवरी 2021 को मिला। इस उपलक्ष्य में हमें ज़िला छिंदवाड़ा में 26 जनवरी को भी सम्मानित किया गया।</p><br><p dir="ltr">बालश्री पुरुस्कार बच्चों को दिए जाने वाले पुरुस्कार में से उत्कृष्ट सम्मान है। ये प्रतियोगिता 6 वर्ष से लेकर 15 वर्ष तक के बच्चों के लिए सम्पूर्ण भारत में प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है, जिसमें सम्पूर्ण देश से एक छत के नीचे विभिन्न स्थानों, विभिन्न विधाओं से बच्चे सम्मिलित होते है।</p><p dir="ltr">शास्त्रीय नृत्य, शास्त्रीय संगीत, कला, लेखन कला, कहानी कला, पेंटिंग कला, भांति-भांति के कला से जुड़े हुए बच्चे इसमें अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकते है।</p><p dir="ltr">इसकी शुरुआत स्कूल से हुई थी। पहले हमने स्कूल लेवल पर भाग लिया, हम उत्कृष्ठ विद्यालय छिंदवाड़ा की विद्यार्थी रह चुकी है। हमें विषय दिया जाता है और तत्काल कविता लेखन और पठान करना होता है। ज़िला स्तर से राज्य स्तर में चयन होने पर वहां पर भी अपनी कलम का जादू हमें दिखाना था। आखिर हमारा चयन राष्ट्रीय स्तर के लिए हो गया। राष्ट्रीय स्तर पर न सिर्फ आपको अपनी कला का प्रदर्शन करना था बल्कि आपको अपने व्यक्तित्व को भी दर्शाना था कि क्या आप सच में बालश्री के काबिल है।</p><p dir="ltr"><b>उसके अंतरगत हमारी तार्किक एवं बौद्धिक क्षमता का परीक्षण किया गया जैसे:- </b></p><p dir="ltr">1. हमें एक पेज पर बहुत सारे गोले बनाकर दिए गए थे। आप 30 सेकंड में कितनी कलात्मक चीजें इन गोलों के माध्यम से बना सकते है। </p><p dir="ltr">2. एक बोतल का उपयोग आप पानी पीने के अलावा कैसे कर सकते है। </p><p dir="ltr">... और अंत में सफलता मिली। </p><p dir="ltr"><b>बालश्री सम्मान पाने वाली जिले की पहली छात्रा </b></p><p dir="ltr">मेराज फातिमा खान कहती हैं कि मैंने मेहनत की और मुझे बालश्री पुरस्कार के लिए चयनित किया गया। मुझे सम्मान भी छह साल बाद मिला। यह सम्मान जिले में पहली बार किसी विद्यार्थी को मिला है। मुझे मलाल इस बात का है कि मेरे अनुभव को विद्यार्थियों में सांझा करने के लिए शिक्षा विभाग ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। बालिका दिवस पर उन्हें यह सम्मान कलेक्टर द्वारा प्रदान किया गया।</p><p dir="ltr">मेराज फातिमा खान से जुड़ने के लिए <u><a href="https://merajthoughts.blogspot.com">यहां cilck </a></u>करें<u> </u></p><p dir="ltr"><b>अर्चना ढबाले : 19 साल में बन गई शिक्षिका, डेढ़ सौ से ज्यादा कविताएं लिख चुकी है, संघर्ष से मिला मुकाम</b><br></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-AG--5Bqn6Hg/YiYkJ6ffbiI/AAAAAAAAffc/_O6ZQwjCizka-L5uVs3tl69hti4xqPtJQCNcBGAsYHQ/s1600/1646666789104286-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-AG--5Bqn6Hg/YiYkJ6ffbiI/AAAAAAAAffc/_O6ZQwjCizka-L5uVs3tl69hti4xqPtJQCNcBGAsYHQ/s1600/1646666789104286-1.png" width="400">
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</div><br><p dir="ltr"><b>कु. अर्चना ढबाले, बीएससी-बीएड…. </b>आपने काफी संघर्ष के बाद एक अच्छा मुकाम हासिल किया है। आप शुरू से ही मेहनती और संघर्षशील रही है। आपने 10 साल की उम्र से लिखना शुरू कर दिया था। आप अब तक डेढ़ सौ से ज्यादा हिंदी, मराठी और संस्कृत में कविताएं लिख चुकी है। वे युवा महोत्सव में राज्य स्तर पर हिस्सा ले चुकी है। अर्चना वाद-विवाद और लेखन प्रतियोगिता में भाग लेती रही है। नेहरू युवा केंद्र की ओर से आयोजित भाषण प्रतियोगिता में उन्हें दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था। वन विभाग भोपाल में यूथ असेंबली में भी उन्होंने हिस्सा लिया था। 23 वर्षीय अर्चना वर्तमान में केमिस्ट्री, बायोलॉजी की शिक्षिका के रूप में कार्यरत है। 19 साल की कम उम्र में ही इन्होंने पढ़ाना शुरू कर दिया था।</p><p dir="ltr"><b>रीत डोडानी : जिन्होंने कोरोनाकाल में जरूरतमंद मरीजों को फ्री में बांटी भोजन सामग्री </b></p><p dir="ltr"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-80MQwQLct5Y/YiYkI4d6dKI/AAAAAAAAffY/kg-Ib-rVnAYbqZ75oD_13HjiC1fx8jwoACNcBGAsYHQ/s1600/1646666785144753-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-80MQwQLct5Y/YiYkI4d6dKI/AAAAAAAAffY/kg-Ib-rVnAYbqZ75oD_13HjiC1fx8jwoACNcBGAsYHQ/s1600/1646666785144753-2.png" width="400">
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</b></div><b><br></b><p></p><p dir="ltr">कोरोनाकाल में लोगों को काफी संघर्ष करना पड़ा था। संघर्ष जीवन यापन से लेकर दो वक्त की रोटी जुटाने का भी था। इस दौरान कई लोगों ने वाकई लोगों के लिए भोजन का प्रबंध किया। कुछ लोग सिर्फ समाजसेवा फोटो खिंचवाने के लिए करते हैं। लेकिन इस भीड़ में एक नाम है समाजसेवी रीत डोडानी का। जिन्होंने जरूरतमंद मरीज वाले घरों में फ्री भोजन बांटा। </p><p dir="ltr">------</p><p dir="ltr"><b>डॉ. मृदुला शर्मा : नारी उत्थान और समाज सेवा का बीड़ा उठाया, हर साल सम्मान समारोह आयोजित करती है</b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-HX9D4VUBzfY/YiYkHwyBRDI/AAAAAAAAffU/hYzgfMO0Rpwd-aKs91_eFa61CJo8kgEiwCNcBGAsYHQ/s1600/1646666781491108-3.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-HX9D4VUBzfY/YiYkHwyBRDI/AAAAAAAAffU/hYzgfMO0Rpwd-aKs91_eFa61CJo8kgEiwCNcBGAsYHQ/s1600/1646666781491108-3.png" width="400">
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</div><br><p dir="ltr">छिंदवाड़ा ज़िले की शिक्षक कॉलोनी में निवास करने वालीं डॉ. मृदुला शर्मा, जो कि मूलतः ग्वालियर ज़िले से ताल्लुक रखती हैं। इनके द्वारा विवाह उपरांत छिंदवाड़ा ज़िले में आकर नारी उत्थान एवं समाज सेवा में कार्य का बीड़ा सहर्ष उठाया गया। चाहे फिर वो शैक्षणिक संस्था टेलेन्ट राइज़िंग किड्स वर्ल्ड स्कूल की बात हो, जो कि 2008 में स्थापित हुआ या फिर कला की विभिन्न विधाओं का प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से 2009 में स्थापित श्री नारायण संगीत एवं कला महाविद्यालय। संस्थानों के माध्यम से समाज उत्थान के साथ साथ निरंतर नारी शक्ति को सशक्त बनाने पर बल देना सर्वोपरि समझा। समय समय पर इस हेतु संगोष्ठी आदि का आयोजन इनके द्वारा किया जाता है. एवं महिला दिवस पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन विगत 10 वर्षों से करती आ रही हैं। इस साल भी सिंधु सम्मान समारोह आयोजित किया जा रहा है। </p><ul><li aria-level="1" dir="ltr"><p dir="ltr" role="presentation">संस्थान टेलेन्ट राइज़िंग किड्स वर्ल्ड का संचालन 2008</p></li></ul><ul><li aria-level="1" dir="ltr"><p dir="ltr" role="presentation">श्री नारायण संगीत एवं कला महाविद्यालय का संचालन 2009 से</p></li></ul><ul><li aria-level="1" dir="ltr"><p dir="ltr" role="presentation">समाज सेवा एवं नारी उत्थान के कार्यों हेतु अग्रसर</p></li></ul><p dir="ltr">------</p><p dir="ltr"><b>डॉ. पारुल जायसवाल... अभी छिंदवाड़ा शहर की एक मात्र रेटिना स्पेशलिस्ट है। </b>आप काफी मेहनती है। इनका सपना है कि छिंदवाड़ा शहर में एक ऐसा सुपरस्पेशलिटी नेत्र हास्पिटल हो। जहां सभी सुविधाएं एक ही छत के नीचे उपलब्ध हो ताकि मरीजों को आंखों के इलाज के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता न हो। इसे पूरा करने की दिशा में वे प्रयासरत है। वे पर्यावरण और शिक्षा के क्षेत्र में भी कार्य करने की इच्छा रखती हैं।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-N_hQcx9Qu20/YiYkHFzl6KI/AAAAAAAAffQ/jSQWXLEDvgsxBj5bRUxnUhhOZl81-3jowCNcBGAsYHQ/s1600/1646666777841142-4.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-N_hQcx9Qu20/YiYkHFzl6KI/AAAAAAAAffQ/jSQWXLEDvgsxBj5bRUxnUhhOZl81-3jowCNcBGAsYHQ/s1600/1646666777841142-4.png" width="400">
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</div><br><p dir="ltr">जन्मस्थान - बड़वानी (एमपी)</p><p dir="ltr">पिता - डॉ कैलाश मालवीय (रेडियोलॉजिस्ट)</p><p dir="ltr">माता - श्रीमती करुणा मालवीय (गृहिणी)</p><p dir="ltr">भाई - डॉ परिमल मालवीय (हड्डी रोग विशेषज्ञ)</p><p dir="ltr">पति - डॉ अंशुल जायसवाल (नेत्र रोग विशेषज्ञ) 2015 में शादी की। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-6hbTVAQFLbc/YiYkGD2iYyI/AAAAAAAAffM/vjJOKiZlZs0LCr5xp74w13H-zoWqv72XgCNcBGAsYHQ/s1600/1646666773634723-5.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-6hbTVAQFLbc/YiYkGD2iYyI/AAAAAAAAffM/vjJOKiZlZs0LCr5xp74w13H-zoWqv72XgCNcBGAsYHQ/s1600/1646666773634723-5.png" width="400">
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</div><br><p dir="ltr">ससुर - श्री अनिल जायसवाल<b><br></b></p><p dir="ltr">सास - श्रीमती विजयलक्ष्मी जायसवाल</p><p dir="ltr"><b>शिक्षा -</b></p><p dir="ltr">दसवीं तक - सरस्वती शिशु मंदिर</p><p dir="ltr">11-12वीं - राजकुमार खंडेलवाल मेमोरियल हायर सेकेंडरी स्कूल</p><p dir="ltr">कोटा (राजस्थान) से पीएमटी की तैयारी</p><p dir="ltr">एमबीबीएस - डॉ. डी. वाई. पाटिल मेडिकल कॉलेज, पुणे</p><p dir="ltr">नेत्र विज्ञान में स्नातकोत्तर - एमजीएम मेडिकल कॉलेज, इंदौर</p><p dir="ltr">रेटिना फेलोशिप - अरविंद आई हॉस्पिटल, कोयंबटूर</p><p dir="ltr">मोतियाबिंद फेलोशिप - सद्गुरु नेत्र चिकित्सालय, चित्रकूट</p><p dir="ltr">जायसवाल नेत्र अस्पताल, छिंदवाड़ा की स्थापना - 2018</p><p dir="ltr">जायसवाल आई केयर फाउंडेशन, परसिया - 2019</p><p dir="ltr"><b>रुचियां - </b>नृत्य, संगीत, कविता, अच्छा साहित्य पढ़ना, हर प्रकार की कलात्मक गतिविधियाँ. </p><p dir="ltr"><b>भविष्य की योजनाएं </b>- सभी जरूरी सुविधाओं के साथ एक सुपरस्पेशलिटी नेत्र अस्पताल बनाना चाहते हैं। सभी एक ही छत के नीचे उपलब्ध हो ताकि मरीजों को आंखों के इलाज के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता न हो।</p><p dir="ltr"><b><i>नोट : इस लिस्ट में कई और एक से बढ़कर एक नाम है जैसे- एनाउंसर और कवयित्री गीतांजलि गीत, एवरेस्टर भावना डेहरिया, पूर्व प्राचार्य और काउंसलर डब्ल्यूएस ब्राउन मैडम आदि। लेकिन समय अभाव के चलते हम सभी के बारे में जानकारी नहीं जुटा पाए। जिन्हें फिर कभी शामिल किया जाएगा। </i></b><br></p>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-35699032472202436092022-03-06T23:10:00.001-08:002022-03-07T06:16:28.722-08:00Chhindwara Radio Foundation Day : आकाशवाणी छिंदवाड़ा के पूर्व कार्यक्रम अधिकारी शशिकांत व्यास का संस्मरण <p dir="ltr" id="docs-internal-guid-2bac6235-7fff-c825-510e-94b8e4181069"><b>छिंदवाड़ा आदिवासी अंचल के लोग बहुत भोले और सरल लगे। छल कपट चालाकी से दूर ईमानदार, यह उनकी खासियत थी। छिंदवाड़ा के युवाओं में अपार संभावनाएं हैं। वह उच्च शिक्षा लेने के लिए जबलपुर और नागपुर की तरफ रुख करते थे। </b><br></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-2bac6235-7fff-c825-510e-94b8e4181069"><b>- शशिकांत व्यास, पूर्व कार्यक्रम अधिकारी </b></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-2bac6235-7fff-c825-510e-94b8e4181069"><b>--------------------------------------------------------</b></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-2bac6235-7fff-c825-510e-94b8e4181069"><b>सवाल : वह कौन सी तारीख थी, जब आप पहली बार छिंदवाड़ा आए थे? </b><br></p><p dir="ltr" id="docs-internal-guid-2bac6235-7fff-c825-510e-94b8e4181069"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-JjVtaY0Z9rA/YiWv9ByVzQI/AAAAAAAAfew/3MHrkFvuaPkL7T82o8u5UTWv4O5QH1GOACNcBGAsYHQ/s1600/1646637042517938-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-JjVtaY0Z9rA/YiWv9ByVzQI/AAAAAAAAfew/3MHrkFvuaPkL7T82o8u5UTWv4O5QH1GOACNcBGAsYHQ/s1600/1646637042517938-0.png" width="400">
</a>
</b></div><b><br></b><p></p><p dir="ltr">मैं छिंदवाड़ा में मई 2000 में पहुंचा। मुझे वहां पहुंच कर बहुत अच्छा लगा। सन 2004 तक मैं वहां पदस्थ रहा। करीब 4 वर्ष का मेरा कार्यकाल छिंदवाड़ा में रहा। इस कार्यकाल में अनेक संगीत सभा, मुशायरा, कवि सम्मेलन के आयोजन में सहयोग और संयोजन का अवसर मिला। वैष्णो की कंसर्ट हुई जिनमें डॉक्टर रोशन भारती, अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन जबलपुर के गजल गायकों को भी आमंत्रित किया गया था। मेरे मित्र और सहयोगी डॉक्टर बैजनाथ गौतम, श्री येन्डे जी के मार्गदर्शन में संयोजन में सहभागी हुआ करते थे। सुबह की सैर करना मेरा पुराना शौक रहा। लिहाजा में कुकड़ा जगत से चल कर पहाड़ी पर कॉलेज तक प्रतिदिन घूमने जाता था। वहां से पूरा छिंदवाड़ा शहर दिखता था। वहां बैठकर शहर को निहारना बहुत अच्छा लगता था। यह पहाड़ी छिंदवाड़ा की शान हुआ करती थी और अभी भी है। वन विभाग ने वहां पूरी पहाड़ी पर वृक्षारोपण करके हरी-भरी बना रखी थी। कभी-कभी तो हम पूरी पहाड़ी की परिक्रमा भी लगा देते थे।</p><br><p dir="ltr"><b>सवाल : क्या छिंदवाड़ा के बारे में आपने पहले से सुन रखा था, यहां पहुंचकर कैसा लगा? </b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-HAB3rHPvJm0/YiWv8NMPuWI/AAAAAAAAfes/-0IPRTmdds03IU4XtyQZovX9Q7352ud5gCNcBGAsYHQ/s1600/1646637038261509-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-HAB3rHPvJm0/YiWv8NMPuWI/AAAAAAAAfes/-0IPRTmdds03IU4XtyQZovX9Q7352ud5gCNcBGAsYHQ/s1600/1646637038261509-1.png" width="400">
</a>
</div><br><p dir="ltr">छिंदवाड़ा में शहर का नाम मैंने पहले सुन रखा था। वहां के व्यापारी, दुकानदार अक्सर व्यापार व्यवसाय हेतु इंदौर आते थे। नर्मदा परिक्रमा करने वालों से भी मैंने छिंदवाड़ा के बारे में काफी सुन रखा था। वहां के लेखकों की रचनाएं में पढ़ता था। उभरती हुई कवियत्री गीतांजलि गीत, अवधेश तिवारी, श्री संपतराव धरणीधर, पंडित राम कुमार शर्मा, आशिक अली आशिक, सरस्वती कुमार नारद का तो मुझे साक्षात्कार लेने का सौभाग्य मिला। अवधेश कुमार तिवारी और बीएस देहरिया तो मेरे सहयोगी रहे। <b>छिंदवाड़ा आदिवासी अंचल के लोग बहुत भोले और सरल लगे। छल कपट चालाकी से दूर ईमानदार, यह उनकी खासियत थी। छिंदवाड़ा के युवाओं में अपार संभावनाएं हैं। वह उच्च शिक्षा लेने के लिए जबलपुर और नागपुर की तरफ रुख करते थे। </b>सतपुड़ा वादियों में बहुत पूर्व राय नाटक संगीत साहित्य गायन में छिंदवाड़ा के युवा किसी से कम नहीं है। विजय आनंद दुबे जी के निर्देशन में कई युवाओं ने नाटक की बारी क्यों को सीखा है। </p><p dir="ltr"><b>सवाल : छिंदवाड़ा में आप कितने साल तक रहे, इन सालों में आपने छिंदवाड़ा को किस तरह बदलते हुए देखा...</b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-Qiwdm8mjIwY/YiWv7NaaYcI/AAAAAAAAfeo/HyKiNfCDvzYqPvlPRXBzknn2yS5ABCQhgCNcBGAsYHQ/s1600/1646637034567595-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-Qiwdm8mjIwY/YiWv7NaaYcI/AAAAAAAAfeo/HyKiNfCDvzYqPvlPRXBzknn2yS5ABCQhgCNcBGAsYHQ/s1600/1646637034567595-2.png" width="400">
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</div><br><p dir="ltr">जब मैं सन 2000 में छिंदवाड़ा गया। तो मैंने देखा कि यह शहर काफी साफ- सुथरा और प्रदूषण रहित शहर है। ऐसा मैंने वहां जाकर पाया। छोटा तालाब, बड़ा तालाब छिंदवाड़ा शहर की शोभा है। अब सुंदर बगीचे के रूप में वहां पर विकास किया जा रहा है, हो सकता है कि जब आप जाएं देखें। तब तक शायद पूर्ण विकसित हो चुके होंगे। सांसद कमलनाथ जी ने अपने संसदीय क्षेत्र की जनता को सन 1991 में आकाशवाणी का उपहार दिया। यह एफएम बैंड पर प्रसारित होता है। उस समय वहां के लोगों के पास एफएम रेडियो नहीं थे। माननीय कमल ना जी की प्रेरणा से जन सहयोग से एफएम रेडियो कार्यकर्ताओं को दिए। उन्होंने इसके महत्व और उपयोगिता को प्रचारित किया, जिसकी वजह से किसानों का कार्यक्रम युववाणी और फरमाइशी फिल्मी गानों के कार्यक्रम बहुत लोकप्रिय हुए। जब मेरी सन 2000 में छिंदवाड़ा में पोस्टिंग हुई। तो मैंने पाया कि वहां रेडियो की लिसनिंग बहुत ही उत्साहजनक है। लोग खूब रेडियो का लुफ्त उठाते हैं। छिंदवाड़ा एक जीवंत शहर है। यहां पर जनजातीय संग्रहालय है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। जनजाति संग्रहालय आकाशवाणी के समीप पहाड़ी पर है। हमने बाल जगत कार्यक्रम के लिए स्कूली बच्चों को साथ में लेकर एक सूचना पर कार्यक्रम बच्चों के लिए बनाया था, जिसमें बच्चों की जिज्ञासा को उनके समाधान के साथ प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में बच्चों ने बहुत बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। वहां जनजाति संग्रहालय के संबंध में प्रश्न पूछे और वहां उपस्थित जो संयोजक थे, उन्होंने उसके माकूल जवाब दिए। यह कार्यक्रम बहुत ही पसंद किया गया। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-FbfKZlcngcQ/YiWv6WboFUI/AAAAAAAAfek/xvZ1SoLUN7gugb_bBbrtATSSkiKRFwE4QCNcBGAsYHQ/s1600/1646637030768160-3.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-FbfKZlcngcQ/YiWv6WboFUI/AAAAAAAAfek/xvZ1SoLUN7gugb_bBbrtATSSkiKRFwE4QCNcBGAsYHQ/s1600/1646637030768160-3.png" width="400">
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</div><br><p dir="ltr">उस समय मधु श्रीवास्तव, मनु श्रीवास्तव छिंदवाड़ा के कलेक्टर थे, जो साहित्यिक अभिरुचि के थे। उनके कार्यकाल में छिंदवाड़ा में कई साहित्यिक कार्यक्रम और कवि सम्मेलन मुशायरा हुआ करते थे। आकाशवाणी द्वारा इनकी रिकॉर्डिंग की जाती थी और दूसरे दिन श्रोताओं को सुनवायी जाती थी। मैं इस बात का यहां उल्लेख करना चाहूंगा कि श्री राकेश कुमार नेमा जी के सहयोग से केंद्र पर फोन इन मशीन लगाई गई और इसके माध्यम से सजीव फोन इन कार्यक्रम की शुरुआत हुई। जोकि बहुत लोकप्रिय कार्यक्रमों में से एक है। स्टूडियो में बैठे एनाउंसर से सीधी बातचीत और अपनी पसंद का गाना सुनना श्रोताओं को बहुत अच्छा लगता था। </p><br><p dir="ltr"><b>सवाल : छिंदवाड़ा जिले के किस व्यक्तित्व से आप प्रभावित हुए? </b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-VNT4zzuHD_w/YiWyD3UmGlI/AAAAAAAAfe8/dts3xVMnqHUSR4jFTtZo_Gh-_zdbt-PJQCNcBGAsYHQ/s1600/1646637579660048-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-VNT4zzuHD_w/YiWyD3UmGlI/AAAAAAAAfe8/dts3xVMnqHUSR4jFTtZo_Gh-_zdbt-PJQCNcBGAsYHQ/s1600/1646637579660048-0.png" width="400">
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</div><br><p dir="ltr">श्री हनुमंत मनगटे जी बहुत सक्रिय साहित्यकार थे। कवि सम्मेलनों में जाते भी थे और कवि गोष्ठियों का आयोजन भी करते थे। बाबा धरणीधर छिंदवाड़ा की साहित्यिक गतिविधियों की धुरी थे। उन्हें सतपुड़ा अंचल के नागार्जुन कहा जाता था। उनकी प्रेरणा से कई नवोदय कवियों को मार्गदर्शन मिलता था। उनमें से एक थे अवधेश तिवारी, जो आकाशवाणी में थे। मुझे भी छिंदवाड़ा में उनके साथ काम करने का मौका मिला था। बहुत सहयोगी और कार्यक्रम के प्रति समर्पित थे।</p><br><p dir="ltr">छिंदवाड़ा अंचल की एक और प्रतिभा, साहित्यिक नक्षत्र, जो अपने प्रयास और मेहनत के दम पर आकाशवाणी के डायरेक्टर जनरल तक पहुंचे। उनका नाम लीलाधर मंडलोई छिंदवाड़ा में बड़े गर्व के साथ लिया जाता है। उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुई है। उन्होंने भोपाल, दिल्ली, अंडमान निकोबार तक छिंदवाड़ा का नाम पहुंचाया। इस क्रम में श्री विष्णु खरे जी, जिन्होंने छिंदवाड़ा से अपनी लिखनी यात्रा शुरू की और देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंचे। </p><br><p dir="ltr"><b>सवाल : आकाशवाणी छिंदवाड़ा में और किसे याद करेंगे, कोई दिलचस्प किस्सा? </b></p><p dir="ltr"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-5t-g9fnUYYc/YiWyqr4XC6I/AAAAAAAAffE/NVgTZYV1NLkeqq8O-FkZgIf5euAEQXsDQCNcBGAsYHQ/s1600/1646637735252525-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-5t-g9fnUYYc/YiWyqr4XC6I/AAAAAAAAffE/NVgTZYV1NLkeqq8O-FkZgIf5euAEQXsDQCNcBGAsYHQ/s1600/1646637735252525-0.png" width="400">
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</b></div><b><br></b><p></p><p dir="ltr">श्री धीरेंद्र दुबे यूं तो शिक्षक हैं। परंतु समाज सेवा का कार्य करते हैं। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र में साक्षरता का बहुत काम किया। उनकी आवाज और शब्दों का सही उच्चारण, इसी की वजह से आकाशवाणी छिंदवाड़ा में उन्होंने कई कार्यक्रम किए। आकस्मिक उद्घोषक का काम भी किया। आज भी वह जनहित के काम में लगे हुए हैं। वह युवाओं के प्रेरणा स्रोत रहे हैं। अपने गुरु श्री अवधेश तिवारी की तरह विभिन्न सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों का संचालन करते हैं। एक दिलचस्प बात बताना चाहूंगा। आकाशवाणी छिंदवाड़ा स्टूडियो में मुझे एक ऐसे व्यक्ति का साक्षात्कार करने को मिला। जिन्हें श्रीरामचरितमानस पूरी कंठस्थ याद थी। कहीं से भी कोई दोहा, चौपाई, पूछ लीजिए। मैं वहां ऐसे कई व्यक्तियों से मिला, आकाशवाणी द्वारा प्रसारित संस्कृत समाचार नियमित सुनते थे। सवेरे और शाम को दोनों वक्त अर्थात वहां संस्कृत के विद्वान जानकार भी हैं। छिंदवाड़ा जागरूक शहर है, वहां की हर गतिविधियां जमाने के साथ है। छिंदवाड़ा शहर, जबलपुर, बालाघाट और नागपुर की बड़ी लाइन से जोड़ने पर भी बहुत ही जल्दी प्रगति करेगा। यदि कोई कार्यक्रम में मुझे आमंत्रित किया जाता है तो मैं एक बार फिर छिंदवाडा आना चाहूंगा। मुझे खुशी होगी ।</p><b>(आकाशवाणी छिंदवाड़ा के 30वें स्थापना दिवस के मौके पर पूर्व कार्यक्रम अधिकारी शशिकांत व्यास से "छिंदवाड़ा छवि" के लिए एक्सक्लूसिव बातचीत की वरिष्ठ पत्रकार व ब्लॉगर रामकृष्ण डोंगरे ने।) </b><div><b><br></b></div><div><b>शशिकांत व्यास जी का फेसबुक प्रोफाइल <u><a href="https://www.facebook.com/shashikant.vyas.50">यहां Click</a></u> करें <br></b><br></div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8975557981930711686.post-60521121527060839312022-03-06T21:31:00.001-08:002022-03-06T21:34:07.752-08:00Akashwani Chhindwara : आज आकाशवाणी छिंदवाड़ा का 30वां स्थापना दिवस है, शेयर कीजिए अपनी मधुर यादें <div>7 मार्च 1992। यही वो दिन था जिस दिन धरमटेकड़ी पर मुकुट की तरह आकाशवाणी के छिंदवाड़ा केंद्र की स्थापना हुई थी। इस केंद्र की स्थापना से जिले वासियों को खेती किसानी और युवाओं को ज्ञानवर्धक जानकारी का खजाना मिलना शुरू हुआ. </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-OE45xm-dRiY/YiWYrVGlAFI/AAAAAAAAfeY/XUGOUx1RRYY1XCueaXAwXuUmUD7liizIQCNcBGAsYHQ/s1600/1646631082790097-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-OE45xm-dRiY/YiWYrVGlAFI/AAAAAAAAfeY/XUGOUx1RRYY1XCueaXAwXuUmUD7liizIQCNcBGAsYHQ/s1600/1646631082790097-0.png" width="400">
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</div><br></div><div>युवाओं का मशहूर प्रोग्राम युववाणी और किसान भाइयों का प्रोग्राम चौपाल, हैलो फारमाइश जैसे दर्जनों प्रोग्राम जिले के सभी श्रोताओं के दिलों में आज भी जिंदा है। आकाशवाणी ने अपनी पैठ हर वर्ग के लोगों के बीच बना रखी है </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-b7NLuMmiEUY/YiWYqD3aM8I/AAAAAAAAfeU/l-q2RE9_8DA1GgKGgVcVQnNNU7FPlErIQCNcBGAsYHQ/s1600/1646631078329752-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-b7NLuMmiEUY/YiWYqD3aM8I/AAAAAAAAfeU/l-q2RE9_8DA1GgKGgVcVQnNNU7FPlErIQCNcBGAsYHQ/s1600/1646631078329752-1.png" width="400">
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</div><br></div><div>इस मौके पर हम आकाशवाणी छिंदवाड़ा के वरिष्ठ उद्घोषक श्री अवधेश तिवारी जी और यहां लंबे समय तक कार्यरत रहे स्टेशन डायरेक्टर विमलकांत येंडे जी, माधुरी येंडे जी, कमल सागरे जी, शशिकांत व्यास, डॉक्टर हरीश पराशर रिशु जी, अमर रामटेके जी सभी को हम आज भी याद करते हैं.</div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-y6vfBSQDpQo/YiWYpBQ6OhI/AAAAAAAAfeQ/daGqdZnDu-Y49RArlf1F-OmKYNr1LERbgCNcBGAsYHQ/s1600/1646631074530257-2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-y6vfBSQDpQo/YiWYpBQ6OhI/AAAAAAAAfeQ/daGqdZnDu-Y49RArlf1F-OmKYNr1LERbgCNcBGAsYHQ/s1600/1646631074530257-2.png" width="400">
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</div><br></div><div>इसके अलावा हमारे ही बीच के युवाओं को भी हम याद करते हैं जिन्होंने आकाशवाणी में एनाउंसर और कंपेयर की भूमिका निभाकर सभी को अपना दीवाना बनाया। </div><div>जैसे- प्रशांत नेमा, मानव खान, गीतांजलि गीत, मनमोहन धीर, संतोष गौतम, इमरान खान, संजय शर्मा, रजनीश यादव, अंजुम खान, विजय शर्मा, विजय आनंद दुबे, नरेंद्र शकरवार, राजेश श्रीवास्तव, तान्या गुप्ता आदि। <br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-i5tul1kLTjQ/YiWYoJGKDQI/AAAAAAAAfeM/1cbp3GJ45wkD9sSUQFzC30J1TNCttNthwCNcBGAsYHQ/s1600/1646631070376318-3.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-i5tul1kLTjQ/YiWYoJGKDQI/AAAAAAAAfeM/1cbp3GJ45wkD9sSUQFzC30J1TNCttNthwCNcBGAsYHQ/s1600/1646631070376318-3.png" width="400">
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</div><br></div><div>हमारे पसंदीदा रेडियो चैनल आकाशवाणी छिंदवाड़ा के 25 साल पूरे होने पर आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं... </div><div><br></div><div>दोस्तों आप भी अपनी यादें शेयर कीजिए </div><div><br></div><div>#रेडियो_की_यादें #Air_chhindwara #akashvani_chhindwara</div><div>#आकाशवाणी_छिंदवाड़ा</div>Chhindwara chhavihttp://www.blogger.com/profile/13061545216098980862noreply@blogger.com0